Wednesday, July 01, 2009

दूषित मछली के सेवन से मधुमेह का खतरा

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दूषित मछली के सेवन से मधुमेह का खतरा
न्यूयॉर्क, 14 अप्रैल
मनुष्य द्वारा निर्मित रसायनों को खाने और समुद्र में फैले औद्योगिक कचरे को खाने वाली मछलियों का सेवन करने से मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है। दक्षिण कोरिया के कुछ शोधकर्ताओं ने हाल ही में किए गए एक शोध में यह दावा किया है।
शोधकर्मियों के अनुसार अभी तक यह माना जा रहा था कि मोटापा मधुमेह का एक प्रमुख कारण है, लेकिन नए शोध के अनुसार उन व्यक्तियों को मधुमेह होने का खतरा ज्यादा होता है, जिनके शरीर में डीडीटी जैसे कीटनाशक और अन्य रसायन उच्च स्तर पर पाए जाते हैं। गौरतलब है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान डीडीटी का विकास किया गया था। यह पहला कीटनाशक है, जिसका प्रयोग उस समय मच्छरों द्वारा फैलाई जाने वाली बीमारी मलेरिया को नियंत्रित करने के लिए किया गया था। हालांकि बाद में अमेरिका ने 1972 में डीडीटी के पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव के कारण प्रतिबंधित कर दिया था, लेकिन विकासशील देशों में मलेरिया जैसे रोगों की रोकथाम के लिए अभी भी डीडीटी का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा पीसीबी (पॉली क्लोरिनेटेड बाई फिनाइल्स) ऐसे रसायन हैं, जिसका मछलियां सेवन करती हैं और जिसे आसानी से नष्ट नहीं किया जा सकता।
आहार विशेषज्ञों के अनुसार स्वास्थ्य के लिए एक खास प्रजाति, सलमोन मछलियां ही लाभदायक होती हैं। लेकिन इन मछलियों में भी पीसीबी का ऊच्च स्तर पाया जाता है। प्रतिबंध के बावजूद डीडीटी और पीसीबी जैसे कीटनाशक मिट्टी और समुद्र में पाए जाते हैं और भोज्य पदार्थो के रास्ते हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। शोध करने वाले वैज्ञानिकों ने इंसुलीन और रसायनों के बीच संबंध की व्याख्या करते हुए कहा है कि मोटे व्यक्तियों में जिनमें रसायनों की मात्रा ज्यादा होती है, वे इंसुलीन की कमी का सामना कर सकते हैं। इसके अलावा इसके विपरीत जिन लोगों का वजन जरूरत से ज्यादा है, लेकिन जिनके खून में रसायनों की मात्रा कम है, उनमें यह संभावना नहीं पाई जाती।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस

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