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Sunday, July 12, 2009
लान्टस इंसुलिन और कैंसर पर अध्ययन के बारे में
रविवार को 5 जुलाई, 2009
अमेरिकन एन्दोक्किन सोसायटी जोखिम अध्ययन
रविवार को 5 जुलाई, 2009
अमेरिकन एन्दोक्किन सोसायटी रोगियों के लिए एक लेख जारी किए हैं
हाल ही में वहाँ जर्मनी से एक अध्ययन किया गया
यह दिखाया की लान्टस का उपयोग करने वाले लोगों में कानसर का होने का कतरा अधिक है
अमेरिकन एन्दोक्किन सोसायटी की राय है की
जर्मन समाज कि इस अध्ययन अधूरी है.
हाल के यह चार अन्य अध्ययनों से समझा.
वे लान्टस और कैंसर के खतरे के बीच एक रिश्ता नहीं दिखा था.
इस लेख कहती है
"इस एन्दोक्किन समाज और हार्मोन फाउंडेशन,
एन्दोक्किन सोसायटी से जो जन शिक्षा के लिए सम्बद्ध है.
रोगियों को उनके वर्तमान इंसुलिन थेरेपी से जारी रखनेका सलाह देती है
जब तक वे अपने चिकित्सकों के साथ एक विशेष इन्सुलिन उपचार क्यों निर्धारित था.इन कारणों के बारे में चर्चा नहीं करते है और उनके सही राइ जान थे है .
सके अलावा,
मधुमेह के रोगियों को अन्य सभी व्यक्तियों, जैसे
कैंसर का जल्दी पता लगाने के लिए जो स्क्रीनिंग प्रक्रिया का सिफ्रासें है उनका पालन करना चाहिए
आवधिक मैमोग्राफी और कोलोनोस्कोपी ऐसे, कार्रवाई का पालन करके कानसर से बचना चाहिये .
और ऐसे आदथाने जो कानसर पैदा करनेके साथ जुडी हिई है जैसे के धूम्रपान,तम्बाकू का इस्तेमाल ,ज्यादा फाट खाना इनसे दूर रहन्ना चाहिये .
और जब तक की लान्टस और कानसर का सम्बन्ध के बारे में विशेष जान कारी नहीं मिलती
जल्दबाजी में उसका उपयोग करने से रुकावट नहीं डालनी चाहिए
पूरा लेख, इस लिंक का अनुसरण करें पढ़ने के लिए ...
* अनुशंसाएँ मरीजों के लिए Endocrine सोसायटी Lantus ® (इन्सुलिन Glargine) और कैंसर से - 2 जुलाई, 2009
http://www.endo-society.org/advocacy/policy/upload/Statement-for-Patients-on-Insulin-Glargine.pdf
Thursday, July 09, 2009
Have fun with machine translation
for example
"मधुमेह पर-Diets.net, हम डायबिटीज़ के मरीज़ों के लिए एक विशेष आहार होने के महत्व पर जोर देता है. क्या वास्तव में एक "मधुमेह आहार" क्या है? जब ज्यादातर लोग इस शब्द की "आहार," वे कुछ लोकप्रिय आहार कि उनके दोस्त हैं, यह Atkins आहार या गोभी का शोरबा आहार जैसे प्रयास किया है सकते हैं के बारे में सोच है. ताकि जल्दी से अपना वजन कम आहार जैसे ये आमतौर पर कि dieter कुछ काफी (जैसे कठोर हो की आवश्यकता है केवल एक का चयन कुछ खाद्य पदार्थ) खाते हैं.
वजन इन के रूप में हानि आहार ऐसे ही खतरनाक नहीं है, लेकिन किसी को भी लंबे समय में उनके अतिरिक्त भार दूर रखने में मदद की उम्मीद नहीं कर रहे हैं.
मधुमेह आहार प्रियसिद्धांत वजन-नुकसान आहार से संबंधित नहीं हैं. "आहार" वास्तव में सिर्फ खाना है कि एक व्यक्ति को प्रत्येक दिन खाती का उल्लेख शब्द. कौन खा रहा है कि दुनिया में हर कोई एक आहार पर है! आश्चर्य की बात की अवधारणा दरअसल, it'sa तरह. "
"
टाइप वन मधुमेह (टी।डी) से जुड़े जीन
सऊदी अरब में भारतीयों में तनाव,मधुमेह सामान्य
दुबई। सऊदी अरब में निवास कर रहे भारतीयों पर तनाव और मधुमेह का शिंकजा कसता जा रहा है। सूत्रों के अनुसार रियाध के चिकित्सकों के एक दल ने पिछले शुक्रवार को हुए चिकित्सा शिविर के दौरान पाया कि अधिकतर मरीजों को इस बात की जानकारी भी नहीं है कि वे मधुमेह तनाव और उच्च कोलेस्ट्राल से पीड़ित हैं। शिविर में लगभग 650 भारतीय मरीजों की जांच की गई जिनमें से अधिकतर केरल के निवासी थे। कई मरीजों में ब्रोंकाइटिस और पीठ दर्द की भी समस्या मिली।दल के सदस्य डॉ राजशेखरन ने बताया हमने मधुमेह के 20 और तनाव के 50 नए मरीजों की पहचान की जो शिविर के दौरान जांच के लिए आए थे।
प्रकाशित: Mon, 01 Jun 2009 at 17:41 IST (Avdhesh Kumar samay live
Friday, July 03, 2009
an ill informed good samaritan
the people who published this sensational news should also publish the guidelines for eye donation in the local regional language so that people with good intentions can help others properly
Eye Donation Goes Waste at Hospital as Parcels Do Not Arrive on Time
MOHAN Foundation Transplant News July 2, 2009
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Wednesday, July 01, 2009
Practical strategies for introducing Insulin Therapy
An estimated 20.8 million petsons in the
United States (approximately 7% of the
population) have diabetes; the vast majority
(90%-95%) has type 2 diabetes.
भारत में करीब 33 मिलीयन (3 करोड़ तीस लाख) लोगों को मधुमेह की बीमारी हो चुकी है। जिसमें करीब 98% लोग 'टाइप-2' डायबिटीज से प्रभावित हैं।
30 % adhik lOg yah bi jaante nahi ki une dyabeTIIs ki bImaarii hai
2025 तक भारत मधुमेह 170% की दर से बढ़ेगा.
मुख्य अंश और सिफारिशें
टाइप 2 मधुमेह के मरीजों के साथ जो 2 से अधिक प्रकार की अंटी डायबेटिक दवाओं (OADs) गोली के रूप में ले रहे हैं और जिनकी ग्लाइकोसाइलेटेड हीमोग्लोबिन (A1C) 7% और 10% के बीच मूल्यों में है उनके अच्छा नियंत्रण बेसल इंसुलिन के लिए अच्चे उम्मीदवार हैं .
जब जो लोगोंका इलाज सिर्फ इंसुलिन के साथ किया जा रहा है,उने जोलोग जिनको इंसुलिन के साथ>+ OADs से इलाजकिया जा रहा है अगर तुलना करे तो उनका Hba1c behtar नियंत्रण में आती है उने कम वजन बदौती , और हो सकता है
कुछ कम हैपोग्लैसिमिक घटनाओं के साथ.झेल ना पड़ता है
मधुमेह के इलाज की आशा
जीन थेरेपी से डायबिटीज़ के मरीज़ों के लिए नई उम्मीद
हर इंसान के शरीर में एक ऐसा हॉर्मोन बनता है जो ख़ून में शुगर यानि चीनी के स्तर को नियंत्रण में रखता है.लेकिन डायबिटीज़ यानि मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति के शरीर में ये हॉर्मोन काफ़ी मात्रा में नहीं बन पाता.इसका मतलब ऐसा व्यक्ति अपने ख़ून में चीनी की मात्रा को क़ाबू में नहीं रख पाता जिससे गुर्दों, टाँगों, आँखों और दिल की तकलीफ़ हो सकती है.अब शोधकर्ताओं ने पाया है कि जीन थेरेपी की तकनीक अपनाने से मधुमेह के मरीज़ों के लिए नई उम्मीद जगी है.अगर मधुमेह का इलाज न किया जाए तो दिल का दौरा भी पड़ सकता है और जानलेवा भी हो सकता है.
आलस भरी ज़िंदगी और उलटा सीधा खाने से डायबिटीज़ हो सकती है और इलाज न करने पर दिल का दौरा भी पड़ सकता है
इस बीमारी के मरीज़ अपने खाने पीने पर क़ाबू रखकर या फिर नियमित तौर पर इंसुलिन के इंजेक्शन लेकर सेहत ठीक रख सकते हैं लेकिन इलाज का ये तरीक़ा पूरी तरह कारगर नहीं है.इसी वजह से डॉक्टर जीन थेरेपी के ज़रिए कोई रास्ता निकालने की कोशिश करते रहे हैं.जीन थेरेपीडॉक्टरों ने कोशिश की कि रोगी शरीर में इंसुलिन बनने के स्थान यानि पेनक्रिएटिक सेल्स को एक स्वस्थ आदमी के सेल्स से बदल दिया जाए तो मधुमेह के इलाज में मदद मिल सकती है.लेकिन ये तरीक़ा ख़तरे से ख़ाली नहीं है.इसलिए डॉक्टरों के इस दल ने इंसुलिन बनाने वाले 'जीन्स' को ही बीमार चुहे के शरीर में डाल दिया जिससे जिगर के सेल्स पेनक्रिएटिक सेल्स में बदल गए.इससे इंसुलिन पर्याप्त मात्रा में निकलने लगा और चूहा पूरी तरह स्वस्थ दिखाई दिया. दुनिया भर में आलस भरी ज़िंदगी जीने और उलटा सीधा खाने का चलन बढ़ रहा है और इससे डायबिटिज़ की समस्या भी बढ़ती जा रही है.ऐसे में जीन थेरेपी इसे रोकने की दिशा में उम्मीद की नई किरण हो सकती है.
'कोको से मधुमेह के मरीज़ो को फ़ायदा'
चेतावनी भी दी गई कि मधुमेह के मरीज़ो को चॉकलेट खाने की सलाह नहीं दी जा रही
कोको का एक कप डायबटीज़ यानी मधुमेह के मरीज़ों की रक्त वाहिकाओं में रक्त के प्रवाह को बेहतर बना सकता है.
डॉक्टरों ने मरीज़ों को ख़ासतौर पर बनाए गए कोको के तीन मग हर दिन एक महीने तक पीने को कहा और पाया कि बहुत बुरी तरह से प्रभावित हुई धमनियाँ सामान्य रूप से काम करना शुरू कर देती हैं.
अमेरिकन कॉलेज ऑफ़ कार्डियोलॉजी की पत्रिका में छपा यह जर्मन अध्ययन संकेत देता है कि इसके लिए फ़्लेवनॉल्स नामक रसायन ज़िम्मेदार हो सकता है.
लेकिन ब्रिटेन की ग़ैरसरकारी संस्था डायबिटीज़ का कहना है कि सामान्य चॉकलेट को ज़्यादा खाने से ऐसा नतीजे नहीं मिल सकते.
डायबटीज़ के मरीज़ों को हृदय रोग से संबंधित समस्याओं का ख़तरा ज़्यादा रहता है, जिसका आंशिक कारण होता है रक्त वाहिकाओं पर 'ब्लड शूगर' से हुआ बुरा प्रभाव जिससे रक्त वाहिकाएँ शरीर की ज़रूरत के अनुसार फैल नहीं पाती हैं.
इससे रक्तचाप बढ़ सकता है और बहुत सारी दूसरी समस्याएँ पैदा हो सकती हैं.
जबकि स्वस्थ जीवनशैली इस ख़तरे घटा सकती है चाहे इस समास्या का पूरी तरह समाधान नहीं कर सकती.
डायबटीज़ के मरीज़ों में हृदय रोग से संबंधित समस्याओं के बचाव में स्वस्थ भोजन के रूप में फ़्लेवनॉल की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है. मधुमेह के मरीज़ों को ये सलाह नहीं दी जा रही कि वे ढेर सारी चॉकलेट खाना शुरु कर दें
शोधकर्ता डॉक्टर केम
कोको में प्राकृतिक रूप से फ़्लेवनॉल नाम का एंटीऑक्सीडेंट रसायन होता है जो कुछ फलों-सब्जियों, हरी चाय और रेड वाइन में भी पाया जाता है. बहुत से अध्ययनों में इस रसायन को स्वास्थ्य के हितों से जोड़ा गया है.
'आम कोको नहीं'
अध्ययन में जिस तरह के कोको का इस्तेमाल हुआ वह दुकानों में नहीं मिलता और इसमें बहुत उच्च सांद्रता में यह रसायन पाया जाता है.
कई दूसरे अध्ययनों में भी यह परखने की कोशिश की जा रही है कि फ्लेवनॉल मरीज़ों के लिए फ़ायदेमंद है या नहीं.
दस मरीज़ों को तीस दिनों तक प्रतिदिन तीन बार कोको पीने को कहा गया और इसके बाद उनकी रक्त वाहिकाओं के काम को देखने के लिए एक विशेष परीक्षण किया गया.
शरीर में ज़्यादा ख़ून की माँग के अनुसार रक्त वाहिकाओं के फैलने की क्षमता तुरंत ही बढ़ती हुई प्रतीत हुई.
एक औसत के अनुसार, एक स्वस्थ व्यक्ति की रक्तवाहिकाएँ पाँच फ़ीसदी तक फैल सकती हैं जबकि डायबटीज़ के मरीज़ों में यह कोको पीने से पहले मात्र 3.3 फ़ीसदी था.
कोको पीने के दो घंटे के बाद उनकी रक्तवाहिकाओं के फैलने की क्षमता औसत 4.8 फ़ीसदी हो गई और कोको पीने के दो घंटे के बाद यह बढ़कर 5.7 फ़ीसदी हो गई.
चॉकलेट पर चेतावनी
आचेन में यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के डॉक्टर माल्टे केम जिन्होंने इस अध्ययन का नेतृत्व किया है, कहते हैं, "डायबटीज़ के मरीज़ों में हृदय रोग से संबंधित समस्याओं के बचाव में स्वस्थ भोजन के रूप में फ़्लेवनॉल की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है."
लेकिन वे आगाह भी करते हैं कि ये अध्ययन चॉकलेट के बारे में नहीं है या फिर मधुमेह के मरीज़ों को ये सलाह नहीं दी जा रही कि वे ढेर सारी चॉकलेट खाना शुरु कर दें.
ब्रिटेन की संस्था डायबटीज़ के एक प्रवक्ता ने इन परिणामों को दिलचस्प बताया है.
उनके अनुसार, फ़्लेवनॉल को अधिक मात्रा में प्रयोग करने के बाद लंबे समय में पड़ने वाले इसके प्रभाव के बारे में पता लगाने के लिए अभी और शोध की ज़रूरत है.
मधुमेह (प्राकथन)
नोट-- इस वेब साइट के सभी लेख डा.एन.के.सिंह,निदेशक,डी.एच.आर.सी.द्वारा लिखित है।कापीराईट नियमों के अधीन किसी भी सामग्री का अन्यत्र उपयोग बिना लेखक की अनुमति के प्रतिबन्धित है।आपके विचारों का स्वागत है।डायबिटीज से सम्बंधित कोई सलाह चाहते हैं तो मेल करें-drnks@yahoo.com
राष्ट्रीय सलाहकार समिति
एक नजर-
यह अनुमान किया गया है कि अभी भारत में करीब 33 मिलीयन (3 करोड़ तीस लाख) लोगों को मधुमेह की बीमारी हो चुकी है। जिसमें करीब 98% लोग 'टाइप-2' डायबिटीज से प्रभावित हैं। और यही स्वरुप इस देश की अहम समस्या है। दो द्शक पहले मधुमेह की व्यापकतादर ग्रामीण क्षेत्रों में 1.5% तथा शहरी क्षेत्रों में 2.1% पायी गयीथी; अब ग्रामीण क्षेत्रों में 2.07% तथा शहरी क्षेत्रों में 8 से 18% तक जा पहुँची है। यह भी विचारणीय प्रश्न है कि 2025 तक भारत मधुमेह 170% की दर से बढ़ेगा, यह विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है। जिस तेजी से मधुमेह भारत में फैल रहा है उस अनुपात में हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था समस्या से निबटने में बिल्कुल पंगु है।
भारत में 2100 लोगों पर एक चिकित्सक मौजूद है यह अमेरिका के 549 पर एक चिकित्सक के अनुपात में यह कोई बुरा नहीं है। मगर यहाँ नर्सों और मिडवाइफ की उपस्थिति काफी खराब है करीब 2238 लोगों पर एक, अभी 30000 लोगों पर एक स्वास्थय केंन्द्र हैं। और भारत में हेल्थ केयर डेलीवरी का यही व्यवस्थित ढ़ाँचा है। मधुमेह के रोंगियों में 95% का ईलाज इसी व्यवस्थित ढ़ाँचा के तहत होता है। मगर सच्चाई यह है कि यह सिस्टम मधुमेह एवं ह्र्दयाघात जैसी मार्डन बीमारियों के ईलाज एवं रोकथाम के लिए पूर्णतः नाकाम है। इनकी पूरी दॄष्टि संक्रामक रोगों की और केन्द्रित है। यह अलग बात है कि संक्रामक रोगों के रोकथाम में भी(पोलियो छोड़कर) इनको भारी विफलता मिली है। निश्चित रुप से अभीऐसा कोई माहौल नहीं बना है कि सिस्टम हमारी जनता को यह बतायेगा कि किस तरह मधुमेह से हम बच सकते हैं। मधुमेह के कारण होने वाले अन्धेपन, किडनी फैल्यर, पैरों का एम्पुटेशन(काटना), डायबिटीक हार्ट रोग, गर्भावस्था पर दुष्परिणाम जैसी समस्याओं से निबटने हेतु हमारी कोई प्राथमिकता बनी ही नही है। इसे भाग्य भरोसे छोड़ दिया गया है।
दिन-ब-दिन शहरीकरण बढ़ रहा है। आदमी का भोज्य पदार्थ दूषित होता जा रहा है। तथाकथित मिडिल क्लास का भोजन भी सेचुरेटेड फैट्स एवं रिफाइन्ड भोज्य पदार्थो से सज रहा है। फिर देश के लोग आलसी और काहिल होता जा रहा हैं। शारीरिक मेहनत और व्यायाम का निरन्तर अभाव होता जा रहा है। कोका-कोला क्लचर सर्वव्यापी हो गया है और हम अपने बच्चों को फलऔर दूध की बजाय मिठाइयाँ, टॉफी और पेस्ट्री परोसते जा रहे हैं। भारतीय जन समुदाय प्राकॄतिक तौर पर जेनेटिक प्रभाव के कारण मधुमेह होने की ओर तत्पर है, उस पर बदलती जीवन शैली की मार के कारण अब 30 की उम्र के आस पास लोगों में यह बीमारी खूब उफान मार रही है।
समस्या का आकलन करते हुए मेरी स्पष्ट धारणा है कि जब बीमारी शुरु हो जाए तब हाथ-पैर मारने के बजाय पहले से ही सतर्क हो जाना ज्यादा हितकर है। स्कूल कॉलेज के दिनों से ही यह सन्देश भावी पीढ़ी को दे देना है कि खानपान में सादा भोजन अपना कर एवं नियमित शारीरिक मेहनत के तहत मधुमेह से बचा जा सकता है। मधुमेह से अगर वे बचते हैं तो कई बीमारियों से स्वतः बचाव हो जाएगा। जैसे ह्र्दय आघात, स्ट्रोक, किडनी फेल्योर, अन्धापन आदि।
यह वेबसाइट एक प्रयास है उन लोगों के लिए जो मधुमेह की पूरी जानकारी हिन्दी में चाहते है।
जी हाँ बचाव सम्भव है।
मुख्य सन्देश हैः
खुब शारीरिक मेहनत करें।
पैदल चलें।
एइरोबिक व्यायाम।
योगासन करें।
बैडमिन्टन खेलें।
नियमित खूब साईकिल चलावें।
तैराकी करें।
आस पास जमीन हो तो कुदाल चलावें।
तथाकथित आधुनिक तामसिक भोज्य पदार्थो को बचपन से ही न खाएँ, जैसे -
मिठाई , फास्ट फूड , चाट , कोल्ड ड्रिंक , चाकलेट , टॉफी , डब्बे में बन्द सामग्री।
जो मधुमेह के रोगी अपनी बीमारी का नियंत्रण ठीक से करते हैं वो 100 साल जी सकते हैं।
5102 रोगियों को 20 साल अध्ययन बाद यू. के. पी. डी. स्टडी
मधुमेह ko नियन्त्रित रख ne se
Sabhi दुष्परिणामों से बच सकते है
माइक्रोवासकुलर दुष्परिणामों से बच सकते है
अन्धेपन से बच सकते है
स्ट्रोक से बच सकते है
हॄदयाघात से बच सकते है
मधुमेह में शिक्षा ज्यादा जरुरी है, सही जानकारी से आप अपने को स्वस्थ रख सकते है।
चालीस की उम्रके बाद बिना किसी लक्षण के भी ब्लड सुगर की सालाना अवश्य जॉच कराएँ।
मधुमेह
मधुमेह होने पर शरीर में भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करने की सामान्य प्रक्रिया तथा होने वाले अन्य परिवर्तनों का विवरण नीचे दिया जा रहा है-भोजन का ग्लूकोज में परिवर्तित होनाः हम जो भोजन करते हैं वह पेट में जाकर एक प्रकार के ईंधन में बदलता है जिसे ग्लूकोज कहते हैं। यह एक प्रकार की शर्करा होती है। ग्लूकोज रक्त धारा में मिलता है और शरीर की लाखों कोशिकाओं में पहुंचता है।ग्लूकोज कोशिकाओं में मिलता हैः अग्नाशय(पेनक्रियाज) वह अंग है जो रसायन उत्पन्न करता है और इस रसायन को इनसुलिन कहते हैं। इनसुलिन भी रक्तधारा में मिलता है और कोशिकाओं तक जाता है। ग्लूकोज से मिलकर ही यह कोशिकाओं तक जा सकता है।कोशिकाएं ग्लूकोज को ऊर्जा में बदलती हैः शरीर को ऊर्जा देने के लिए कोशिकाएं ग्लूकोज को उपापचित (जलाती) करती है।मधुमेह होने पर होने वाले परिवर्तन इस प्रकार हैं: मधुमेह होने पर शरीर को भोजन से ऊर्जा प्राप्त करने में कठिनाई होती है।भोजन ग्लूकोज में बदलता हैः पेट फिर भी भोजन को ग्लूकोज में बदलता रहता है। ग्लूकोज रक्त धारा में जाता है। किन्तु अधिकांश ग्लूकोज कोशिकाओं में नही जा पाते जिसके कारण इस प्रकार हैं:1. इनसुलिन की मात्रा कम हो सकती है।2. इनसुलिन की मात्रा अपर्याप्त हो सकती है किन्तु इससे रिसेप्टरों को खोला नहीं जा सकता है।3. पूरे ग्लूकोज को ग्रहण कर सकने के लिए रिसेप्टरों की संख्या कम हो सकती है।कोशिकाएं ऊर्जा पैदा नहीं कर सकती हैःअधिकांश ग्लूकोज रक्तधारा में ही बना रहता है। यही हायपर ग्लाईसीमिआ (उच्च रक्त ग्लूकोज या उच्च रक्त शर्करा) कहलाती है। कोशिकाओं में पर्याप्त ग्लूकोज न होने के कारण कोशिकाएं उतनी ऊर्जा नहीं बना पाती जिससे शरीर सुचारू रूप से चल सके।
मधुमेह के लक्षणः
मधुमेह के मरीजों को तरह-तरह के अनुभव होते हैं। कुछेक इस प्रकार हैं:
· बार-बार पेशाब आते रहना (रात के समय भी)
· त्वचा में खुजली
· धुंधला दिखना
· थकान और कमजोरी महसूस करना
· पैरों में सुन्न या टनटनाहट होना
· प्यास अधिक लगना
· कटान/घाव भरने में समय लगना
· हमेशा भूख महसूस करना
· वजन कम होना
· त्वचा में संक्रमण होना
हमें रक्त शर्करा पर नियंत्रण क्यों रखना चाहिए ?
· उच्च रक्त ग्लूकोज अधिक समय के बाद विषैला हो जाता है।
· अधिक समय के बाद उच्च ग्लूकोज, रक्त नलिकाओं, गुर्दे, आंखों और स्नायुओं को खराब कर देता है जिससे जटिलताएं पैदा होती है और शरीर के प्रमुख अंगों में स्थायी खराबी आ जाती है।
· स्नायु की समस्याओं से पैरों अथवा शरीर के अन्य भागों की संवेदना चली जा सकती है। रक्त नलिकाओं की बीमारी से दिल का दौरा पड़ सकता है, पक्षाघात और संचरण की समस्याएं पैदा हो सकती है।
· आंखों की समस्याओं में आंखों की रक्त नलिकाओं की खराबी (रेटीनोपैथी), आंखों पर दबाव (ग्लूकोमा) और आंखों के लेंस पर बदली छाना (मोतियाबिंद)
· गुर्दे की बीमारी (नैफ्रोपैथी) का कारण, गुर्दा रक्त में से अपशिष्ट पदार्थ की सफाई करना बंद कर देती है। उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन) से हृदय को रक्त पंप करने में कठिनाई होती है।
उच्च रक्तचाप के विषय में और अधिक जानकारीः
हृदय धड़कने से रक्त नलिकाओं में रक्त पंप होता है और उनमें दबाव पैदा होता है। किसी व्यक्ति के स्वस्थ होने पर रक्त नलिकाएं मांसल और लचीली होती है। जब हृदय उनमें से रक्त संचार करता है तो वे फैलती है। सामान्य स्थितियों में हृदय प्रति मिनट 60 से 80 की गति से धड़कता है। हृदय की प्रत्येक धड़कन के साथ रक्त चाप बढ़ता है तथा धड़कनों के बीच हृदय शिथिल होने पर यह घटता है। प्रत्येक मिनट पर आसन, व्यायाम या सोने की स्थिति में रक्त चाप घट-बढ़ सकता है किंतु एक अधेड़ व्यक्ति के लिए यह 130/80 एम एम एचजी से सामान्यतः कम ही होना चाहिए। इस रक्त चाप से कुछ भी ऊपर उच्च माना जाएगा।उच्च रक्त चाप के सामान्यतः कोई लक्षण नहीं होते हैं; वास्तव में बहुत से लोगों को सालों साल रक्त चाप बना रहता है किंतु उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं हो पाती है। इससे तनाव, हतोत्साह अथवा अति संवेदनशीलता से कोई संबंध नहीं होता है। आप शांत, विश्रान्त व्यक्ति हो सकते हैं तथा फिर भी आपको रक्तचाप हो सकता है। उच्च रक्तचाप पर नियंत्रण न करने से पक्षाघात, दिल का दौरा, संकुलन हृदय गति रुकना या गुर्दे खराब हो सकते हैं। ये सभी प्राण घातक हैं। यही कारण है कि उच्च रक्तचाप को "निष्क्रिय प्राणघातक" कहा जाता है।कोलेस्ट्रोल के विषय में और अधिक जानकारीःशरीर में उच्च कोलेस्ट्रोल का स्तर होने से दिल का दौरा पड़ने का का खतरा चार गुना बढ़ जाता है। रक्तधारा में अधिक कोलेस्ट्रोल होने से धमनियों की परतो पर प्लेक (मोटी सख्त जमा) जमा हो जाती है। कोलेस्ट्रोल या प्लेक पैदा होने से धमनियां मोटी, कड़ी और कम लचीली हो जाती है जिसमें कि हृदय के लिए रक्त संचारण धीमा और कभी-कभी रूक जाता है। जब रक्त संचार रुकता है तो छाती में दर्द अथवा कंठशूल हो सकता है। जब हृदय के लिए रक्त संचार अत्यंत कम अथवा बिल्कुल बंद हो जाता है तो इसका परिणाम दिल का दौड़ा पड़ने में होता है। उच्च रक्त चाप और उच्च कोलेस्ट्रोल के अतिरिक्त यदि मधुमेह भी हो तो पक्षाघात और दिल के दौरे का खतरा 16 गुना बढ़ जाता है।मधुमेह का प्रबंधनमधुमेह होने के कारण पैदा होने वाली जटिलताओं की रोकथाम के लिए नियमित आहार, व्यायाम, व्यक्तिगत स्वास्थ्य, सफाई और संभावित इनसुलिन इंजेक्शन अथवा खाने वाली दवाइयों (डॉक्टर के सुझाव के अनुसार) का सेवन आदि कुछ तरीके हैं।व्यायामः व्यायाम से रक्त शर्करा स्तर कम होता है तथा ग्लूकोज का उपयोग करने के लिए शारीरिक क्षमता पैदा होती है। प्रतिघंटा 6 कि.मी की गति से चलने पर 30 मिनट में 135 कैलोरी समाप्त होती है जबकि साइकिल चलाने से लगभग 200 कैलोरी समाप्त होती है।मधुमेह में त्वचा की देख-भालः मधुमेह के मरीजों को त्वचा की देखभाल करना अत्यावश्यक है। भारी मात्रा में ग्लूकोज से उनमें कीटाणु और फफूंदी लगने की संभावना बढ़ जाती है। चूंकि रक्त संचार बहुत कम होता है अतः शरीर में हानिकारक कीटाणुओं से बचने की क्षमता न के बराबर होती है। शरीर की सुरक्षात्मक कोशिकाएं हानिकारक कीटाणुओं को खत्म करने में असमर्थ होती है। उच्च ग्लूकोज की मात्रा से निर्जलीकरण(डी-हाइड्रेशन) होता है जिससे त्वचा सूखी हो जाती है तथा खुजली होने लगती है।
शरीर की नियमित जांच करें तथा निम्नलिखित में से कोई भी बाते पाये जाने पर डॉक्टर से संपर्क करें
· त्वचा का रंग, कांति या मोटाई में परिवर्तन
· कोई चोट या फफोले
· कीटाणु संक्रमण के प्रारंभिक चिह्न जैसे कि लालीपन, सूजन, फोड़ा या छूने से त्वचा गरम हो
· उरुमूल, योनि या गुदा मार्ग, बगलों या स्तनों के नीचे तथा अंगुलियों के बीच खुजलाहट हो, जिससे फफूंदी संक्रमण की संभावना का संकेत मिलता है
· न भरने वाला घाव
त्वचा की सही देखभाल के लिए नुस्खेः
· हल्के साबुन या हल्के गरम पानी से नियमित स्नान
· अधिक गर्म पानी से न नहाएं
· नहाने के बाद शरीर को भली प्रकार पोछें तथा त्वचा की सिलवटों वाले स्थान पर विशेष ध्यान दें। वहां पर अधिक नमी जमा होने की संभावना होती है। जैसा कि बगलों, उरुमूल तथा उंगलियों के बीच। इन जगहों पर अधिक नमी से फफूंदी संक्रमण की अधिकाधिक संभावना होती है।
· त्वचा सूखी न होने दें। जब आप सूखी, खुजलीदार त्वचा को रगड़ते हैं तो आप कीटाणुओं के लिए द्वार खोल देते हैं।
· पर्याप्त तरल पदार्थों को लें जिससे कि त्वचा पानीदार बनी रहे।
घावों की देखभालःसमय-समय पर कटने या कतरने को टाला नहीं जा सकता है। मधुमेह की बीमारी वाले व्यक्तियों को मामूली घावों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि संक्रमण से बचा जा सके। मामूली कटने और छिलने का भी सीधे उपचार करना चाहिएः
· यथाशीघ्र साबुन और गरम पानी से धो डालना चाहिए
· आयोडिन युक्त अलकोहाल या प्रतिरोधी द्रवों को न लगाएं क्योंकि उनसे त्वचा में जलन पैदा होती है
· केवल डॉक्टरी सलाह के आधार पर ही प्रतिरोधी क्रीमों का प्रयोग करें
· विसंक्रमित कपड़ा पट्टी या गाज से बांध कर जगह को सुरक्षित करें। जैसे कि बैंड एड्स
निम्नलिखित मामलों में डॉक्टर से संपर्क करें:
· यदि बहुत अधिक कट या जल गया हो
· त्वचा पर कहीं पर भी ऐसा लालीपन, सुजन, मवाद या दर्द हो जिससे कीटाणु संक्रमण की आशंका हो
· रिंगवर्म, जननेंद्रिय में खुजली या फफूंदी संक्रमण के कोई अन्य लक्षण
मधुमेह होने पर पैरों की देखभालःमधुमेह की बीमारी में आपके रक्त में ग्लूकोज के उच्च स्तर के कारण स्नायु खराब होने से संवेदनशीलता जाती रहती है। पैरों की देखभाल के कुछ साधारण उपाय इस प्रकार है:पैरों की नियमित जांच करें:
· पर्याप्त रोशनी में प्रतिदिन पैरों की नजदीकी जांच करें। देखें कि कहीं कटान और कतरन, त्वचा में कटाव, कड़ापन, फफोले, लाल धब्बे और सूजन तो नहीं है। उंगलियों के नीचे और उनके बीच देखना न भूलें।
· पैरों की नियमित सफाई करें:पैरों को हल्के साबुन से और गरम पानी से प्रतिदिन साफ करें।
· पैरों की उंगलियों के नाखूनों को नियमित काटते रहें
· पैरों की सुरक्षा के लिए जूते पहने
मधुमेह संबंधी आहार
यह आहार भी एक स्वस्थ व्यक्ति के सामान्य आहार की तरह ही है, ताकि रोगी की पोषण संबंधी पोषण आवश्यकता को पूरी की जा सके एवं उसका उचित उपचार किया जा सके। इस आहार में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कुछ कम है लेकिन भोजन संबंधी अन्य सिद्धांतो के अनुसार उचित मात्रा में है।
मधुमेह संबंधी समस्त आहार के लिए निम्नलिखित खाद्य पदार्थो से बचा जाना चाहिए:
जड़ एवं कंद
मिठाइयाँ, पुडिंग और चॉकलेट
तला हुआ भोजन
सूखे मेवे
चीनी
केला, चीकू, सीताफल आदि जैसे फल
आहार नमूना
खाद्य सामग्री
शाकाहारी भोजन(ग्राम में)
मांसाहारी भोजन (ग्राम में)
अनाज
२००
२५०
दालें
६०
२०
हरी पत्तेदार सब्जियाँ
२००
२००
फल
२००
२००
दूध (डेयरी का)
४००
२००
तेल
२०
२०
मछली/ चिकन-बगैर त्वचा का
-
१००
अन्य सब्जियाँ
२००
२००
ये आहार आपको निम्न चीजें उपलब्ध कराता है-
कैलोरी
१६००
प्रोटीन
६५ ग्राम
वसा
४० ग्राम
कार्बोहाइड्रेट
२४५ ग्राम
वितरण
अब मधुमेह के मरीजों के लिए हर्बल चाय!
अब मधुमेह के मरीजों के लिए हर्बल चाय!
ढाका, 6 मार्च (आईएएनएस)। बांग्लादेश के वैज्ञानिकों ने मधुमेह रोगियों के लिए विशेष प्रकार की औषधीय गुणों से भरपूर चाय पत्ती तैयार की है। खास बात यह है कि मधुमेह के मरीजों के लिए यह चाय विशेष रूप से लाभकारी है।
इसका सेवन करने वालों को इंसुलिन के टीके भी अपेक्षाकृत कम लगवाने पड़ेंगे।
समाचार पत्र 'डेली स्टार' में गुरुवार को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार 'बांग्लादेश वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद' (बीसीएसआईआर) के वैज्ञानिकों ने जरूल वृक्ष की पत्तियों से इस चाय पत्ती को तैयार किया गया है।
रिपोर्ट में 'डाइबिटिक एसोसिएशन' के अध्यक्ष आजाद खान के हवाले से लिखा गया है कि प्राकृतिक गुणों से भरपूर होने की वजह से इस चाय पत्ती के सेवन से मधुमेह रोगियों को कोई नुकसान नहीं होगा। उन्होंने बताया कि बांग्लादेश में लगभग 60 लाख लोग मधुमेह से पीड़ित हैं।
बीसीएसआईआर के अध्यक्ष चौधरी महमूद हसन के मुताबिक दुनियाभर में इस चाय पत्ती को मान्यता दी जा रही है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में इस चाय पत्ती का लगभग 62 अरब डालर का बाजार है।
समाचार एजेंसी 'जिनहुआ' के अनुसार लोगों को इस चाय पत्ती के सेवन से मोटापा दूर करने में भी मदद मिलेगी।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस
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