http://samachar.boloji.com/200803/18549.htm
अब मधुमेह के मरीजों के लिए हर्बल चाय!
ढाका, 6 मार्च (आईएएनएस)। बांग्लादेश के वैज्ञानिकों ने मधुमेह रोगियों के लिए विशेष प्रकार की औषधीय गुणों से भरपूर चाय पत्ती तैयार की है। खास बात यह है कि मधुमेह के मरीजों के लिए यह चाय विशेष रूप से लाभकारी है।
इसका सेवन करने वालों को इंसुलिन के टीके भी अपेक्षाकृत कम लगवाने पड़ेंगे।
समाचार पत्र 'डेली स्टार' में गुरुवार को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार 'बांग्लादेश वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद' (बीसीएसआईआर) के वैज्ञानिकों ने जरूल वृक्ष की पत्तियों से इस चाय पत्ती को तैयार किया गया है।
रिपोर्ट में 'डाइबिटिक एसोसिएशन' के अध्यक्ष आजाद खान के हवाले से लिखा गया है कि प्राकृतिक गुणों से भरपूर होने की वजह से इस चाय पत्ती के सेवन से मधुमेह रोगियों को कोई नुकसान नहीं होगा। उन्होंने बताया कि बांग्लादेश में लगभग 60 लाख लोग मधुमेह से पीड़ित हैं।
बीसीएसआईआर के अध्यक्ष चौधरी महमूद हसन के मुताबिक दुनियाभर में इस चाय पत्ती को मान्यता दी जा रही है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में इस चाय पत्ती का लगभग 62 अरब डालर का बाजार है।
समाचार एजेंसी 'जिनहुआ' के अनुसार लोगों को इस चाय पत्ती के सेवन से मोटापा दूर करने में भी मदद मिलेगी।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस
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Wednesday, July 01, 2009
मेंढक की त्वचा के द्रव से मिला मधुमेह का इलाज
http://samachar.boloji.com/200803/18654.htm
मेंढक की त्वचा के द्रव से मिला मधुमेह का इलाज
न्यूयार्क, 7 मार्च (आईएएनएस)। मेंढक की त्वचा से निकलने वाले द्रव से 'डाइबिटीज' के रोगियों का इलाज हो सकेगा।
मेंढकों के ऊपर अध्ययन कर रहे अल्सटर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक का कहना है कि 'सियूडिस पैराडक्सा प्रजाति' के मेंढक की त्वचा में एक विशेष प्रकार का द्रव होता है, जो उसे संक्रमण के प्रभावों से बचाता है। लेकिन मनुष्य के शरीर में 'सियूडिन-2' नामक द्रव होने के कारण इसका अलग ही महत्व है।
शोधार्थियों ने पाया कि यह मनुष्य के शरीर में इंसुलिन को बढ़ाने का काम करता है जो मधुमेह के प्रभावों को रोकने का काम करता है।
विश्वविद्यालय के जैविक-चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर यासर अब्दल वहाब ने कहा ''शोध के परिणाम बहुत उत्साहजनक हैं। हम मधुमेह-2 के इलाज खोजने के बहुत नजदीक पहुंच गए हैं।'' उन्होंने बताया कि इसके लिए और शोध की जरूरत है। जल्द ही मधुमेह दवा की खोज कर ली जाएगी और इसके अच्छे परिणाम आने की भी उम्मीद है।
खास बात यह है कि सियूडिस पैराडक्सा प्रजाति का यह मेंढक अपनी बढ़ती उम्र के साथ छोटा होता जाता है। उन्होंने आगे बताया कि लोगों को मधुमेह-2 से बचाने के लिए अब हमें आगे इसके इस्तेमाल पर ध्यान देने की आवश्यकता है। उनका विश्वास है कि यह दवा मधुमेह को रोकने के साथ-साथ, हृदयरोग, अंधापन आदि कई रोगों को दूर क रने में सहायक है। मधुमेह की बीमारी प्राय: मध्य आयु में मोटापे के कारण होता है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस
मेंढक की त्वचा के द्रव से मिला मधुमेह का इलाज
न्यूयार्क, 7 मार्च (आईएएनएस)। मेंढक की त्वचा से निकलने वाले द्रव से 'डाइबिटीज' के रोगियों का इलाज हो सकेगा।
मेंढकों के ऊपर अध्ययन कर रहे अल्सटर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक का कहना है कि 'सियूडिस पैराडक्सा प्रजाति' के मेंढक की त्वचा में एक विशेष प्रकार का द्रव होता है, जो उसे संक्रमण के प्रभावों से बचाता है। लेकिन मनुष्य के शरीर में 'सियूडिन-2' नामक द्रव होने के कारण इसका अलग ही महत्व है।
शोधार्थियों ने पाया कि यह मनुष्य के शरीर में इंसुलिन को बढ़ाने का काम करता है जो मधुमेह के प्रभावों को रोकने का काम करता है।
विश्वविद्यालय के जैविक-चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर यासर अब्दल वहाब ने कहा ''शोध के परिणाम बहुत उत्साहजनक हैं। हम मधुमेह-2 के इलाज खोजने के बहुत नजदीक पहुंच गए हैं।'' उन्होंने बताया कि इसके लिए और शोध की जरूरत है। जल्द ही मधुमेह दवा की खोज कर ली जाएगी और इसके अच्छे परिणाम आने की भी उम्मीद है।
खास बात यह है कि सियूडिस पैराडक्सा प्रजाति का यह मेंढक अपनी बढ़ती उम्र के साथ छोटा होता जाता है। उन्होंने आगे बताया कि लोगों को मधुमेह-2 से बचाने के लिए अब हमें आगे इसके इस्तेमाल पर ध्यान देने की आवश्यकता है। उनका विश्वास है कि यह दवा मधुमेह को रोकने के साथ-साथ, हृदयरोग, अंधापन आदि कई रोगों को दूर क रने में सहायक है। मधुमेह की बीमारी प्राय: मध्य आयु में मोटापे के कारण होता है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस
मधुमेह के मरीजों को करानी चाहिए कैंसर की नियमित जांच
मधुमेह के मरीजों को करानी चाहिए कैंसर की नियमित जांच वाइसबाडेन (जर्मनी), 8 सितम्बर (आईएएनएस)। चिकित्सक मधुमेह के रोगियों को कैंसर की नियमित जांच कराने की सलाह देते हैं क्योंकि उनमें न केवल गुर्दे और संक्रामक बीमारियां होने की आशंका होती है वरन उन्हें टयूमर होने का खतरा भी अधिक होता है। मधुमेह के मरीजों में आंत के कैंसर की आशंका औरों से 30 फीसदी तक अधिक होती है जबकि उनमें पैंक्रियाज का कैंसर होने की आशंका सामान्य लोगों की तुलना में 700 फीसदी अधिक होती है। इन रोगियों में टाइप-2 मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या अधिक है। जर्मनी के प्रोफेशनल एसोसिएशन आफ इंटरनिस्ट्स के अनुसार मधुमेह के मरीजों को 50 वर्ष की अवस्था के बाद हर पांच साल में कैंसर की जांच कराते रहना चाहिए। इसके अलावा उन्हें अपने मल में रक्त आने पर भी तुरंत जांच करानी चाहिए क्योंकि यह आंतों अथवा पेट में टयूमर का संकेत हो सकता है। समाचार एजेंसी डीपीए के अनुसार हालांकि अभी मधुमेह रोगियों में कैंसर की आशंका के प्रमुख कारणों की पहचान नहीं हो पाई है। संभवत: इंसुलिन की तगड़ी मात्रा शरीर में कैंसर की कोशिकाओं की वृध्दि में सहायक होती है। इंडो-एशियन न्यूज सर्विस
मधुमेह और हृदय रोग से बचना है तो जमकर खाईये फल और मछलियां
http://samachar.boloji.com/200806/18314.htm
मधुमेह और हृदय रोग से बचना है तो जमकर खाईये फल और मछलियां
लंदन, 2 जून (आईएएनएस)। फल, जैतून का तेल, अनाज, मछली और सब्जियां ज्यादा खाने वालों के टाइप -2 मधुमेह से पीडित होने की आशंका कम होती है। ये सभी खाद्य पदार्थ भूमध्य सागरीय क्षेत्र के आसपास रहने वालों के पारंपरिक भोजन में शुमार हैं।
शोधकर्ताओं ने सन 1999 से 2007 के बीच स्पेन की नवारा यूनिवर्सिटी के 13,000 से ज्यादा ऐसे छात्रों पर अध्ययन किया, जिन्हें मधुमेह नहीं था। दिसंबर 1999 से नवंबर 2007 के बीच उनके खान-पान की आदतों और स्वास्थ्य पर लगातार नजर रखी गयी।
शोधकर्ता हर दो साल में प्रतिभागियों को एक प्रश्नावली देते थे, जिसमें उनसे भोजन, जीवनशैली और स्वास्थ्य संबंधी प्रश्न पूछे जाते थे।
अध्ययन के दौरान पाया गया कि जिन प्रतिभागियों ने अपने खान-पान में बदलाव नहीं किया, उनमें मधुमेह होने की आशंका कम देखी गई, जबकि जिन लोगों ने अपने खाने संबंधी आदतें बदली थीं, उनमें मधुमेह की संभावना ज्यादा पाई गई।
अध्ययन के निष्कर्षो को 'ब्रिटिश मेडिकल' जर्नल वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस
मधुमेह और हृदय रोग से बचना है तो जमकर खाईये फल और मछलियां
लंदन, 2 जून (आईएएनएस)। फल, जैतून का तेल, अनाज, मछली और सब्जियां ज्यादा खाने वालों के टाइप -2 मधुमेह से पीडित होने की आशंका कम होती है। ये सभी खाद्य पदार्थ भूमध्य सागरीय क्षेत्र के आसपास रहने वालों के पारंपरिक भोजन में शुमार हैं।
शोधकर्ताओं ने सन 1999 से 2007 के बीच स्पेन की नवारा यूनिवर्सिटी के 13,000 से ज्यादा ऐसे छात्रों पर अध्ययन किया, जिन्हें मधुमेह नहीं था। दिसंबर 1999 से नवंबर 2007 के बीच उनके खान-पान की आदतों और स्वास्थ्य पर लगातार नजर रखी गयी।
शोधकर्ता हर दो साल में प्रतिभागियों को एक प्रश्नावली देते थे, जिसमें उनसे भोजन, जीवनशैली और स्वास्थ्य संबंधी प्रश्न पूछे जाते थे।
अध्ययन के दौरान पाया गया कि जिन प्रतिभागियों ने अपने खान-पान में बदलाव नहीं किया, उनमें मधुमेह होने की आशंका कम देखी गई, जबकि जिन लोगों ने अपने खाने संबंधी आदतें बदली थीं, उनमें मधुमेह की संभावना ज्यादा पाई गई।
अध्ययन के निष्कर्षो को 'ब्रिटिश मेडिकल' जर्नल वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस
मधुमेह रोगी पेडिक्योर करवाएं मगर ध्यान से
http://samachar.boloji.com/200802/16686.htm
मधुमेह रोगी पेडिक्योर करवाएं मगर ध्यान से
नई दिल्ली, 6 फरवरी, (आईएएनएस)। आपको सुनने में भला ही अटपटा लगे लेकिन यह कहना गलत न होगा कि पैरों के सौंदर्य को बरकरार रखने के लिए किए जाने वाला 'पेडिक्योर' मधुमेह रोगियों के लिए काफी नुकसानदायक साबित हो रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि पार्लरों में पेडिक्योर के लिए प्रयोग किए जाने वाले उपकरणों की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है। यही नहीं एक बार साफ किए गए उपकरणों से कई लोगों के पेडिक्योर किए जाते हैं।
इस कारण कुछ जीवाणु लोगों के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, ऐसे में मधुमेह रोगियों में लाइलाज अलसर होने का खतरा बढ़ जाता है।
'दिल्ली मधुमेह अनुसंधान केन्द्र' के अध्यक्ष डा. अशोक झिंगन ने कहा कि केवल मधुमेह के कारण ही प्रतिवर्ष 40 हजार टांगें खराब हो जाती है। उन्होंने बताया कि इस कारण मधुमेह रोगियों को पैरों का विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है।
इस बाबत आईएएनस ने दिल्ली के 10 प्रतिष्ठित ब्यूटी पार्लरों का दौरा किया तो पता चला कि केवल चार ब्यूटी पार्लर ही मधुमेह रोगियों का पेडिक्योर करने में विशेष सतर्कता बरतते हैं।
दिल्ली में 'फोर्टीज अस्पताल' में मधुमेह विभाग के अध्यक्ष अनूप मिश्रा कहते हैं कि अधिकांश सौंदर्य विशेषज्ञों व मधुमेह रोग पीड़ित 80 फीसदी महिलाओं को भी इस बात की जानकारी नहीं है।
वीएलसीसी की गुड़गांव स्थित शाखा की संचालिका बनीता वर्मा कहती हैं, ''हमारे पास आने वाले ग्राहक कभी नहीं बताते कि वह मधुमेह से पीड़ित हैं या फिर नहीं।''
हालांकि राष्ट्रीय राजधानी में विशेषज्ञों ने लोगों को जागरूक करने के लिए विशेष पहल भी शुरू कर दी है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस
मधुमेह रोगी पेडिक्योर करवाएं मगर ध्यान से
नई दिल्ली, 6 फरवरी, (आईएएनएस)। आपको सुनने में भला ही अटपटा लगे लेकिन यह कहना गलत न होगा कि पैरों के सौंदर्य को बरकरार रखने के लिए किए जाने वाला 'पेडिक्योर' मधुमेह रोगियों के लिए काफी नुकसानदायक साबित हो रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि पार्लरों में पेडिक्योर के लिए प्रयोग किए जाने वाले उपकरणों की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है। यही नहीं एक बार साफ किए गए उपकरणों से कई लोगों के पेडिक्योर किए जाते हैं।
इस कारण कुछ जीवाणु लोगों के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, ऐसे में मधुमेह रोगियों में लाइलाज अलसर होने का खतरा बढ़ जाता है।
'दिल्ली मधुमेह अनुसंधान केन्द्र' के अध्यक्ष डा. अशोक झिंगन ने कहा कि केवल मधुमेह के कारण ही प्रतिवर्ष 40 हजार टांगें खराब हो जाती है। उन्होंने बताया कि इस कारण मधुमेह रोगियों को पैरों का विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है।
इस बाबत आईएएनस ने दिल्ली के 10 प्रतिष्ठित ब्यूटी पार्लरों का दौरा किया तो पता चला कि केवल चार ब्यूटी पार्लर ही मधुमेह रोगियों का पेडिक्योर करने में विशेष सतर्कता बरतते हैं।
दिल्ली में 'फोर्टीज अस्पताल' में मधुमेह विभाग के अध्यक्ष अनूप मिश्रा कहते हैं कि अधिकांश सौंदर्य विशेषज्ञों व मधुमेह रोग पीड़ित 80 फीसदी महिलाओं को भी इस बात की जानकारी नहीं है।
वीएलसीसी की गुड़गांव स्थित शाखा की संचालिका बनीता वर्मा कहती हैं, ''हमारे पास आने वाले ग्राहक कभी नहीं बताते कि वह मधुमेह से पीड़ित हैं या फिर नहीं।''
हालांकि राष्ट्रीय राजधानी में विशेषज्ञों ने लोगों को जागरूक करने के लिए विशेष पहल भी शुरू कर दी है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस
दूषित मछली के सेवन से मधुमेह का खतरा
I am trying to collect and archive al the available regional language content about diabetes in this blog to make it a regional portal for diabetes in India.
if any one has any objection to my posting theses articles please contact me and if you object I will remove the post .
the idea is to make the knowledge and news and information available to everyone in India and the world
http://samachar.boloji.com/200704/01968.htm
दूषित मछली के सेवन से मधुमेह का खतरा
न्यूयॉर्क, 14 अप्रैल
मनुष्य द्वारा निर्मित रसायनों को खाने और समुद्र में फैले औद्योगिक कचरे को खाने वाली मछलियों का सेवन करने से मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है। दक्षिण कोरिया के कुछ शोधकर्ताओं ने हाल ही में किए गए एक शोध में यह दावा किया है।
शोधकर्मियों के अनुसार अभी तक यह माना जा रहा था कि मोटापा मधुमेह का एक प्रमुख कारण है, लेकिन नए शोध के अनुसार उन व्यक्तियों को मधुमेह होने का खतरा ज्यादा होता है, जिनके शरीर में डीडीटी जैसे कीटनाशक और अन्य रसायन उच्च स्तर पर पाए जाते हैं। गौरतलब है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान डीडीटी का विकास किया गया था। यह पहला कीटनाशक है, जिसका प्रयोग उस समय मच्छरों द्वारा फैलाई जाने वाली बीमारी मलेरिया को नियंत्रित करने के लिए किया गया था। हालांकि बाद में अमेरिका ने 1972 में डीडीटी के पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव के कारण प्रतिबंधित कर दिया था, लेकिन विकासशील देशों में मलेरिया जैसे रोगों की रोकथाम के लिए अभी भी डीडीटी का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा पीसीबी (पॉली क्लोरिनेटेड बाई फिनाइल्स) ऐसे रसायन हैं, जिसका मछलियां सेवन करती हैं और जिसे आसानी से नष्ट नहीं किया जा सकता।
आहार विशेषज्ञों के अनुसार स्वास्थ्य के लिए एक खास प्रजाति, सलमोन मछलियां ही लाभदायक होती हैं। लेकिन इन मछलियों में भी पीसीबी का ऊच्च स्तर पाया जाता है। प्रतिबंध के बावजूद डीडीटी और पीसीबी जैसे कीटनाशक मिट्टी और समुद्र में पाए जाते हैं और भोज्य पदार्थो के रास्ते हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। शोध करने वाले वैज्ञानिकों ने इंसुलीन और रसायनों के बीच संबंध की व्याख्या करते हुए कहा है कि मोटे व्यक्तियों में जिनमें रसायनों की मात्रा ज्यादा होती है, वे इंसुलीन की कमी का सामना कर सकते हैं। इसके अलावा इसके विपरीत जिन लोगों का वजन जरूरत से ज्यादा है, लेकिन जिनके खून में रसायनों की मात्रा कम है, उनमें यह संभावना नहीं पाई जाती।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस
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दूषित मछली के सेवन से मधुमेह का खतरा
न्यूयॉर्क, 14 अप्रैल
मनुष्य द्वारा निर्मित रसायनों को खाने और समुद्र में फैले औद्योगिक कचरे को खाने वाली मछलियों का सेवन करने से मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है। दक्षिण कोरिया के कुछ शोधकर्ताओं ने हाल ही में किए गए एक शोध में यह दावा किया है।
शोधकर्मियों के अनुसार अभी तक यह माना जा रहा था कि मोटापा मधुमेह का एक प्रमुख कारण है, लेकिन नए शोध के अनुसार उन व्यक्तियों को मधुमेह होने का खतरा ज्यादा होता है, जिनके शरीर में डीडीटी जैसे कीटनाशक और अन्य रसायन उच्च स्तर पर पाए जाते हैं। गौरतलब है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान डीडीटी का विकास किया गया था। यह पहला कीटनाशक है, जिसका प्रयोग उस समय मच्छरों द्वारा फैलाई जाने वाली बीमारी मलेरिया को नियंत्रित करने के लिए किया गया था। हालांकि बाद में अमेरिका ने 1972 में डीडीटी के पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव के कारण प्रतिबंधित कर दिया था, लेकिन विकासशील देशों में मलेरिया जैसे रोगों की रोकथाम के लिए अभी भी डीडीटी का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा पीसीबी (पॉली क्लोरिनेटेड बाई फिनाइल्स) ऐसे रसायन हैं, जिसका मछलियां सेवन करती हैं और जिसे आसानी से नष्ट नहीं किया जा सकता।
आहार विशेषज्ञों के अनुसार स्वास्थ्य के लिए एक खास प्रजाति, सलमोन मछलियां ही लाभदायक होती हैं। लेकिन इन मछलियों में भी पीसीबी का ऊच्च स्तर पाया जाता है। प्रतिबंध के बावजूद डीडीटी और पीसीबी जैसे कीटनाशक मिट्टी और समुद्र में पाए जाते हैं और भोज्य पदार्थो के रास्ते हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। शोध करने वाले वैज्ञानिकों ने इंसुलीन और रसायनों के बीच संबंध की व्याख्या करते हुए कहा है कि मोटे व्यक्तियों में जिनमें रसायनों की मात्रा ज्यादा होती है, वे इंसुलीन की कमी का सामना कर सकते हैं। इसके अलावा इसके विपरीत जिन लोगों का वजन जरूरत से ज्यादा है, लेकिन जिनके खून में रसायनों की मात्रा कम है, उनमें यह संभावना नहीं पाई जाती।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस
machine translation sucks
some web sites have tried using google translate to give info in hindi from english artcles.
so far the translation is so bad it makes little sense .
but it has been somwhat useful as a draft to get to the finalk product for people like me who are rusty in hindi.
recently I got a beta hindi punjabi MT version from vishal goyal of punjab university may be some punjabis should look at this .
if they can convert some of the hindi content to punjabhi it will be helpful
so far the translation is so bad it makes little sense .
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recently I got a beta hindi punjabi MT version from vishal goyal of punjab university may be some punjabis should look at this .
if they can convert some of the hindi content to punjabhi it will be helpful
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