Thursday, July 09, 2009

टाइप वन मधुमेह (टी।डी) से जुड़े जीन

लंदन। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने टाइप वन मधुमेह (टी।डी) से जुड़े जीन के आनुवांशिक संरचना के ऐसे चार परिवर्तनों को खोज निकाला है जिनसे इस बीमारी के बढ़ने का खतरा कम हो सकता है। साइंस पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के नतीजों में टी।डी और आहार नली के संक्रमण (एंटरोवाइरस) के बीच संबंध बताये गये हैं। एंटरोवाइरस आमाशय और आंतों के बीच के क्षेत्र से फैलता है लेकिन अधिकतर बार इसके लक्षण नजर नहीं आते। हर व्यक्ति के शरीर में आईएफआईएच। जीन होता है जो शरीर के संक्रमण रोधी प्रतिक्रिया तंत्र में अहम भूमिका निभाता है। महत्वपूर्ण रूप से यह टाइप वन मधुमेह से जुड़े मानव जीन के ही हिस्से में पाया जाता है। आईएफआईएच। जीन में प्रोटीन पाया जाता है जिसकी पहचान कोशिकाओं में वाइरस की मौजूदगी से होती है और यह रोगप्रतिरोधक तंत्र की सक्रियता को नियंत्रित करता है। यह आनुवांशिक संरचना के चार परिवर्तनों में से एक है। इंटरोवाइरस संक्रमण आमतौर पर टी।डी के नये मरीजों में पाया जाता है। शोधकर्ताओं ने जिन चार जीन का पता लगाया है उनके बारे में अनुमान है कि वे आईएफआईएच। जीन के प्रोटीन के प्रभाव को कम कर देते हैं। नतीजतन टाइप वन मधुमेह का खतरा कम हो जाता है।

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