Tuesday, September 15, 2009

भारतीयों को डायबटीज से अंधेपन का खतरा

भारतीयों को डायबटीज से अंधेपन का खतरा

बैंकॉक: भारत के लोगों पर मधुमेह यानी डायबिटीज से पैदा होने वाली अंधता का खतरा मंडरा रहा है। इसके प्रति जागरूकता की कमी के चलते यह खतरा और

बढ़ गया है। यहां लायंस क्लब इंटरनैशनल फाउंडेशन (एलसीआईएफ) के 3 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में यह बात कही गई।


 

एलसीआईएफ दक्षिण एशिया में एक बड़ा अभियान चला रहा है। इसके एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि भारत डायबिटीज की वैश्विक राजधानी है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति यदि समय पर इलाज ना कराए, तो वह अपनी आंखों की रोशनी खो सकता है। चिकित्सा की भाषा में इसे डायबिटिक रेटिनोपैथी कहा जाता है।


 

मुंबई के एक पूर्व न्यायाधीश और एलसीआईएफ के पूर्व प्रेजिडेंट डॉ. अशोक मेहता ने कहा कि मधुमेह के रोगियों में तंत्रिका तंत्र के भी क्षतिग्रस्त होने की संभावना होती है। इससे भी रोगी अंधा हो सकता है। उन्होंने कहा कि अगले 25 सालों में भारत में डायबिटिक रेटिनोपैथी के शिकार लोगों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा हो सकती है।


 

सम्मेलन में एक अनौपचारिक वार्ता के दौरान उन्होंने कहा कि एक बड़ी समस्या यह भी है कि डायबिटीज रोगी का बच्चा भी इस भयानक रोग की चपेट में आ सकता है। भारत में एक नियो-नेटल यूनिट की स्थापना करने की एलसीआईएफ की योजना के बारे में बताते हुए मेहता ने कहा कि रोगी के नवजात बच्चों को बचाना एलसीआईएफ की प्राथमिक चिंता है।


 

डायबिटीज के खतरे का सामना करने के लिए एलसीआईएफ ने दक्षिण भारत के 2 अस्पतालों शंकर नेत्रालय, चेन्नै और एल.वी. प्रसाद आई हॉस्पिटल, हैदराबाद के साथ हाथ मिलाया है। यहां रोगी की पूरी जांच कर यह सुनिश्चित करने की कोशिश की जाती है कि डायबिटिक रेटीनोपैथी के कारण रोगी की आंख न खराब हो।


 

एलसीआईएफ के कार्यकर्ता स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों पर नियमित रूप से काम करते हैं। वे 'मधुमेह जागरूकता अभियान' भी चलाते हैं जिसमें रोगियों को खान-पान से जुड़ी सलाह दी जाती है। संगठन केरल के 2 शहरों कोचीन और तिरुअनंतपुरम में बच्चों को अंधता से बचाने के लिए 'साइट फॉर किड्स' नाम की एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना सफलतापूर्वक चला रहा है। मेहता ने बताया कि इसमें नेत्र चिकित्सक और संगठन के कार्यकर्ता सरकारी और स्थानीय नागरिक संस्थाओं के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की नियमित जांच करते हैं। पायलट परियोजना के रूप में इस कार्यक्रम को देश के विभिन्न स्थानों जैसे हैदराबाद, दिल्ली, अहमदाबाद, बड़ोदरा, जयपुर और उदयपुर में शुरू किया गया है।


 

मेहता ने कहा कि एलसीआईएफ महाराष्ट्र के सरकारी अस्पतालों को गोद लेना चाहता है, पर राज्य सरकार ने अभी तक इस प्रस्ताव का जवाब नहीं दिया है। काफी पहले 1993 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार ने सरकारी अस्पतालों को इस संगठन को गोद देने के विचार को खारिज कर दिया था। उन्होंने बताया कि आधुनिक उपकरण लगाकर और व्यवस्था में सुधार कर सरकारी अस्पतालों की क्षमता भी बढ़ाई जा सकती है।

28 Jun 2008, 0021 hrs IST, इकनॉमिक टाइम्स


 


 

2 comments:

Anonymous said...

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अनुनाद सिंह said...

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