Saturday, June 02, 2012

Saturday, February 11, 2012

मधु से मधुमेह बनता है, लेकिन मधु से मधुमेह नहीं होता.


एक समय था जब डायबिटीज ( मधुमेह ) जैसी बीमारी को विकसित देशों की समस्या समझा जाता था । लेकिन आधुनिक विकास के साथ अब यह समस्या भारत जैसे विकासशील देश में भी पनपने लगी है । हमारे देश में यह रोग दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है । इस समय देश में लगभग ५ करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं । इसीलिए भारत को डायबिटिक केपिटल ऑफ़ वर्ल्ड कहा जाने लगा है ।

क्या होता है मधुमेह ?

आम तौर पर खाने में मौजूद कार्बोहाइड्रेट के पाचन से रक्त में ग्लूकोज की मात्रा एक निश्चित स्तर पर बनी रहती है । यह संभव होता है इंसुलिन नाम के हॉर्मोन से जो ग्लूकोज के मेटाबोलिज्म को नियंत्रित करता है । जब यह नियंत्रण सामान्य नहीं रहता तब ब्लड सुगर बढ़ जाती है । ऐसी स्थिति को मधुमेह कहते हैं ।

डायबिटीज / मधुमेह के प्रकार :

) टाइप -- इसमें शरीर में इंसुलिन की मात्रा कम होने से ग्लूकोज का उपयोग नहीं हो पाता । इसलिए रक्त में सुगर की मात्रा बढ़ी रहती है । आम तौर यह अनुवांशिक होता है और कम उम्र में ही रोग हो जाता है ।

) टाइप -- इसमें इंसुलिन की मात्रा तो सामान्य होती है लेकिन ग्लूकोज पर इंसुलिन का प्रभाव कम हो जाता है जिससे टिश्यूज को ग्लूकोज नहीं मिल पाती और रक्त में सुगर का स्तर बढ़ा रहता है ।

३) गेसटेनल डायबिटीज --यह सिर्फ गर्भवती महिला को गर्भ के दौरान ही होती है जो डिलीवरी के बाद ठीक हो जाती है । हालाँकि बाद में डायबिटीज होने की सम्भावना बनी रहती है ।

डायबिटीज का इलाज क्यों ज़रूरी है ?

टिश्यूज में ग्लूकोज की निरंतर अत्यधिक मात्रा से कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं जिससे शरीर के विभिन्न अंगों की कार्य क्षमता घटने लगती है । अंतत: ऑर्गन फेलियर होने लगता है ।

कौन से अंग प्रभावित होते हैं ?

बिना उपचार मधुमेह से हृदय रोग , बी पी , नसों में रुकावट , गुर्दे की बीमारी , नपुंसकता और शारीरिक कमजोरी होने की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है । लम्बे अन्तराल तक डायबिटीज रहने से मुख्यतय: निम्न विकार पैदा हो जाते हैं --

) डायबिटिक रेटिनोपेथी : आँखों में रेटिना पर प्रभाव पड़ने से दृष्टि पूर्ण रूप से ख़त्म हो सकती है ।
२) डायबिटिक न्युरोपेथी --नर्व्ज के डेमेज होने से पैरों में दर्द रहने लगता है जो आम दर्द निवारक दवा से ठीक भी नहीं होता ।
३) डायबिटिक नेफ्रोपेथी -- किडनी डेमेज होने से किडनी फेलियर हो सकता है जिसे एंड स्टेज रीनल डिसीज कहते हैं ।
४) डायबिटिक फुट --- कभी कभी पैरों में घाव हो जाते हैं जो ठीक नहीं हो पाते । इसलिए मधुमेह के रोगी के लिए पैरों की देखभाल बहुत ज़रूरी होती है ।

उपचार :

डायबिटीज एक लाइफ स्टाइल डिसीज है यानि अक्सर हमारी जीवन शैली से यह रोग उपजता है । निष्क्रियता , खाने में अत्यधिक केल्रिज और वसा और धूम्रपान व मदिरापान , मोटापा तथा अनुवांशिकता इस रोग के मुख्य कारक हैं ।
इसलिए सबसे पहले हमें अपने रहन सहन में बदलाव करना होगा ।
नियमित व्यायाम और सैर , और खाने में संयम बरतने से आरम्भ में मधुमेह को नियंत्रित रखा जा सकता है ।
सफलता न मिलने पर दवा का सेवन आवश्यक हो जाता है . अक्सर एक दवा से इलाज करते हैं . लेकिन दो या तीन भी देनी पड़ सकती हैं ।
टाइप और लम्बे समय के बाद टाइप में इंसुलिन के टीके लगाने पड़ते हैं

दिल्ली में मधुमेह के रोगियों की बढती संख्या को देखते हुए , दिल्ली के गुरु तेग बहादुर अस्पताल में दिल्ली सरकार की ओर से डायबिटीज , एन्डोक्राइन और मेटाबोलिक केयर सेंटर खोलने की योजना बनाई गई है जिसका शिलान्यास दिल्ली की माननीय मुख्मंत्री श्रीमती शीला दीक्षित द्वारा ८ फ़रवरी को किया गया ।



इस अवसर पर बाएं से : डॉ एस वी मधु ( विभाग अध्यक्ष ) , प्रधान सचिव श्री अंशु प्रकाश , निगम पार्षद श्री अजित सिंह , विधायक श्री वीर सिंह धिंगान , माननीय मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित , माननीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ ऐ के वालिया , चिकित्सा अधीक्षक डॉ राजपाल ।



मंच संचालन का भार एक बार फिर हमारे ऊपर ही पड़ा
किसी भी कार्यक्रम में कम्पीयरिंग ( मंच संचालन ) एक बड़ा महत्त्वपूर्ण कार्य है । बढ़िया साज सज्जा के बावजूद , कार्यक्रम की सफलता मंच संचालक पर बहुत निर्भर करती है । एक अच्छे संचालक के लिए आवश्यक है :

* प्रोटोकोल का ध्यान रखना , विशेषकर ऐसे कार्यक्रम में जहाँ सरकार के उच्च पदाधिकारी मंच पर आसीन हों ।
* संचालक का आत्म विश्वास , उच्चारण , शैली , भाषा और विषय का ज्ञान ।
* टाइम मेनेजमेंट -अक्सर इस तरह के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के पास समय का आभाव रहता है । ऐसे में पूरे कार्यक्रम को सीमित समय में समाप्त करना एक चेलेंज होता है । कभी कभी इसका विपरीत भी हो सकता है , विशेषकर जब कार्यक्रम के बाद खाने का भी प्रबंध हो और खाने में देर हो जाए ।

इसीलिए मंच संचालन भी एक कला है

लेकिन एक बात और । मंच संचालक की हालत उस एक्स्ट्रा फ़िल्मी कलाकार जैसी होती है जो डांस तो हीरो या हिरोइन के साथ करता है लेकिन कैमरा उस पर कभी फोकस नहीं होता ।
बस फर्क इतना है कि मंच संचालक पर कैमरा तो फोकस रहता है , लोग देखते भी उन्हें ही हैं , लेकिन कोई
उसके लिए तालियाँ नहीं बजाता ! इसीलिए अक्सर यह एक थेंक्लेस जॉब होता है

लेकिन कहते हैं करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान

इसलिए हमने भी तालियाँ बजवाना सीख लिया है । वैसे अपने लिए तालियाँ बजवाना हमने कवियों से ही सीखा है।

मधु से मधुमेह बनता है, पर
मधु से मधुमेह नहीं होता !
और ग़र मधुमेह हो जाए, तो
मधु से नाता तोड़ना पड़ता है !
फिर भी ग़र बात ना बने , तो
मधु से नाता जोड़ना पड़ता है !

इस बार मंच संचालन निश्चित ही एक आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता का अनुभव रहा

नोट : डॉ एस वी मधु डायबिटीज केयर सेंटर के इंचार्ज हैं।

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