Wednesday, August 17, 2016

मध ु मेह (डायबिटीज़) एक परिचय

मध मेह (डायबिटीज़) एक परिचय चेतावनी के संके त ननम्न लक्षण ववशिष्ट हैं। हालांकक प्रकार २ मधुमेह के कुछ लक्षण िहुत हल्के होते हैंकक उनका पता नहीं चलता है। · मधुमेह के सामान्य लक्षण · अक्सर पेिाि जाना · िहुत प्यास लगना · िहुत खाने पर भी भूख लगना · अत्यधधक थकान · धुंधली दृष्ष्ट · चोट/घाव का धीरे भरना · ज्यादा खाने पर भी वजन में कमी होना (प्रकार १) · हाथों/पैरों में ददद या अकड़न/ झुनझुनी (प्रकार २) मधम ेह प्रिंधन अपनी स्वास््य टीम के साथ मधुमेह प्रिंधन करने के शलए आप एक योजना िनाएंगे जो आपको अपने लक्ष्य तक पहुुँचने में मदद करेगी। साथ में मधमु ेह की ए-िी-सी का ट्रेक रखेंगे। · ए-१ सी : आपकी ए-१ सी जांच वपछले २-३ महीनों के औसत रक्त ग्लूकोज के ववषय में िताती है। · ब्लड़ प्रेिर: आपकी रक्तचाप संख्या आपके खून के वेग के ववषय में िताती है। रक्तचाप उच्च होने से हृदय पर अधधक ज़ोर पड़ता है। · कोलेस्ट्रॉल : आपकी कोलेस्ट्रॉल संख्या रक्त में फै ट के ववषय में िताती है। एचडीएल जैसे कोलेस्ट्रॉल हृदय रोग से सुरक्षा प्रदान करतें हैं। एलडीएल जैसे कोलेस्ट्रॉल रक्त वाहहकाओं में रोककर हृदय रोग की संभावना को िढ़ाते हैं। ट्राइष्ग्लसराइड्स नामक रक्त की फै ट, हृदय रोग या स्ट्रोक की संभावना को िढ़ाते हैं। अधधक जानकारी के शलए देखें www.diabetes.org या फोन करें 1-800-DIABETES Produced with assistance of the SKN Foundation www.sknfoundation.org For the South Asian Diabetes Education & Prevention Program प्रकाि १ प्रकार १ मधुमेह में आपकी प्रनतरक्षा प्रणाली गलती से आपके पैनकिआस में इंसुशलन िनाने वाली िीटा कोशिकाओं भलू से नष्ट कर देती है। आपका िरीर इन िीटा कोशिकाओं को ववदेिी आिमणकाररयों के रुप में देखता है और उन्हें नष्ट कर देता है। यह ववनाि कुछ हफ्तों, महीनों या वषों में हो सकता है। पयादप्त िीटा कोशिकाओं के नष्ट हो जाने पर आपकी पैनकिआस इंसुशलन िनाना िंद कर देती हैंया इतना कम इंसुशलन िनाती हैंकक आपको जीववत रहने के शलए इंसुशलन लेना २५,८००,००० अमरीकी मधुमेह से पीड़ड़त है इंसुशलन इंसुशलन आपके पेट के पीछे िसे पैनकिआस नामक अंग के िीटा कोशिकाओं द्वारा उत्पाहदत हामोन है। रक्त िकदरा (िुगर) का सामान्य स्तर से अधधक िढ़ जाने को मधुमेह कहते हैं। इसे हाइपरग्लाइशसशमया भी कहतें हैं। जि आप खाते हैं, आपका िरीर उसे तोड़ कर ग्लूकोज िना कर रक्त में भेजता है। इंसुशलन ग्लूकोज को रक्त से कोशिकाओं तक पहुुँचाता है। कोशिकाओं में प्रववष्ट ग्लकू ोज को ऊजाद के शलए ईंधन के रूप में तत्काल ही प्रयोग ककया जाता है या िाद में उपयोग के शलए भंडाररत ककया जाता है । मधुमेह से पीड़ड़त प्रत्येक व्यष्क्त को इंसुशलन की समस्या है, ककंतुहर व्यष्क्त की समस्या शभन्न है। मधुमेह के अनेक प्रकार हैं- प्रकार १, प्रकार २ एवं गभादवधध मधुमेह । अगर आपको मधुमेह हैतो या तो आपका िरीर पयादप्त मात्रा में इंसुशलन नहीं िनाता है, इस्तमे ाल नहीं कर सकता है या दोनो ही ष्स्तधथयाुँ है। मधुमेह का इलाज इंसुशलन, मौखखक दवाओं, व्यायाम एवं भोजन योजना से हो सकता है। अगर अनुपचाररत छोड़ दें तो मधुमेह से नसों की क्षनत, गुदेया आंख की समस्याएं, हृदय रोग तथा स्ट्रोक जैसी जहटलताएं उत्पन्न हो सकती हैं। परंतु यहद भली प्रकार से प्रिंधन ककया जाए तो आप मधुमेह के साथ एक लंिा स्वस्थ जीवन जी सकते है। गभादवधध मधम ेह गभादवधध मधुमेह गभादवस्था के दौरान ववकशसत होता है। अधधकतर महहलाओं का रक्त िकद रा स्तर जन्म देने के िाद सामान्य हो जाता है। यहद आप गभादवधध मधुमेह से पीड़ड़त रह चुकीं हैंतो आपको ननयशमत जाुँच की आवश्यकता है क्योंकक आपमें प्रकार २ मधुमेह की संभावना अधधक है। प्रकाि २ यहद आप प्रकार २ मधुमेह से ग्रस्त हैंतो आपका िरीर ठीक से इंसुशलन का उपयोग नहीं करता है। इसे इंसुशलन प्रनतरोध कहतें हैं। इसकी भरपाई के शलए पहले, िीटा कोशिकाएं अनतररक्त इंसुशलन िनाती हैं। परंतु समय के साथ पैनकिआस सामान्य स्तर पर रक्त ग्लूकोज िनाए रखने के शलए इंसुशलन िनाने में अक्षम हो जातें हैं। प्रकार २ मधुमेह से ग्रस्त कुछ लोग स्वस्थ भोजन और व्यायाम के साथ अपने मधुमेह का प्रिंधन कर सकते हैं। आपके धचककत्सक भी आपके लक्ष्य रक्त िकद रा के स्तर को िनाए रखने के शलए मौखखक दवाओं (गोशलयां) और/या इंसुशलन का सेवन ननधादररत कर सकते हैं। मधुमेह एक िढ़ता हुआ रोग है; िुरु में चाहे दवाइयों से इसका इलाज ज़रूरी नहीं है, पर िाद में आवश्यकता पड़ सकती है। २०१० में १९ लाख अमेररककयों का मधुमेह के साथ का ननदान ककया गया

मधम ु ेह की रोकथाम एक आंदोलन है


मधम ु ेह की रोकथाम एक आंदोलन है जिसका लक्ष्य है - लोगों, समुदायों संगठनों और स्वास््य सेवा प्रदाताओं को अमेररकन डायबिटीज एसोससएशन में शासमल होने के सलए प्रेररत करना और मधुमेह का भववष्य िदलना।यह प्रसार करना कक इस घातक रोग पर ववजय प्राप्त करने का समय आ गया है| आप मधुमेह को रोकने में इस प्रकार से मदद कर सकते हैं। मधुमेह की अपनी ननजी कहानी िताएं। स्वयं सेवा करें, भाग लें, एवं पक्ष लें। अपने स्वास््य को सुधारने एवं रोग के रोकथाम के ववषय में जानकारी हाससल करें । उत्साह के साथ अपना धन एवं समय लागाएं। मधुमेह को रोकने के ववषय में अधधक जानकारी के सलए देखें stopdiabetes.com


अपनी कहानी बता कर दसू रों को प्रेररत करें diabetes.org के एक ववशेष समुदाय में आप शासमल हो सकते हैं। वहााँआप मधुमेह से ग्रस्त लोगों एवं उनका ध्यान रखने वाले लोगों से संपकक स्थावपत कराने वाली ऑनलाइन संदेश िोडक पाएंगें जहााँ आप अपनी ध ंता क्रोध, भय, और ददक व्यक्त कर सकतें हैं । आप अपनी भावनाएं व्यक्त कर सकते हैं और रोग के प्रिंधन के सलए उपयोगी युक्क्तयााँसुझा सकते हैं, दसू रों के अनुभव से सीख सकते हैंऔर अपना खुद का आभासी सहायता समूह िना सकतें हैं स्वयं सेवा में समय का योगदान करें आप कई तरीके से मदद कर सकते हैं। हम पूरे अमेररका में सैकडों वावषकक कल्याणकारी दान आयोजन करते हैं क्जनसे कक धन जुटाया जाता है, तथा मधुमेह के प्रनत जागरूकता िढ़ाई जाती हैं, और मधुमेह के इलाज के सलए खोज का समथकन ककया जाता है। करुणा ददखाएं उठें, िाहर ननकलें और सकक्रय रहें। मधुमेह को रोकने के सलए स्थानीय आयोजनों में भाग लेकर, अथवा स्वयं सेवक िनकर या स्वयं आयोजन कर हमारी सहायता करें। श्रंखललत प्रततक्रिया शुरु करें टूर दे क्युर सभी के सलए एक साइक्क्लंग कायक्रक म है, क्जसमें जुटाया गया प्रत्येक डॉलर मधुमेह से ग्रस्त लाखों अमेररकनों के सलए हमें लडने में मदद करता है हर कदम मायने रखता है २ या ६ मील, आप जो भी राह ुनें, हर कदम मायने रखता है। स्टॉप डायिेटीज़ के कायकक्र्म में भाग लें | बदलाव के ललए एक आवाि हो अपना व अपने वप्रयजनों का पक्ष लें । हर पत्र से, ननवाकध त अधधकाररयों को ककए गए हर फोन कॉल से मधुमेह पीड़डतों के जीवन में पररवतनक लाया जा सकता है। साथ ही उनके अधधकारों की रक्षा, ववत्त पोषण के प्रयासों को सफ़लता और उन्हें स्वास््य सेवा पहुं ाने में लाभ समलता है। मधमु ेह के बारे में िानें ज्ञान शजतत है। बेहतर िीवन िीने के ललए इसका प्रयोग करें मधुमेह से ि ाव या प्रिंधन के ववषय में आप क्जतना जान लें, आपके एवं आपकी देखरेख करने वालों के ककए उतना ही अच्छा है। अगर आपको मधुमेह नहीं है, तो भी जां कराएं। रोग की रोकथाम के सलए उपाय, स्वस्थ आहार और व्यायाम शासन इत्यादद के ववषय में अपने डॉक्टर से िात करें| यदद आप मधुमेह से ग्रस्त हैतो इसका प्रिंधन सीखें। diabetes.org पर िहुमूल्य संसाधन उपलब्ध हैं। ऑनलाइन िाकर िानकारी बढाएं Diabetes.org ज्ञान, समथकन एवं उपकरणों के सलए आपका स्रोत है। ध ककत्सा की जानकारी, स्वास््य और व्यायाम सुझाव, नवीनतम अनुसंधान, व्यंजनों, ववशेषज्ञों के साथ लाइव ैट इत्यादद भी आप यहााँ पा सकतें हैं। तन:शुल्क ई - न्यूसलॅटसस पा कर आभासी ववशेषज्ञ बनें  स्टॉप डायिेटीज़ ईन्यूस आपको मधुमेह से संिंधधत महत्वपूणक समा ार और जानकारी देती है।  एड्वोके सी ईमेल अलर्टकस आपको मधुमेह से ग्रस्त लोगों के मुद्दों पर नवीनतम जानकारी देता है।  पेरेन्र्टस न्यूस्लॅटर आपके िच् े के मधुमेह के प्रिंधन से संिंधधत समा ार, जानकारी, सुझावों और संसाधनों की जानकारी देता है।  प्लॅननन्ग फ़ोर क्योर समा ारों के साथ साथ कर-ि त, वाहनों का दान, संयुक्त होने के उपायों के ववषय में जानकारी देता है। बेहतर िीवन के ललए पूवासनुमान अमेररकन डायबिटीज एसोससएशन में शासमल हों और हमारी स्वस्थ जीवन से जुडी माससक चिक्रकत्सा हेतुअपनी आशाएं, ववत्तीय समथसन और अपना समय लगाएं पबत्रका डायिेदटज़ फ़ोरकास्ट प्राप्त करें। प्रत्येक अंक में व्यंजन, युक्क्तयााँएवं अनुसंधान और उप ार पाएं। स्थापना के िाद एसोससएशन ने मधुमेह अनुसंधान हेतु आधे अरि से अधधक डॉलर लगाएं हैं। आपकी भेंट हमें मधुमेह को रोकने की लडाई में और सभी संभावनाओं का पता लगाने में मदद करती है। अपनी रुचि के अनुसार दान करें एक प्रमुख दाता ($ १०,००० या अधधक) के रूप में आप हमारे अनुसंधान पररयोजनाओं की ओर अपना उपहार प्रस्तुत कर सकते हैं। $ ५०,००० या उससे अधधक के दान से आप ववसशष्ट अनुसंधान पररयोजना का समथकन कर सकते हैं। आपकी उपहार योिना कई लोगों के िीवन में अंतर ला सकती है वावषकक ी सेवाननववृत्त योजना, िीमा योजना से अनुसंधान, दहमायत और अन्य कायक्रक मों को िनाए रखने में मदद समलती है । प्रत्येक डॉलर से अंतर पड़ता है।  शेयर या म्यु ुअल फंड शेयरों के दान एक ननवेश है क्जससे मधुमेह से ग्रस्त लोगों को लाभांश का भुगतान करता है ।  िच् ों को मधुमेह सशववर में भेजने में मदद करें क्जससे कक वे स्वास््य और सेहत के ववषय में एवं, इंसुसलन के स्तर के प्रिंधन और मधुमेह के साथ जीवन जीने के ववषय में सीख सकें ।  ’धगफ़्टर्टस ओफ़ होप’ सू ी से हमारे अनुसंधान और कायकक्रमों को समथकन समलता है। आपका समय भी बहुत मूल्यवान है पत्र भेजें, मधुमेह परीक्षण को ववतररत करें और अपने पडोस/समुदाय में मधुमेह असभयान के सलए दान जुटाएं मधुमेह को रोकने के हमारे प्रयासों के सलए आप हैंजो भी धन या समय लगा सकते हों, लगाएं अमेररकन डायबिटीज एसोससएशन और हमारे मंतव्य का कै से समथकन करें, यह जानने के सलए देखें diabetes.org 

गर्भावधि मधुमेह (जैस्टेशनल डायबिटीज)

गर्भावधि मधुमेह (जैस्टेशनल डायबिटीज)

गर्भावधि मधुमेह (जैस्टेशनल डायबिटीज) क्या है?

गर्भावधि मधुमेह (जैस्टेशनल डायबिटीज) तब होती है, जब गर्भावस्था के दौरान आपके खून में शर्करा (ग्लूकोस) की मात्रा काफी ज्यादा हो जाती है।

अगर, आपका शरीर इंसुलिन नामक हार्मोन का पर्याप्त मात्रा में उत्पादन नहीं कर रहा होता, तो आपकी रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) का स्तर बढ़ सकता है। इंसुलिन हमारी निम्न तरीके से मदद करती है:
  • शरीर की मांसपेशियों और ऊत्तकों की मदद करती है, ताकि वे ऊर्जा के लिए रक्त शर्करा का इस्तेमाल कर सकें
  • जिस रक्त शर्करा की अभी जरुरत नहीं है, शरीर में उसके संग्रहण में मदद करती है

जब आप गर्भवती होती हैं, तो आपके शरीर को अतिरिक्त इंसुलिन बनानी पड़ती है, खासकर कि मध्य गर्भावस्था के बाद से। आपको अतिरिक्त इंसुलिन की इसलिए जरुरत होती है, क्योंकि अपरा (प्लेसेंटा) के हार्मोन आपके शरीर को इसके प्रति कम प्रतिक्रियाशील बना देते हैं। यदि, शरीर इस अतिरिक्त इंसुलिन की मांग को पूरा नहीं कर पाता, तो आपका रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाएगा और आपको गर्भावधि मधुमेह हो सकती है।

खून में अत्याधिक शर्करा होने से आपके और आपके शिशु के लिए समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए आपको गर्भावस्था के दौरान अतिरिक्त देखभाल में रहना होगा। गर्भावधि मधुमेह की समस्या काफी आम है और यह करीब छह गर्भवती मांओं में से एक को प्रभावित करती है।

अच्छी बात यह है, कि आमतौर पर शिशु के जन्म के बाद गर्भावधि मधुमेह स्वयं ठीक हो जाती है। यह जिंदगी भर चलने वाली टाईप 1 और टाईप 2 मधुमेह से अलग होती है।

गर्भावधि मधुमेह में अक्सर ऐसे लक्षण नहीं होते हैं, जिन्हें आसानी से पहचान लिया जाए, मगर आपको निम्नांकित कुछ लक्षण महसूस हो सकते हैं:
  • थकान
  • मुंह सूखना
  • अधिक प्यास लगना
  • अत्याधिक पेशाब आना
  • थ्रश जैसे कुछ संक्रमण बार-बार होना
  • धुंधला दिखाई देना

अगर, आपको इनमें से कोई भी लक्षण महसूस हों, तो अपनी डॉक्टर से बात करें।

क्या चीज गर्भावधि मधुमेह होने की संभावना को बढ़ाती है?

आपको गर्भावधि मधुमेह होने की संभावना ज्यादा हो सकती है, अगर:
  • आपका बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 25 या इससे अधिक है।
  • आप पहले 4.5 किलो या इससे अधिक वजन वाले शिशु को जन्म दे चुकी हैं।
  • आपको पहले भी गर्भावधि मधुमेह हो चुकी है या फिर आपके करीबी रिश्तेदारों को मधुमेह रही है।
  • कुछ मानव प्रजातियों में मधुमेह होने का खतरा ज्यादा होता है, और दुर्भाग्यवश दक्षिण एशियाई प्रजाति उनमें से एक है। इसलिए, यदि आपके परिवार में मधुमेह या फिर गर्भावधि मधुमेह होने का इतिहास रहा है, तो आपको भी इसके होने की संभावना अधिक रहती है।

क्या मैं गर्भावधि मधुमेह से बचने के लिए कुछ कर सकती हूं?

इस बात की कोई गारंटी नहीं है, मगर हो सकता है आप नीचे दिए गए उपायों के जरिये गर्भावधि मधुमेह होने के खतरे को कम कर पाएं: 
  • स्वस्थ आहार खाना। ऐसे कार्बोहाइड्रेट चुनें, जो धीरे-धीरे शुगर जारी करते हैं। जो कार्बोहाइड्रेट जल्दी हजम हो जाते हैं और रक्त शर्करा के स्तर को तेजी से बढ़ा सकते हैं, उनसे बचना चाहिए। धीरे-धीरे शुगर जारी करने वाले कार्बोहाइड्रेट्स में शामिल हैं साबुत अनाज और अपरिष्कृत अनाज जैसे भूरे चावल, चोकर, जई या रागी। इसलिए, आप चपातियां साबुत आनाज के आटे से बनाइए या फिर नाश्ते में जई का दलिया लीजिए। साथ ही, वसा युक्त मांस के बदले कम वसा वाले प्रोटीन जैसे कि चिकन, मछली और दलहन जैसे राजमा आदि लीजिए। मांस को भूनने के लिए माइक्रोवेव उपयोग में लें, ताकि तेल का कम इस्तेमाल हो।

  • व्यायाम करना। अच्छा आहार खाने के साथ-साथ स्वस्थ और सक्रिय रहना भी महत्वपूर्ण है। यह आपके ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित रखने में मदद करता है। गर्भावस्था के दौरान कई तरह के व्यायाम जैसे योग, पिलाटिज़, टहलना, तैराकी आदि सुरक्षित हैं।

  • गर्भावस्था में अपने वजन बढ़ने पर नियंत्रण रखें। अगर, आप गर्भावस्था से पहले आपका वजन सही था, तो गर्भावस्था के नौ महीनों में शायद आपका 10.5 किलो से 11 किलो तक वजन बढ़ सकता है।

कैसे पता चलेगा कि मुझे गर्भावधि मुधुमेह है?

गर्भावधि मधुमेह के लक्षण आसानी से पहचान पाना मुश्किल होता है, इसलिए इसका पता लगाने का सर्वश्रेष्ठ तरीका शुगर स्तर की जांच कराना है।

पेशाब की जांच आपकी प्रसवपूर्व देखभाल की प्रक्रिया का सामान्य हिस्सा है। पेशाब की जांच में यह भी देखा जाता है कि आपके पेशाब में शर्करा का स्तर कितना है। अगर, आपका यह स्तर सामान्य से ज्यादा है, तो यह गर्भावधि मधुमेह होने का संकेत हो सकता है। 

यदि, आपकी डॉक्टर को लगता है कि आपको गर्भावधि मधुमेह होने का हल्का खतरा है, तो वह आपको फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोस टेस्ट कराने के लिए कह सकती हैं। इस जांच के लिए सवेरे सबसे पहले एक बार खाली पेट आपके रक्त का नमूना लिया जाएगा।

अगर, आपके पेशाब की जांच में शुगर का स्तर बढ़ा हुआ पाया जाता है, तो डॉक्टर आपको ग्लूकोस टोलरेंस टेस्ट (जीटीटी) करावाने के लिए कहेंगी। यह सामान्यत: गर्भावस्था के 24 और 28 सप्ताह के बीच कराया जाता है।

आपको यह जांच सवेरे खाली पेट करानी होगी। आपके खून का नमूना लिया जाएगा, ताकि आधारभूत रक्त शर्करा माप का पता लगाया जा सके। इसके बाद आपको ग्लूकोस दिया जाएगा और दो घंटे बाद फिर से आपके रक्त का नमूना लिया जाएगा। यह दूसरा नमूना दर्शाएगा कि शर्करा के सेवन पर आपके शरीर की क्या प्रतिक्रिया रही है।

अगर, आप डॉक्टर से नियमित मुलाकात कर रही हैं और उनके द्वारा बताई गई सभी जांचें करा रही हैं, तो इस बात की पूरी संभावना है कि आप गर्भावधि मधुमेह का पता समय रहते लगा लेंगी।

मधुमेह होने से मेरे अजन्मे शिशु पर क्या प्रभाव पड़ता है?

गर्भावधि मधुमेह वाली अधिकांश महिलाएं स्वस्थ शिशु को जन्म देती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यह स्थिति आसानी से पकड़ में आ जाती है और इसका इलाज किया जा सकता है।

अगर, आपकी मधुमेह नियंत्रित नहीं है और आपके रक्त में अत्याधिक शुगर है, तो यह अपरा (प्लेसेंटा) से होते हुए आपके शिशु तक पहुंच जाएगी। यह आपके शिशु का वजन बढ़ा सकती है। अधिक वजन वाले शिशु प्रसव और जन्म के समय मुश्किल पैदा कर सकते हैं। इससे प्रसव होने में जटिलता का खतरा बढ़ जाता है। यहां तक कि कई बार यह मृत शिशु के जन्म का कारण भी बन सकता है, हालांकि यह काफी दुर्लभ है। इन्हीं सब कारणों को देखते हुए डॉक्टर आपकी रक्त शर्करा को एक सही स्तर पर रखने के लिए आपके साथ मिलकर काम करती है।

अनियंत्रित मधुमेह की वजह से शिशु के आसपास अत्याधिक पानी या एमनियोटिक द्रव्य भी जमा हो सकता है। इस स्थिति को पॉलीहाइड्रेमनिओज कहा जाता है।

गर्भावधि मधुमेह का उपचार किस तरह होता है?

डॉक्टर आपको सलाह देंगी कि आप किस तरह सही खानपान और व्यायाम के जरिये रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित कर सकती हैं।

अगर, आपका वजन गर्भवती होने से पहले अधिक था, तो डॉक्टर आपको कैलोरी का सेवन घटाने और रोजाना करीब 30 मिनट व्यायाम करने की सलाह देंगी। 

आपको शायद कुछ अतिरिक्त अल्ट्रासाउंड स्कैन भी कराने पड़ेंगे। इनके जरिये यह देखा जाएगा कि आपका शिशु किस तरह बढ़ रहा है और गर्भ में कितना एमनियोटिक द्रव्य है। गर्भावस्था के 28 सप्ताह से 36 सप्ताह तक आपको हर चार हफ्ते में एक स्कैन कराना पड़ सकता है। डॉक्टर आपको गर्भ में होने वाली शिशु की हलचल पर भी विशेष ध्यान रखने के लिए कहेंगी। अगर, आपको शिशु की गतिविधियों में थोड़ा भी बदलाव महसूस हो, तो यह अपनी डॉक्टर को अवश्य बताएं।

यदि, रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित रखने के लिए आपका आहार और व्यायाम पर्याप्त नहीं है, तो इसके लिए आपको दवाई या फिर इंसुलिन के इंजेक्शन लेने की जरुरत पड़ सकती है।

अगर, जरुरत हुई तो डॉक्टर आपको स्वयं ही इंजेक्शन लगाना सिखा देंगी। आपको यह सब थोड़ा डरा सकता है, मगर अपने रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित रख कर आप अपने और शिशु के हित के लिए सर्वोचित काम कर रही हैं।

मधुमेह मेरे शिशु के जन्म को किस तरह प्रभावित करेगी?

मधुमेह होने से जन्म के समय जटिलताएं होने की संभावना बढ़ जाती है। इसकी वजह से समय से पहले प्रसव का खतरा भी बढ़ सकता है। सुनिश्चित करें कि आपने अपने घर के पास ही एक अच्छे अस्पताल का चयन कर लिया है और अस्पताल में आपकी स्थिति से निपटने के लिए विशेषज्ञता और उपकरण दोनों ही हैं।

जब आपका प्रसव शुरु होता है, तो नर्स आपकी रक्त शर्करा के स्तर को जांचेगी और इसे नियंत्रित करेगी। रक्त शर्करा के स्तर को स्थिर रखने से जन्म के बाद शिशु में समस्या विकसित होने से बचने में मदद मिलती है। आपके शिशु पर भी लगातार निगारानी रखी जाएगी, ताकि संकट के लक्षणों का पता लगाया जा सके।

आपकी गर्भावस्था कैसी चल रही है और आपका शिशु का वजन कितना हो गया है, इन दोनों बातों पर गौर करते हुए डॉक्टर आपके प्रसव को प्रेरित करने का निर्णय ले सकती हैं। या फिर वह 38 सप्ताह और 40 सप्ताह के बीच आपको सीजेरियन ऑपरेशन कराने के लिए भी कह सकती हैं।

यदि, आपकी डॉक्टर को लगता है कि आप और आपका शिशु एकदम ठीक-ठाक है, तो वह अपने आप प्रसव शुरु होने के इंतजार में आपको 38 सप्ताह के बाद से नियमित स्कैन कराने के लिए कह सकती हैं। ये स्कैन पड़ताल करेंगे कि आपका शिशु कैसा है और अपरा के जरिये सही रक्त आपूर्ति हो रही है या नहीं।

जब आपका प्रसव शुरू होता है, तो आपकी और शिशु की लगातार निगारानी की जरुरत होती है। अगर, आपकी डॉक्टर को आशंका होती है कि शिशु के बाहर आने में दिक्कत हो सकती है या फिर आपका शिशु किसी संकट में लगता है, तो वह आपको सीजेरियन ऑपरेशन कराने की सलाह दे सकती है।

गर्भावधि मधुमेह जन्म के बाद शिशु को किस तरह प्रभावित करेगी?

एक बार शिशु के जन्म के बाद, जब तक शिशु का शरीर सही मात्रा में इंसुलिन के उत्पादन के साथ समायोजन नहीं बिठा लेता, तब तक शुरुआत में उसके शर्करा के स्तर में कमी आ सकती है। इसे हाइपोग्लाइसीमिया कहा जाता है। आपके शिशु को पीलिया भी हो सकता है, जो कि नवजात शिशुओं में काफी आम है।

नवजात कक्ष में कुछ समय के लिए आपके शिशु के रक्त शर्करा के स्तर पर निगरानी रखने की भी जरुरत पड़ सकती है। 37 सप्ताह की गर्भावस्था से पहले जन्मे शिशुओं को कुछ दिनों के लिए नवजात गहन देखभाल इकाई (एनआईसीयू) में भी रहने की आवश्यकता हो सकती है।

जिन गर्भवती महिलाओं को गर्भावधि मधुमेह है, उनके शिशुओं में आगे चलकर मोटापा और टाईप 2 मधुमेह होने की संभावना रहती है। स्तनपान और स्वस्थ आहार व नियमित व्यायाम जैसी सेहतमंद आदतें शिशु को बड़े होने पर इन समस्याओं से बचने में मदद कर सकती हैं।

क्या शिशु के जन्म के बाद भी मुझे मधुमेह रहेगी?

शिशु के जन्म के बाद अस्पताल छोड़ने से पहले आपकी डॉक्टर आपके मधुमेह की जांच कर सकती हैं। आपको प्रसव के बाद छह हफ्तों पर होने वाली जांच में भी मधुमेह जांच कराने के लिए कहा जाएगा। सामान्यत: गर्भावधि मधुमेह शिशु के जन्म के बाद स्वत: चली जाती है।

यह माना जाता है कि गर्भावधि मधुमेह वाली पांच में से एक महिला को वास्वत में गर्भधारण करने से पहले ही टाईप 2 मधुमेह थी, जिसके बारे में उन्हें पता नहीं था। अगर, आपके मामले में भी ऐसा ही है, तो आपकी मधुमेह शिशु के जन्म के बाद भी नहीं जाएगी। मगर, गर्भावस्था के दौरान आपके द्वारा अपनाई गई कई स्वस्थ आदतें, शिशु के जन्म के बाद आपकी मधुमेह को नियंत्रित रखने में मदद करेंगी।

अब जब आपको अपनी स्थिति के बारे में पहले से ही पता होगा, तो आप अपनी अगली गर्भावस्था की योजना सही तरह से बना पाएंगी। 

अगर मुझे पहले गर्भावधि मधुमेह हो चुकी है, तो क्या यह दोबारा हो सकती है?

यह संभव है, मगर हमेशा ही ऐसा हो यह जरुरी नहीं। अगर, आपको पहले गर्भावधि मुधमेह हुई है, तो हो सकता है आपको रक्त शर्करा पर स्वयं निगरानी रखने के लिए कहा जाए। आपको गर्भावस्था के 16 और 18 सप्ताह के बीच ग्लूकोस टोलरेंस टेस्ट भी कराना पड़ सकता है। अगर, इस जांच का परिणाम सामान्य रहता है, तो भी एहतियातन आपको 28 सप्ताह की गर्भावस्था पर इसे दोबारा कराना पड़ सकता है।

अगर, पिछली बार गर्भावधि मधुमेह के दौरान आपको इंसुलिन के जरिये इलाज करना पड़ा था, तो आपको इसके दोबारा होने की संभावना ज्यादा रहती है। जिन मांओं को पहले इंसुलिन से उपचार की जरुरत पड़ी थी, उनमें से केवल एक चौथाई ही अगली गर्भावस्था में गर्भावधि मधुमेह से बच पाती हैं।

यदि, आपको गर्भावधि मधुमेह हो चुकी है, तो आपको आगे जिंदगी में टाईप 2 मधुमेह विकसित होने की संभावना रहती है। इस संभावना को कम करने के लिए डॉक्टर आपको स्वस्थ आहार, वजन नियंत्रण और व्यायाम करने की सलाह देंगी।

मधुमेह क्या है?

भाग-(क)

मधुमेह क्या है?


‘डायबिटीज मेलाइट्स’ एक जाना-पहचाना रोग है, जिसमें रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है तथा शरीर की कोशिकाएं शर्करा का उपयोग नहीं कर पातीं। यह रोग ‘इंसुलिन’ नामक रसायन की कमी से होता है, जिसका स्राव शरीर में अग्नाशय (पैंक्रियाज) द्वारा होता है। 

डायबिटीज मेलाइट्स (हारपरग्लाइसीमिया, हाई शुगर, हाई ग्लूकोज, मधुमेय ग्लूकोज इनटोलरेंस के नाम से भी जाना जाता है), का साधारण भाषा में अर्थ है–‘मीठा मूत्र’ क्योंकि प्रायः देखा गया है कि मधुमेह रोगियों के मूत्र में शर्करा पाई जाती है। उच्च रक्तचाप तथा मोटापे के साथ इस रोग को ‘मेटाबॉलिक सिंड्रोम’ कहा जाता है। इस रोग को मेलाइट्स इसलिए कहते हैं ताकि इसे डायबिटिज इंसीपिडस (Insipidus) से अलग किया जा सके जिसमें बहुमूत्र की समस्या तो आती है परंतु मूत्र में शर्करा नहीं पाई जाती। डायबिटीज मेलाइट्स सामान्यतः ‘डायबिटीज’ के नाम से ही प्रसिद्ध है। डायबिटीज या मधुमेह एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी कभी भी तत्काल लक्षणों की शिकायत नहीं करते किंतु रक्त में ग्लूकोज का बढ़ता हुआ स्तर शरीर के भीतर अवयवों तथा हृदय व गुर्दे आदि को भी नष्ट कर देता है इसलिए इसे ‘धीमी मौत’ भी कहते हैं। 

यह एक दीर्घकालीन रोग है, रोगी 30-40 वर्ष तक इस रोग के साथ जीवित रहते हैं। यदि रोगी अपनी ब्लड ग्लूकोज का स्तर नियंत्रित रखे तथा पूरी देखभाल करे तो रोग उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। वैसे तो नियमित खान-पान ही रोग को काफी हद तक संभाल लेता है किंतु व्यायाम, तनाव प्रबंधन, योग तथा रोग की संपूर्ण जानकारी के साथ रोग का निदान और भी सरल हो जाता है। यदि इस रोग से संबंधित इन बातों पर पूरा ध्यान दिया जाए तो रोगी को दवाओं का सेवन भी नहीं करना पड़ता। 

कई बार जीवनशैली में सुधार तथा दवाओं के प्रयोग से भी रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है। यदि रक्त में ग्लूकोज का स्तर नियंत्रित रखने के अन्य उपाय कारगर न रहे तो इंसुलिन एक रामबाण औषधि के रूप में मौजूद है। 

मधुमेह क्यों होता है? 
हमारे भोजन में कार्बोहाइड्रेट एक प्रमुख तत्त्व है, यही कैलोरी व ऊर्जा का स्रोत है। वास्तव में शरीर के 60 से 70% कैलोरी इन्हीं से प्राप्त होती है। कार्बोहाइड्रेट पाचन तंत्र में पहुंचते ही ग्लूकोज के छोटे-छोटे कणों में बदल कर रक्त प्रवाह में मिल जाते हैं इसलिए भोजन लेने के आधे घंटे भीतर ही रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है तथा दो घंटे में अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाता है। 

दूसरी ओर शरीर तथा मस्तिष्क की सभी कोशिकाएं इस ग्लूकोज का उपयोग करने लगती हैं। ग्लूकोज छोटी रक्त नलिकाओं द्वारा प्रत्येक कोशिका में प्रवेश करता है, वहां इससे ऊर्जा प्राप्त की जाती है। यह प्रक्रिया दो से तीन घंटे के भीतर रक्त में ग्लूकोज के स्तर को घटा देती है। अगले भोजन के बाद यह स्तर पुनः बढ़ने लगता है। सामान्य स्वस्थ व्यक्ति में भोजन से पूर्व रक्त में ग्लूकोज का स्तर 70 से 100 मि.ग्रा./डे.ली. रहता है। भोजन के पश्चात यह स्तर 120-140 मि.ग्रा./डे.ली. हो जाता है तथा धीरे-धीरे कम होता चला जाता है। 

मधुमेह में इंसुलिन की कमी के कारण कोशिकाएं ग्लूकोज का उपयोग नहीं कर पातीं क्योंकि इंसुलिन के अभाव में ग्लूकोज कोशिकाओं में प्रवेश ही नहीं कर पाता। इंसुलिन एक द्वार रक्षक की तरह ग्लूकोज को कोशिकाओं में प्रवेश करवाता है ताकि ऊर्जा उत्पन्न हो सके। यदि ऐसा न हो सके तो शरीर की कोशिकाओं के साथ-साथ अन्य अंगों को भी रक्त में ग्लूकोज के बढ़ते स्तर के कारण हानि होती है। यदि स्थिति उस प्यासे की तरह है जो अपने पास पानी होने पर भी उसे चारों ओर ढूंढ़ रहा है। 

इन द्वार रक्षकों (इंसुलिन) की संख्या में कमी के कारण रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ कर 140 मि.ग्रा./डे.ली. से भी अधिक हो जाए तो व्यक्ति मधुमेह का रोगी माना जाता है। असावधान रोगियों में यह स्तर बढ़ कर 500 मि.ग्रा./ड़े.ली. तक भी जा सकता है। 

मधुमेह रोग जटिलताओं में भरा है। सालों साल यदि रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ा रहे तो प्रत्येक अंग की छोटी रक्त नलिकाएं नष्ट हो जाती हैं जिसे माइक्रो एंजियोपैथी कहा जाता है। तंत्रिकातंत्र की खराबी ‘न्यूरोपैथी, गुर्दों की खराबी ‘नेफरोपैथी’ व नेत्रों की खराबी ‘रेटीनोपैथी’ कहलाती है। इसके अलावा हृदय रोगों का आक्रमण होते भी देर नहीं लगती। 

मधुमेह के प्रकार


डायबिटीज मेलाइट्स को निम्नलिखित वर्गों में बांटा जा सकता है– 

1. आई.डी.डी.एम. इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज मेलाइट्स (इंसुलिन, आश्रित मधुमेह) टाइप–। 
2. एन.आई.डी.डी.एम. नॉन इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज मेलाइट्स (इंसुलिन अनाश्रित मधुमेह) टाइप–॥ 
3. एम.आर.डी.एम. मालन्यूट्रिशन रिलेटिड डायबिटीज मेलाइट्स (कुपोषण जनित मधुमेह) 
4. आई.जी.टी.(इंपेयर्ड ग्लूकोज टोलरेंस) 
5. जैस्टेशनल डायबिटीज 
6. सैकेंडरी डायबिटीज 

1. टाइप–। (इंसुलिन आश्रित मधुमेह)–टाइप–। मधुमेह में अग्नाशय इंसुलिन नामक हार्मोन नहीं बना पाता जिससे ग्लूकोज शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा नहीं दे पाता। इस टाइप में रोगी को रक्त में ग्लूकोज का स्तर सामान्य रखने के लिए नियमित रूप से इंसुलिन के इंजेक्शन लेने पड़ते हैं। इसे ‘ज्यूविनाइल ऑनसैट डायबिटीज’ के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग प्रायः किशोरावस्था में पाया जाता है। इस रोग में ऑटोइम्यूनिटी के कारण रोगी का वजन कम हो जाता है। 

2. टाइप-।। (इंसुलिन अनाश्रित मधुमेह)–लगभग 90% मधुमेह रोगी टाइप-।। डायबिटीज के ही रोगी हैं। इस रोग में अग्नाशय इंसुलिन बनाता तो है परंतु इंसुलिन कम मात्रा में बनती है, अपना असर खो देती है या फिर अग्नाशय से ठीक समय पर छूट नहीं पाती जिससे रक्त में ग्लूकोज का स्तर अनियंत्रित हो जाता है। इस प्रकार के मधुमेह में जेनेटिक कारण भी महत्वपूर्ण हैं। कई परिवारों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। यह वयस्कों तथा मोटापे से ग्रस्त व्यक्तियों में धीरे-धीरे अपनी जड़े जमा लेता है। 

अधिकतर रोगी अपना वजन घटा कर, नियमित आहार पर ध्यान दे कर तथा औषधि ले कर इस रोग पर काबू पा लेते हैं। 

3. एम.आर.डी.एम.(कुपोषण जनित मधुमेह)–भारत जैसे विकासशील देश में 15-30 आयु वर्ग के किशोर तथा किशोरियां कुपोषण से ग्रस्त हैं। इस दशा में अग्नाशय पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाता। रोगियों को इंसुलिन के इंजेक्शन देने पड़ते हैं। मधुमेह के टाइप–। रोगियों के विपरीत इन रोगियों में इंसुलिन के इंजेक्शन बंद करने पर कीटोएसिडोसिस विकसित नहीं हो पाता। 

4. आई.जी.टी.(इंपेयर्ड ग्लूकोज टोलरेंस)–जब रोगी को 75 ग्राम ग्लूकोज का घोल पिला दिया जाए और रक्त में ग्लूकोज का स्तर सामान्य तथा मधुमेह के बीच हो जाए तो यह स्थिति आई.टी.जी. कहलाती है। इस श्रेणी के रोगी में प्रायः मधुमेह के लक्षण दिखाई नहीं देते परंतु ऐसे रोगियों में भविष्य में मधुमेह हो सकता है। 

5. जैस्टेशनल डायबिटीज (गर्भावस्था के दौरान)–गर्भावस्था के दौरान होने वाली मधुमेह जैस्टेशनल डायबिटीज कहलाती है। 2-3% गर्भावस्था में ऐसा होता है। इसके दौरान गर्भावस्था में मधुमेह से संबंधित जटिलताएं बढ़ जाती हैं तथा भविष्य में माता तथा संतान को भी मधुमेह होने की आशंका बढ़ जाती है। 

6. सेकेंडरी डायबिटीज–जब अन्य रोगों के साथ मधुमेह हो तो उसे सेकेंडरी डायबिटीज कहते हैं। इसमें अग्नाशय नष्ट हो जाता है जिससे इंसुलिन का स्राव असामान्य हो जाता है, जैसे– 

(1) अग्नाशय से संबंधित रोग– 
अग्नाशय में सूजन 
अग्नाशय का कैंसर 

उस वक़्त मैं जवान था

कविताएं
उस वक़्त मैं जवान था
उस वक़्त मैं जवान था
उस वक़्त मैं जवान था
पैसा था सम्मान था
पैरों में मेरे आसमान था
दिन रात व्यस्त था मैं
अपने मैं मस्त था मैं
पीछे पड़ा है कोई
इस बात से अनजान था
उस वक़्त मैं जवान था
उस वक़्त मैं जवान था
जाने न, कब किधर से
मेरे पास आ गयी वह
मैं चाहता नहीं था
फिर भी  लिपट गयी वह.
मैं चुप रहा कि कोई,
सुन ले न जान ले
शर्माओ मत उसने कहा
मेरी बात मान ले.
मेरे शर्त पर चलोगे
तेरी बंदगी करूंगी
मधुमेह हूँ मैं
जिन्दगी भर साथ रहूँगी.
सच है वह जब से आयी
अपना बना लिया है
माना फंसा लिया था
पर जीना सिखा दिया है.
खाना सिखा दिया है
सोना सिखा दिया है
पैरों पर अपने चलना
मुझको सिखा दिया है.
नज़रों पे मेरी
उसकी नज़रें लगी हुयी हैं
मेरे दिल को अपने दिल में
उसने बसा लिया है.
चूमना वह चाहती है
मेरे  पाँव को हमेशा
किडनी में छुप कर रहने का
वह देखती है सपना.
एक राज़ दिल का उसने
मुझको बता दिया है
परेशानियों में खुल कर
हँसना सिखा दिया है.
हर रोज़ दवा खाना
नियमित कराना जांच
मधुमेह डार्लिंग संग
हंस कर बिताना साथ.
“बागीश” हंसी रात है
हिम्मत से पूरे काट
उस वक़्त तू  जवान था
अब भी है तू जवान
मधुमेह संग जीने का राज
तुने लिया है जो जान.
बागेश्वरी प्रसाद मिश्रा "बागीश"

आप बीती

आप बीती
न् 2000 माह अक्टूबर, दीपावली की पूर्व संध्या अर्थात् छोटी दीपावली, स्थान-असुरन, डॉ0 आलोक गुप्ता का क्लिनिक समय 6.15 बजे सायं दाहिने पैर की एड़ी में भयंकर घाव के साथ डॉक्टर आलोक गुप्ता को दिखाना एवं घाव का इतिहास जानने के पश्चात् डाक्टर के द्वारा रैन्डम ब्लड शुगर सुगर की जांच करने पर ब्लड शुगर का 317 निकलने पर सहसा विश्वास न करना एवं पुनः उसी समय दुबारा जांच कने पर (दूसरे ग्लूकोमीटर से) रीडिंग 307 आना एवं तब तक घोषित मधुमेह मरीज बनने का झटका लगना।

उपरोक्त सारी बातें जो मेरे साथ घटित हुईं उनका पूर्व इतिहास यह है कि मेरे पैर में करीब 15 दिन पहले हल्का दाने के आकार का घाव हुआ और घाव बढ़ता चला गया किसी ने मुझे इसे चर्म रोग विशेषज्ञ से दिखाने की सलाह दी और मैं गोरखपुर मेडिकल कालेज के एक वरिष्ठ चर्म रोग विशेषज्ञ की इलाज कराने लगा और उनके द्वारा तीव्र क्षमता के दो-दो एन्टीबायोटिक देने के बावजूद भी घाव बढ़ता ही गया। मेरे लिए डा आलोक कुुमार गुप्ता के क्लिनिक पर पहुँचना वरदान बन गया। मेरे इतने बढ़े ब्लड शुगर पर डा. गुप्ता ने कहा कि मुझे आपके शुगर के बढ़ने की चिन्ता नहीं है मुझे आपके पैर की चिन्ता है, जिससे आप हाथ धो सकते हैं। उन्होंने मुझे तुरन्त इन्सुलिन लेने की सलाह दी। दूसरे दिन से ही डा. गुप्ता की देख-रेख में मैंने इन्सुलिन लेना शुरू कर दिया और घाव तेजी से भरना शुरू हो गया और करीब 10-12 दिन बाद घाव पूरी तरह से ठीक हो गया।
मैं डा. आलोक गुप्ता का पूर्ण रूपेण शुक्रगुजार हूँ कि उन्होंने समय से मुझे इन्सुलिन का इन्जेक्शन देकर मेरे दाहिने पैर को बचा लिया। एक बात का भी मैं जिक्र करना चाहूँगा कि मैंने स्वयं अपने हाथों इन्जेक्शन लगाया और मुझे किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं हुई। 15 दिन बात डा. गुप्ता ने खाना खाने के बाद का ब्लड शुगर लेवल सामान्य होने पर इन्सुलिन से हटाकर मझे खाने वाली गोलियों पर ला दिया और मैं प्रत्येक माह अपने शुगर की नियमित जांच कराता रहा और मेरा ब्लड शुगर लेवल सामान्य बना रहा। तीन-चार माह बाद मैंने गोलियों का सेवन भी पूर्णतः बन्द कर दिया और मैं प्रति माह अपने ब्लड शुगर की जांच कराता रहता हूँ और मेरा ब्लड शुगर लेवल सामान्य ही बना रहता है।
एक बात तो मैं बताना ही भूल गया कि मेरा ब्लड शुगर लेवल कैसे सामान्य बना हुआ है। मैं पेशे से यान्त्रिक कारखाना, पूर्वोत्तर रेलवे में कार्यरत हूँ। प्रतिदिन 4-5 किमी. पैदल चलता हूँ। खान-पान (कैलोरी के अनुसार) संयमित है। कभी-कभार महीने में एकाध पीस मिठाई भी खा लेता हूँ। मेरे जैसे अन्य कुछ मधुमेह रोगियों ने मिलकर यह डायबिटिज सेल्फ केयर क्लब की संस्था जो बनाई है, का मूल उद्देश्य यह है कि प्रत्येक मधुमेह रोगी इस संस्था के माध्यम से जहां प्रत्येक माह के प्रथम रविवार को विशिष्ट विशेषज्ञों द्वारा जो जानकारी प्राप्त करता है अन्य उन मधुमेह रोगियों को जो इस संस्था के सदस्य नहीं है को भी इसको लाभ देने की कृपा करें। इस संस्था का आजीवन शुल्क एक सौ रूपये मात्र है जो नाम मात्र का है।
अन्त में मैं एक मधुमेह रोगी के रूप में अने अनुभव के आधार पर इतना कहना चाहूँगा कि मधुमेह से डरने की आवश्यकता नहीं है, योग, व्यायाम, खान-पान, रहन-सहन एवं दवा के माध्यम से इससे मुकाबला करने की आवश्यकता है। नियमित जांच एवं समय-समय पर चिकित्सक के परामर्श का भी इस रोग को कन्ट्रोल करने में महत्वपूर्ण योगदान है।
विनय कुमार श्रीवास्तव
सीनियर सेक्शन इंजीनियर
एन.ई. रेलवे, गोरखपुर



गोरखपुर शहर में ‘डायबिटिज सेल्फ केयर क्लब’ का गठन अपने आप में एक अनूठा एवं सराहनीय कृति है। गोरखपुर शहर स्वास्थ्य क्षेत्र में चिकित्सकों एवं दवा निर्माता कम्पनियों के लिये अत्यन्त उपजाऊ एवं लाभप्रद क्षेत्रों में गिना जाता है।
उपरोक्त यथार्थ के विरूद्ध मधुमेहियों के निस्वार्थ भाव से सेवा, उनके ज्ञानवर्धन, आर्थिक सहायता एवं सजगता के लिये, क्लब के पदाधिकारी, कलल चैरसिया, प्रदीप त्रिपाठी, वेदानन्द बधाई के पात्र हैं। डॉ. आलोक कुमार गुप्ता जी जो इस क्लब के मेरूदण्ड हैं वास्तव में सफल मधुमेह चिकित्सक के अलावा एक सच्चे समाज सेवक हैं।
मुझे पिछले बीस सालों से मधुमेह रोग हैं। मैं शारीरिक श्रम, चिन्ता मुक्त जीवन, दवाओं के सेवन, नियमित जांच के सहारे आज तक स्वस्थ हूँ। मैं जब भी डॉ. गुप्ता के दवाखाना पर जाता था, वे मधुमेह के बारे में विस्तृत जानकारी देते थे। प्रति सप्ताह शनिवार के दिन दोपहर में विशेष रूप से बुलाते थे। उस दिन साहित्य, वीडियो, छायाचित्रों आदि के माध्यम से विशेष जानकारी देते थे।
मधुमेह ऐसी बीमारी है, जिसमें डाक्टर से अधिक मरीज को सर्तक एवं शिक्षित होने की आवश्यकता है। शरीर आप का है। मधुमेह की जटिलताएं, धीरे अनियमित होने से बढ़ती जाती है। इसका प्रभाव, हृदय, किडनी, आंख, पैर पर विशेष रूप से पड़ता है। आप को सजग रहना होगा। प्रति 6 माह पर हृदय, किडनी, आंख, पैर आदि की जांच अवश्य करा लेनी चाहिए। अपने डाक्टर के सम्पर्क में बराबर रहना चाहिए।
मधुमेह के बारे में अज्ञात होने के कारण लोगों को अपने पैर कटवाने पड़ते हैं। हृदयाघात हो जाता है। किडनी फेल हो जाती है। आंखों की दृष्टि चली जाती है लेकिन आप सजग हैं, मधुमेह नियंत्रित रखते हैं, डाक्टर के बराबर सम्पर्क में हैं, व्यायाम करते हैं तो आरम्भिक अवस्था में इनका निदान दवाओं आदि से शत-प्रतिशत संभव है। आप सामान्य जीवन लम्बे समय तक जी सकते हैं।
डायबिटिज सेल्फ केयर क्लब प्रत्येक माह के प्रथम रविवार को एक कार्यशाला का आयोजन नेपाल क्लब में आयोजित करता है। शहर एवं प्रान्त तथा इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का व्याखान होता है। मुफ्त शुगर चेकिंग तथा अन्य शिक्षाप्रद कार्यक्रम होते हैं। निःशुल्क जांच आयोजित होते हैं। मात्र 100/- रूपये के आजीवन सदस्यता शुल्क है। शहर के विभिन्न पैथालोजी केन्द्रों पर संस्था के सदस्यों हेतु पच्चीस प्रतिशत की छूट दी जाती है। विभिन्ना कंपनियों द्वारा ग्लूकोमीटर आदि यन्त्रों पर विशेष छूट प्रदान की जाती है। प्रतिवर्ष नवम्बर माह में वा£षक उत्सव मनाया जाता है।
क्लब में, योग, मनोरंजन सामाजिक सौहार्द पर विशेष ध्यान दिया जाता है। क्लब के सदस्य बड़े बेसब्री से माह के प्रथम रविवार का इन्ताजार करते हैं। यह नहीं प्रतीत होता कि हम किसी बिमारी के लिए किसी अस्पताल या डाक्टर के पास जाते हैं। लगता है अपने मिगो परिवार में मिलते एवं आनन्द के लिए जा रहे हैं।
हमारा जीवन बहुमूल्य है। इससे भी अधिक हमारी आने वाली संतानें, हमारे बच्चे अमूल्य हैं। मधुमेह का ज्ञान हमें, हमारे बच्चों को, हमारे समाज को, हमारे देश के भविष्य को बचा रहा है। इसमें ‘डायबिटिज सेल्फ केयर क्लब’ गोरखपुर का भी आज एक छोटा पवित्र प्रयास है लेकिन हमें आशा है एक दिन यह पूरे प्रदेश एवं देश में अपना प्रमुख स्थान ग्रहण करेगा। हमें आशा है कि आप स्वयं उपरोक्त कथनों का परीक्षण स्वयं आकर करेंगे।
‘बागीश’

मधुमेह एवं वृक्क रोग, मूत्र रोग एवं जननेन्द्रिय रोग

मधुमेह एवं वृक्क रोग, मूत्र रोग एवं जननेन्द्रिय रोग

धुमेहः जब मानव शरीर में रक्त शर्करा नियमन की शक्ति न रहे उसे कहते हैं। अधिक रक्त शर्करा एवं नसों के प्रभावित होने से मूत्राशय मूत्रत्याग के बाद पूरी तरह से खाली नहीं होता है। परिणामतः बचे हुए मूत्र एवं मूत्र में शर्करा की मात्रा अधिक होने से मूत्राशय का इन्फेक्शन अधिक एवं बार-बार होता है। ऐसे रोगी द्वारा बार-बार मूत्र त्याग करना, मूत्र मार्ग में जलन एवं अपूर्ण मूत्र त्याग का अहसास होता है। रोग के अधिक बढ़ने पर मूत्र त्याग बिना संज्ञान के एवं स्वतः होने लगता है। ऐसा होने पर व्यक्ति यापन के स्तर एवं कार्य कुशलता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

अनियमित रक्त शर्करा जननेन्द्रियों के संक्रमण को आमंत्रित करती हैं मुख्यतः फंगस का संक्रामण। यह स्त्रियों को अधिक प्रभावित करता है। परिणामतः जननेन्द्रियों में जलन, खुजली एवं अनुचित स्राव होता है, जिससे जीवन यापन के स्तर एवं कार्यकुशलता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
मधुमेह कई वर्षों तक अनियत्रिंत रहने पर पुरूष जननेन्द्रियों पर नपुंसकता के रूप में विपरीत प्रभाव डालता है, जिससे वैवाहिक जीवन प्रभावित होता है। कुछ विपरीत प्रभाव नारी जननेंद्री पर भी पड़ता है जिस पर बहुधा ध्यान नहीं दिया जाता है।
मधुमेह, वृक्क अकार्यकुशलता का प्रमुख कारण है। दिन प्रतिदिन ऐसे रोगियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। रोग के बढ़ने पर ऐसे रोगियों को डायलिसिस (रक्त शोधन) अथवा/एवं वृक्क प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ती है, जो अत्यधिक मंहगें एवं आम व्यक्ति की पहुँच से बाहर है। अतः इसका बचाव ही मुख्य मुद्दा होना चाहिए।
मधुमेह, उच्चरक्त चाप, रक्त में वसा की अधिक मात्रा एवं तम्बाकू का सेवन आपस में मिलकर वृक्क को अल्पायु कर देते हैं। साथ ही साथ रोगी भी अल्पायु हो जाता है।
मधुमेह जनित वृक्क रोग, रोगी की कार्यकुशलता, रोजगार तथा जीवन यापन के स्तर पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। रो बा आर्थिक पहलू रोगी एवं परिवार की वृद्धि एवं सम्पन्नाता को विपरीत प्रकार से प्रभावित करता है।
लम्बे समय का अनियंत्रित मधुमेह वृक्क की सूक्ष्म रक्त कोशिकाओं को बंद करता है तथा वृक्क की सूक्ष्म संरचना (ग्लोमेरूलस) नामक सूक्ष्म कार्य इकाई पर मैट्रिक्स नाम प्रोटीन का जमाव करता है। परिमाणतः ग्लोमेरूलस अधिक रक्त दबाव पर कार्य करते हैं। यहीं से वृक्क अकार्यकुशलता का प्रारम्भ होता है:-
मधुमेह के ऐसे रोगी सतर्क रहें:
(क) आंख की रेटिना पर मधुमेह का प्रकोप हो (डायबेटिक रेटिनापैथी)
(ख) मूत्र में प्रोटीन का रिसाव
सूक्ष्म रिसाव 30-300 mg/day
वृहद रिसाव 300 mg प्रतिदिन से अधिक
(ग) रक्त चाप बढ़ने पर
(घ) पांच वर्ष से अधिक का मधुमेह होने पर
ध्यान रहे वृक्क कार्यकुशलता को जानने के लिये कराये जाने वाली आम रक्त जांच (urea/creatinine) के बढ़ने से पहले ही मधुमेह वृक्क को प्रभावित कर देता है।
बचावः
जो निम्न बिन्दुओं पर आधारित है।
(क) रक्त शर्करा का नियमन
(ख) रक्तचाप का नियमन
     <130 hg="" mm="" of="" p="">प्रोटीन रिसाव होने पर <100 hg="" mm="" of="" p="">(ग) जीवन शैली में बदलाव
(घ) तम्बाकू का परहेज
(ड.) औषधि विशेष का सेवन
    ACE Inhibitor
    A-II Receptor blocker
(च) प्रोटीन का सेवन कम करें (प्रोटीन का रिसाव होने पर)
     0.8 gm/kg/day
डा0 अरविन्द त्रिवेदी
सह आचार्य नेफ्रोलोजी
बी.आर.डी मेडिकल कालेज-गोरखपुर

मधुमेही और उसके परिवारजन

मधुमेही और उसके परिवारजन
मैं आपको डराना नहीं चाहता। मैं तो केवल अपने अनुभव आपके साथ बांटना चाहता हूँ। और उन पर से आपसे पूछना चाहता हूँ कि आप का कर्तव्य-मधुमेही के नाते या उसके परिवारजन के नाते क्या बनता है यदि आपने इस प्रकार कभी सोचा नही है तो अब सोचिए। हम आपकी मदद करना चाहते है। और अवश्य करेगें।

आपको पहले कुछ अनुभव सुनाये। लगभग बीस वर्ष पूर्व एक महाशय जिनकी उम्र लगभग 41 वर्ष थी मेरे पास मेडिकल परामर्श के लिये आये। वे बहुत डरे हुए से लगे। मैने उन्हे बिठाया और पूछा आप क्या सलाह चाहते है। आपको क्या तकलीफ है उन्होने कहा फिलहाल मुझे कोई तकलीफ नही है। मैने पूछा तो फिर आप इतना डर क्यो रहे है। आप डरिये नहीं जो भी बात हो मुझे बतायें, मैं जो भी मदद कर सकता हूँ जरूर करूगां। मेरे आश्वस्त करने पर उसने मुझे अपने परिवार की कहानी सुनाई।
उसने कहा-सर, मेरे दो भाई और थे। एक जो बड़े थे उनकी 46 वर्ष की उम्र थी लेकिन उनकी हार्ट अटैक से मौत हो गई । मेरे दूसरे भाई की उम्र उस समय 44 वर्ष की थी और 2 वर्ष बाद उनकी भी हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई। मेरी उम्र अभी 41 वर्ष है और आगे मेरे साथ भी ऐसा कुछ न हो जाये इसीलिये मैं अंदर ही अंदर बहुत डर रहा हूँ । मैंने उसे हिम्मत दिलाई और बाकी सदस्यों के स्वास्थ के बारे में पूछा और उसकी कुछ जाँचों के बारे में बताया। उसका परीक्षण किया । उसकी एक जांच में कोलेस्ट्राल की मात्रा लगभग 400 मि.ग्रा. प्रतिशत निकली। मैंने उसे आश्वस्त किया कि तुम्हारी हृदय की जाँच E.C.G. ब्लडशुगर ब्लड प्रेशर आदि सभी ठीक हैं केवल तुम्हारा वजन थोड़ा ज्यादा है और तुम्हारे रक्त में कोलेस्ट्रोल बढ़ा हुआ है। उन दिनों ‘लिपिड प्रोफाईल’ आसानी से नहीं होता था, अतः वह हम नहीं करवा पाये। हमने उसको भोजन के वसा संबंधी परिवर्तन करने को कहा और कोलेस्ट्रोल कम करने की दवाई दी और समय-समय पर मिलते रहने के लिये कहा। बाद में वह काफी आश्वस्त लगा और खुश दिखा। 3-4 वर्ष तक हमारा संपर्क बना रहा और वह ठीक हो गया।
अब हम आपको दूसरे मरीज जिसको हमने 2004 में देखा था। उसकी पारिवारिक कहानी बताते है। इस रोगी की उम्र भी 46 वर्ष थी। वह हमसे मधुमेह के लिये परामर्श लेने आया था। वह पहले से ही मधुमेह के लिये शुगर की जाँच करवा कर आया था। उससे जब हमने उसके परिवार का रोग सम्बन्धी इतिहास पूछा तो उसने मुझे सभी बातें बतायी।
मैंने उसे उचित उपचार मधुमेह एवं बी.पी. के लिए बतलाया। वह ले रहा है और स्वस्थ है। उपरोक्त 2 प्रकार के रोगियों के पारिवारिक इतिहास से हमें कई प्रकार की शिक्षा मिलती हैं। जो हम निम्नानुसार विश्लेषण कर सकते हैं-

  1. हर रोगी के लिये, खासकर के मधुमेही के लिये अपने परिवार का रोग संबंधी इतिहास उसकी बीमारी को समझने में मदद करता है। अतः पारिवारिक रोग संबंधी इतिहास जानना जरूरी है। मधुमेह के रोग का निदान करने में मदद मिलती है।
  2. दोनों मरीजों के पारिवारिक इतिहास से यह भी स्पष्ट होता है कि-कुछ बीमारियाँ जैसे- मधुमेह, उच्च रक्तचाप (Hypertension) मोटापा और हृदय रोग एक-दूसरे से संबंधित हैं और परिस्थिति अनुसार परिवार के सदस्यों में प्रकट होते हैं। प्रकट होने का अंश एवं अनुपात हर एक में अलग-अलग होता है। इनके आपसी संबंध को समझने से किसी रोगी के रोग की गम्भीरता का अंदाजा लगाकर उचित जाँच एक उपचार में मदद मिलती है।
  3. प्रथम रोगी के इतिहास में दो भाईयों को हृदय रोग हुआ तो तीसरे को अति वसा (High cholesterol) की बीमारी निकली इन दोनों परिस्थितियों को भी एक दूसरे से संबंधित माना जाता है और अतिवसा की स्थिति को हृदय रोग का उत्तेजक गुणक (Risk Factor) माना जाता है।
  4. रोग होने के 20 वर्ष पश्चात लगभग सभी टाइप-1 मधुमेह रोगियो में और 60% से अधिक टाइप-2 मधुमेह रोगियों में आँख के पर्दे (रैटिना) में खराबी आ जाती है।
  5. दूसरे रोगी के परिवार में जो उनके पाँचवे भाई हैं।, उन्हें भी मधुमेह नहीं हुआ है। यदि वह अपने मोटापे और हाई बी.पी. को नियंत्रित कर लें तो वह निश्चित ही मधुमेह एवं हृदय रोग से बच सकता है।
  6. दोनों रोगियो के परिवार के इतिहास बताते हैं कि मधुमेह, हृदय रोग एवं उच्च रक्तचाप न केवल एक दूसरे से सम्बन्धित है किन्तु काफी हद तक वंश परम्परा से भी सम्बन्धित है।
  7. प्रथम रोगी एवं द्वितीय रोगी की बीमारीयों का ठीक से निदान एवं उपचार से यह भी जाहिर होता है कि इन बीमारियों को आगे बढ़ने से एवं उनके दुष्परिणामो से बचा भी जा सकता है। अतः बीमारी मालूम होने पर लगन एवं मेहनत से इलाज करना चाहिए ।

आज कल जब किसी रोगी में मोटापा, उच्च रक्तचाप (हाई बी.पी.) मधुमेह एवं अतिवसा (खून में ज्यादा कोलेस्ट्राल) की स्थिति पाई जाती है तो इस परिस्थिति को, यानि इस समूह की बीमारियों को हम सिंड्राम-एक्स (Syndrome-X) का नाम देते है। ऐसा माना गया है कि इनका कारण भी एक हो सकता है, जिसे "इंसुलिन रेसिस्टेंस" कहते है। उपरोक्त बिमारियां अलग-अलग नाम से आगे -पीछे प्रकट होती है। अतः हमे यह समझना चाहिए कि यदि एक रूप जैसे-मधुमेह सामने आये तो हमे अन्य रूपों के बारे मे भी निदान कर के मरीज का व्यापक रूप से इलाज करना चाहिए । यह मरीज का भी कर्तव्य बनता है कि वह डाक्टर की बात समझे एवं माने। ज्यादातर मरीज एैसा नही करते है। उन्हे डाक्टर से सहयोग करना चाहिए।
अब हम अपने प्रथम एवं अन्तिम प्रश्न पर आते है। हमने पूछा था कि इन परिस्थितियों में मधुमेह रोगी की और परिवारजनों की क्या भूमिका बनती है।
हमारे अनुसार मधुमेह के रोगी को, बीमारी मालूम होने पर घर के अन्य सदस्यों को इसके बारे में आगाह करना चाहिए । जिससे अन्य सदस्य इससे बचने का प्रयास करे। हम आपको भरोसा दिलाते है कि अन्य सदस्य थोड़ी जीवन शैली में बदलाव लाकर मधुमेह से बच सकते है। फिर मधुमेही को घर के सदस्यों का सहारा लेकर अपनी बीमारी को सही ढंग से नियन्त्रित करना चाहिए। आम तौर पर होता यह है कि मधुमेही अकेले ही, बेमन से अपनी बीमारी से लड़ता है।, और ज्यादातर हारता है। मधुमेही चाहे तो घर के अन्य सदस्यों को मधुमेह से बचा सकता है।
मधुमेही को चाहिए कि वह मधुमेह से डरे नही, मधुमेह को छुपाये नहीं, और अपने परिवार का इतिहास ठीक से डाक्टर को बताये, शर्म या हीनता की भावना न रखें । जहां तक परिवार के सदस्यों की बात है वे भी इसी प्रकार व्यवहार करे। मधुमेही को सहयोग करे। समय समय पर मधुमेही के साथ डाक्टर के पास जायें और उसकी जरूरतों को जैसे उचित जांच एवं इलाज को समझे। वर्तमान में घर का कोई सदस्य मधुमेही की देख रेख में विशेष रूचि नही लेता है।
इस प्रकार सजग होकर मधुमेही और उसका परिवार दुविधा के अन्धकार से बचकर स्वस्थ परिवार के रूप में रह सकते है।
अब जबकि विश्व में यह लगभग माना जाने लगा है कि भारत में मधुमेह एक महामारी का रूप ले रही है और कुछ लोग भारत को मधुमेह की राजधानी कहने लगे है, तो हमे इस विषय पर जागरूकता से सोचने की जरूरत है। संयोग से सन् 2006 का 14 नवम्बर विश्व मधुमेह दिवस का विश्व स्वास्थ संघ का नारा ‘‘ मधुमेह की देखभाल सबके लिये’’ भी यही दर्शाता है। अतः मधुमेही उसका परिवार एवं प्रत्येक व्यक्ति इस चुनौति को स्वीकारें और इस दिशा में काम करें तभी हमारा भला होगा। और हम मधुमेह को नियन्त्रित कर पायेगें।
डॉ. एस.एस. येसीकर
पूर्व प्रोफेसर ऑफ मेडिसिन
एवं मधुमेह विशेषज्ञ-भोपाल

इन्सुलिन पंप

इन्सुलिन पंप
न्सुलिन पंप एक मोबाइल फ़ोन के आकार का यन्त्र होता है जिसे टाइप-1 एवं इन्सुलिन पर नियंत्रित टाइप 2 मधुमेह रोगियों में बेहतर रक्त शर्करा नियंत्रण के लिए प्रयोग में लाया जाता है. इन्सुलिन पंप के कार्यविधि को समझने के लिए एक स्वस्थ मनुष्य में शर्करा नियंत्रण किस प्रकार होता है इसको समझना आवश्यक है.

स्वस्थ शरीर में शर्करा नियमन :

एक स्वस्थ मनुष्य भोजन के दृष्टिकोण से सदैव दो अवस्था में रहता है :
अ)खाली पेट
ब) भोजनोपरान्त.

दोनों ही अवस्था में शरीर के विभिन्न गतिविधियों को चलाने के लिए उसे ऊर्जा कि आवश्यकता होती है. यह ऊर्जा उसे रक्त में उपस्थित ग्लूकोज(शर्करा) से प्राप्त होती है. रक्त ग्लूकोज को ऊर्जा में परिवर्तित करने में इन्सुलिन की महत्पूर्ण भूमिका होती है. जब हम खाली पेट होते हैं या सो रहे होते हैं तब भी शरीर में बहुत सी गतिविधियाँ नेपथ्य में चल रही होती हैं जैसे आँतों द्वारा पाचन क्रिया, ह्रदय द्वारा रक्त का संचार, फेफड़ों द्वारा सांस की क्रिया, गुर्दों द्वारा मूत्र बनाने की क्रिया इत्यादि. इसे हम शरीर की मूलभूत गतिविधि कहते हैं. इस मूलभूत गतिविधि के लिए भी ऊर्जा कि आवश्यकता होती है और इसके लिए इन्सुलिन की. जब हम खाली पेट होते हैं तब भी इस मूलभूत ऊर्जा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए शरीर में स्थित पैंक्रियास ग्रंथि द्वारा मूलभूत स्तर पर कुछ इन्सुलिन का स्राव होता रहता है जिसे हम basalbasalबेसल इन्सुलिन स्राव (basabasal insulin release) कहते हैं. basal

उपरोक्त चित्र में इसे सब से नीचे नीले रंग की पट्टी से दर्शाया गया है. जब जब हम कुछ खाते हैं तो भोजन के पश्चात carbohydratकार्बोहायड्रेट के पच कर ग्लूकोज में बदलने और आँतों द्वारा इसे अवशोषित कर रक्त में पहुचने के कारण रक्त में ग्लुकोज का स्तर बढ़ जाता है , इस बढे ग्लूकोज के निस्तारण के लिए पैंक्रियास द्वारा रक्त शर्करा के अनुरूप उचित मात्र में अधिक इन्सुलिन का स्राव किया जाता है जिसे बोलसस्राव (bolus release)  कहते हैं. जिसे उपरोक्त चित्र में lलाल रंग से तीन बार दर्शाया गया है. इस प्रकार आप देखते हैं कि बेसल और बोलस इन्सुलिन स्राव द्वारा सतत रक्त शर्करा का नियंत्रण एक स्वस्थ शरीर में पैंक्रियास द्वारा किया जाता है जिसे आप चित्र में सब से ऊपर दर्शाए गए ग्लूकोज के  ग्राफ द्वारा देख सकते हैं.
मधुमेह रोगी कि स्थिति :
यद्यपि मधुमेह रोग होने के बहुआयामी कारक हैं तदापि दो कारक प्रमुख हैं: 1) शरीर में इन्सुलिन के प्रति प्रतिरोध(insulin resistance in insulin receptors) और 2) पैंक्रियास ग्रंथि में बीटा कोशिकाओं की संख्या एवं कार्य क्षमता में कमी(Beta cell failure). एक स्वस्थ मनुष्य की तुलना में मधुमेह रोगी में रक्त शर्करा के अनुरूप उचित मात्र में इन्सुलिन स्रावित करने की क्षमता में कमी आ जाती है, खाली पेट और भोजनोपरांत दोनों ही अवस्था में. खाने की दवाओं के द्वारा इन दोनों ही कारकों यथा इन्सुलिन प्रतिरोध और बीटा कोशिकाओं की क्षमता में  कमी को पटरी पर लाने का प्रयास किया जाता है. टाइप 2 मधुमेह रोग के प्रारम्भिक काल में अधिकाँश रोगीयों में इस में सफलता भी मिलती है. किन्तु टाइप 1 मधुमेह रोगीओं एवं अधिकाँश टाइप 2 रोगियों में आगे चल कर इन्सुलिन देने की ज़रुरत पड़ती है.
बाह्य इन्सुलिन की बाधाएं:
जब हम बाहर से इन्सुलिन की पूर्ति करते हैं तो उसका सम्पूर्ण लाभ लेने के लिए यह अत्यंत आवश्यक होता है कि उसकी कार्यविधि शरीर द्वारा नैसर्गिग कार्यविधि से मेल खाए. इसके लिए शीघ्र कार्य करने वाले(rapid acting insulin) और लम्बी अवधि तक कार्य करने वाले(Long acting insulin) इन्सुलिन का अविष्कार किया गया है और निरंतर उसकी कार्य क्षमता में बेहतरी के लिए शोध जारी है. लम्बी अवधि वाले इन्सुलिन को बेसल इन्सुलिन भी कहते है और यह दिन में एक से दो बार दिया जाता है और इस से शरीर के मूलभूत(basal) इन्सुलिन की ज़रुरत को पूरा करने का प्रयास किया जाता है.Background or Basal Insulin Replacement Compared with Natural, Non-diabetic Insulin Secretion
उपरोक्त चित्र में इसे नीले बिन्दुदार क्षैतिज रेखा के द्वारा दर्शाया गया है.
शीघ्र कार्य करने वाले इन्सुलिन, जिसे रैपिड या बोलस इन्सुलिन भी कहते हैं को भोजन के साथ दिया जाता है. इस प्रकार नैसर्गिग रूप से शरीर द्वारा बेसल और बोलस स्राव की नक़ल करने का प्रयास किया जाता है. इस के लिए हमें दिन में 4 से 5 बार इन्सुलिन देना पड़ता है, जो अधिकाँश रोगियों के लिए व्यावहारिक नहीं होता. इस के लिए दोनों प्रकार के इन्सुलिन का मिश्रण भी बनाया जाता है जिसे दिन में दो बार लेना होता है, लेकिन कई बार इससे उचित नियंत्रण नहीं मिलता.

उपरोक्त चित्र में लाल रंग की रेखा द्वारा दिन में तीन बार रैपिड इन्सुलिन को दर्शाया गया है.

इन्सुलिन पंप:
उपरोक्त बातों को समझने के बाद आईये अब हम इन्सुलिन पंप क्या है और इसकी कार्यविधि क्या है इसको समझते हैं. इन्सुलिन पंप एक कंप्यूटराइज्ड यन्त्र है जिसका आकार मोबाइल फ़ोन के जैसा होता है और यह नैसर्गिक पैंक्रियास कि भांति कार्य करता है. इस यन्त्र में रैपिड इन्सुलिन एक रिफिल में भर कर डाल दिया जाता है. प्रोग्रामिंग के जरिये यह इन्सुलिन त्वचा के नीचे डिलेवर किया जाता है.

एक महीन से ट्यूब के माध्यम से इन्सुलिन की डिलीवरी की जाती है. ऊपर दिए गए चित्र में आप देख सकते हैं कि पेट के ऊपर एक स्टीकर लगा हुआ है, इस स्टीकर में एक बहुत ही बारीक ट्यूब लगा होता है जिसे एक यन्त्र के माध्यम से त्वचा के अन्दर डाल दिया जाता है और स्टीकर को पेट पर चिपका दिया जाता है. यह स्टीकर 4 दिनों तक कार्य करता है. पंप के रिफिल को एक ट्यूब के ज़रिये इस स्टीकर से जोड़ दिया जाता है, जिसे जब चाहें स्टीकर से अलग किया जा सकता है,जैसे नहाते समय, तैरते समय. पंप कनेक्ट करने के पश्चात इन्सुलिन की डिलीवरी दो चरणों में की जाती है. रोगी की 24 घंटों में बेसल इन्सुलिन की क्या ज़रुरत है इस का आकलन किया जाता है और प्रोग्रामिंग के माध्यम से उसे थोडे अंतराल पर निरंतर पंप किया जाता है ठीक वैसे ही जैसे पैंक्रियास द्वारा किया जाता है.इसे रोगी के आवश्यकतानुसार 24 घंटों में अलग अलग भागों में बांटा भी जा सकता है.

दिए गए चित्र में आप देख सकते हैं कि बेसल इन्सुलिन नीचे सलेटी रंग में दर्शाया गया है. अब आते हैं भोजनोपरांत इन्सुलिन की आवश्यकता की पूर्ति पर. रोगी जब भोजन करता है तब भोजन में लिए गए carbohydrate कार्बोहायड्रेट के अनुरूप वह इन्सुलिन की जितनी आवश्यकता होती है उसे पंप में प्रोग्राम कर के डिलीवर कर देता है. इस प्रकार वह चार दिनों तक बिना इंजेक्शन लगाये जब जितनी आवश्यकता हो उतना इन्सुलिन लेता रहता है. इस प्रकार भोजन,इन्सुलिन कि मात्रा,भोजन के समय, कितनी बार इन्सुलिन दिया जाए इन सब में एक लचीलापन (flexibility)आ जाता हैजो रक्त शर्करा नियमन में सहायक होता है. दिन में कई बार इन्सुलिन का इंजेक्शन लेने से मुक्ती मिल जाती है वह अलग. साथ ही इन्सुलिन की मात्रा में भी 20 से 30% तक की कमी आ जाती है. दिए गए चित्र में बोलस इन्सुलिन को लाल ग्राफ से दिखाया गया है.
चूंकि यह एक यन्त्र है अतः इस का सही उपयोग करने के लिए रोगी को प्रशिक्षित करना आवश्यक होता है और इसका उपयोग प्रारम्भ में किसी एक्सपर्ट की देख रेख में करना होता है. पंप के प्रोग्रामिंग सॉफ्टवेयर और फीचर के मुताबिक़ उसके कई मॉडल उपलब्ध हैं जिनका यहाँ विस्तृत वर्णन करना संभव नहीं है. किस रोगी को कौन पंप लेना है इसका चयन चिकित्सक और रोगी मिलकर तय करते हैं.इस प्रकार हम देखते हैं कि इन्सुलिन पंप कृत्रिम पैंक्रियास कि दिशा में वैज्ञानिको द्वारा बढाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है.

इन्सुलिन प्रयोग के लिए आवश्यक निर्देश

इन्सुलिन प्रयोग के लिए आवश्यक निर्देश
इन्सुलिन सुरक्षित रखने के लिए निर्देश
  1. जहाँ तक संभव हो, इन्सुलिन को रेफ्रिजरेटर के अन्दर निर्धारित तापमान 2° से 8° सेल्सियस (36° से 46° फॉरेनहाइट) पर रखना चाहिए।
  2. जमे (बर्फीले) हुए इन्सुलिन का प्रयोग बिल्कुल न करें, (ध्यान रखें इन्सुलिन को रेफ्रिजरेटर के कूलिंग सिस्टम के बहुत पास अथवा फ्रीजर बाक्स में कत्तई न रखें)
  3. यदि आप अपने इन्सुलिन को रेफ्रिजरेटर में नहीं रख सकते तो उसे ठण्डे व अंधेरे स्थान में रखें।
  4. जमे (बर्फीले) हुए इन्सुलिन का प्रयोग बिल्कुल न करें, (ध्यान रखें इन्सुलिन को रेफ्रिजरेटर के कूलिंग सिस्टम के बहुत पास अथवा फ्रीजर बाक्स में कत्तई न रखें)
  5. इन्सुलिन को अधिक गर्म स्थान पर न रखें जैसेः-
    (क) कार के ड्रायविंग सीट के पास की जगह
    (ख) धूपदार खिड़की के पास
    (ग) कुकिंग रेंज या गैस स्टोव के निकट
    (घ) बिजली के उपकरणों के ऊपर जैसे- टेपरिकार्डर, टी.वी. इत्यादि।
  6. हवाई जहाज में यात्रा करते समय सारे इन्सुलिन वॉयल अपने साथ के केबिन बैग में ही रखें, सूटकेसों या दूसरे सामानों के साथ नहीं ताकि वह आपके साथ रहें।
  7. यात्रा के समय बीमारी का खतरा बना रहता है जिसके कारण आपको अधिक इन्सुलिन की आवश्यकता पड़ सकती है।
* इन्सुलिन वॉयल जो इस्तेमाल में है उसे कमरे के तापमान (25° सेल्सियस) पर करीब एक माह तक रखा जा सकता है। सफेद पड़े, दाने जमे हुए या भूरे हो गये इन्सुलिन का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
इन्सुलिन मिलाने का तरीका
जल्दी असर करने वाली (पारदर्शी) इन्सुलिन तथा देर तक असर दिखाने वाली (धुंधली) इन्सुलिन को एक ही सिरिंज में कैसे मिलायें।
  1. खाली सिरिंज में निर्धारित धुंधली इन्सुलिन की मात्रा के बराबर हवा खीचें।
  2. हवा को धुंधली इन्सुलिन वाले वॉयल में भर दें परन्तु इन्सुलिन न खींचे।
  3. सूई को बाहर निकाले लें और वॉयल को एक तरफ रख दें।
  4. खाली सिरिंज में पारदर्शी इन्सुलिन की निर्धारित मात्रा के बराबर हवा खींचे तथा हवा को पारदर्शी इन्सुलिन के वॉयल में भर दें।
  5. वॉयल को उल्टा कर पारदर्शी इन्सुलिन की बतायी गयी मात्रा से थोड़ी अधिक मात्रा सिरिंज में खींच लें।
  6. अब वॉयल को आंख के स्तर पर रखें तथा मात्रा से अधिक खींची हुई इन्सुलिन को हवा के बुलबुलों के साथ वॉयल में वापस भर दें। इसके बाद सूई बाहर निकाल लें।
  7. अब धुंधली इन्सुलिन वाला वॉयल लें जिसमें हवा भरी गयी थी, सूई अन्दर डालकर बताई गयी निर्धारित मात्रा* सिरिंज में खींच लें।
  8. सूई को बाहर निकाल लें, अब यह मिश्रण इस्तेमाल के लिए तैयार है।
* यदि असावधानी के कारण सिरिंज में धुंधली इन्सुलिन की निर्धारित मात्रा से अधिक मात्रा निकल जाये तो गलती को सुधारने के लिए धुंधली इन्सुलिन की अधिक मात्रा को वॉयल में वापस न डालें, अब सिर्फ एक ही उपाय है, सिरिंज का खाली कर पूरी प्रक्रिया फिर से शुरू करें।
इन्सुलिन इंजेक्शन लगाने का तरीका
  1. सिरिंज में पर्याप्त इन्सुलिन खींचे, सिरिंज में भर आये हवा के बुलबुलों को हल्के से हिलाकर हटायें।
  2. आवश्यकता से अधिक इन्सुलिन की मात्रा को वॉयल में वापस भर दें तथा सूई को वॉयल से खींच लें।
  3. सूई लगाने वाली जगह की त्वचा अच्छी तरह से बटोर कर पकड़ लें तथा सूई को 45° के कोण से त्वचा के नीचे घुसायें।
  4. इन्सुलिन को धीरे-धीरे अन्दर जाने दें, फिर एक उंगली से इंजेक्शन स्थल को दबा कर सूई को बाहर निकालें।
  5. इंजेक्शन लगाने के स्थान को बदलते रहें, क्योंकि एक ही जगह इंजेक्शन लगाने से त्वचा के नीचे घाव पड़ सकते हैं।
* नष्ट किये जा सकने वाले डिस्पोजेबल सिरिंजों को अवश्य नष्ट कर दें ताकि वे दूसरों को नुकसान न पहुँचा सकें, शीशे व धातु के सिरिंज को इस्तेमाल से पहले ठीक से साफ कर लें, सिरिंज के अवयवों को 10 मिनट तक पानी में उबालें, सिरिंज उबालने का बर्तन किसी अन्य कार्य के लिये प्रयोग न करें, उबालने के तुरन्त बाद उसके अवयवों को उठा लें।