Wednesday, August 17, 2016

उस वक़्त मैं जवान था

कविताएं
उस वक़्त मैं जवान था
उस वक़्त मैं जवान था
उस वक़्त मैं जवान था
पैसा था सम्मान था
पैरों में मेरे आसमान था
दिन रात व्यस्त था मैं
अपने मैं मस्त था मैं
पीछे पड़ा है कोई
इस बात से अनजान था
उस वक़्त मैं जवान था
उस वक़्त मैं जवान था
जाने न, कब किधर से
मेरे पास आ गयी वह
मैं चाहता नहीं था
फिर भी  लिपट गयी वह.
मैं चुप रहा कि कोई,
सुन ले न जान ले
शर्माओ मत उसने कहा
मेरी बात मान ले.
मेरे शर्त पर चलोगे
तेरी बंदगी करूंगी
मधुमेह हूँ मैं
जिन्दगी भर साथ रहूँगी.
सच है वह जब से आयी
अपना बना लिया है
माना फंसा लिया था
पर जीना सिखा दिया है.
खाना सिखा दिया है
सोना सिखा दिया है
पैरों पर अपने चलना
मुझको सिखा दिया है.
नज़रों पे मेरी
उसकी नज़रें लगी हुयी हैं
मेरे दिल को अपने दिल में
उसने बसा लिया है.
चूमना वह चाहती है
मेरे  पाँव को हमेशा
किडनी में छुप कर रहने का
वह देखती है सपना.
एक राज़ दिल का उसने
मुझको बता दिया है
परेशानियों में खुल कर
हँसना सिखा दिया है.
हर रोज़ दवा खाना
नियमित कराना जांच
मधुमेह डार्लिंग संग
हंस कर बिताना साथ.
“बागीश” हंसी रात है
हिम्मत से पूरे काट
उस वक़्त तू  जवान था
अब भी है तू जवान
मधुमेह संग जीने का राज
तुने लिया है जो जान.
बागेश्वरी प्रसाद मिश्रा "बागीश"

आप बीती

आप बीती
न् 2000 माह अक्टूबर, दीपावली की पूर्व संध्या अर्थात् छोटी दीपावली, स्थान-असुरन, डॉ0 आलोक गुप्ता का क्लिनिक समय 6.15 बजे सायं दाहिने पैर की एड़ी में भयंकर घाव के साथ डॉक्टर आलोक गुप्ता को दिखाना एवं घाव का इतिहास जानने के पश्चात् डाक्टर के द्वारा रैन्डम ब्लड शुगर सुगर की जांच करने पर ब्लड शुगर का 317 निकलने पर सहसा विश्वास न करना एवं पुनः उसी समय दुबारा जांच कने पर (दूसरे ग्लूकोमीटर से) रीडिंग 307 आना एवं तब तक घोषित मधुमेह मरीज बनने का झटका लगना।

उपरोक्त सारी बातें जो मेरे साथ घटित हुईं उनका पूर्व इतिहास यह है कि मेरे पैर में करीब 15 दिन पहले हल्का दाने के आकार का घाव हुआ और घाव बढ़ता चला गया किसी ने मुझे इसे चर्म रोग विशेषज्ञ से दिखाने की सलाह दी और मैं गोरखपुर मेडिकल कालेज के एक वरिष्ठ चर्म रोग विशेषज्ञ की इलाज कराने लगा और उनके द्वारा तीव्र क्षमता के दो-दो एन्टीबायोटिक देने के बावजूद भी घाव बढ़ता ही गया। मेरे लिए डा आलोक कुुमार गुप्ता के क्लिनिक पर पहुँचना वरदान बन गया। मेरे इतने बढ़े ब्लड शुगर पर डा. गुप्ता ने कहा कि मुझे आपके शुगर के बढ़ने की चिन्ता नहीं है मुझे आपके पैर की चिन्ता है, जिससे आप हाथ धो सकते हैं। उन्होंने मुझे तुरन्त इन्सुलिन लेने की सलाह दी। दूसरे दिन से ही डा. गुप्ता की देख-रेख में मैंने इन्सुलिन लेना शुरू कर दिया और घाव तेजी से भरना शुरू हो गया और करीब 10-12 दिन बाद घाव पूरी तरह से ठीक हो गया।
मैं डा. आलोक गुप्ता का पूर्ण रूपेण शुक्रगुजार हूँ कि उन्होंने समय से मुझे इन्सुलिन का इन्जेक्शन देकर मेरे दाहिने पैर को बचा लिया। एक बात का भी मैं जिक्र करना चाहूँगा कि मैंने स्वयं अपने हाथों इन्जेक्शन लगाया और मुझे किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं हुई। 15 दिन बात डा. गुप्ता ने खाना खाने के बाद का ब्लड शुगर लेवल सामान्य होने पर इन्सुलिन से हटाकर मझे खाने वाली गोलियों पर ला दिया और मैं प्रत्येक माह अपने शुगर की नियमित जांच कराता रहा और मेरा ब्लड शुगर लेवल सामान्य बना रहा। तीन-चार माह बाद मैंने गोलियों का सेवन भी पूर्णतः बन्द कर दिया और मैं प्रति माह अपने ब्लड शुगर की जांच कराता रहता हूँ और मेरा ब्लड शुगर लेवल सामान्य ही बना रहता है।
एक बात तो मैं बताना ही भूल गया कि मेरा ब्लड शुगर लेवल कैसे सामान्य बना हुआ है। मैं पेशे से यान्त्रिक कारखाना, पूर्वोत्तर रेलवे में कार्यरत हूँ। प्रतिदिन 4-5 किमी. पैदल चलता हूँ। खान-पान (कैलोरी के अनुसार) संयमित है। कभी-कभार महीने में एकाध पीस मिठाई भी खा लेता हूँ। मेरे जैसे अन्य कुछ मधुमेह रोगियों ने मिलकर यह डायबिटिज सेल्फ केयर क्लब की संस्था जो बनाई है, का मूल उद्देश्य यह है कि प्रत्येक मधुमेह रोगी इस संस्था के माध्यम से जहां प्रत्येक माह के प्रथम रविवार को विशिष्ट विशेषज्ञों द्वारा जो जानकारी प्राप्त करता है अन्य उन मधुमेह रोगियों को जो इस संस्था के सदस्य नहीं है को भी इसको लाभ देने की कृपा करें। इस संस्था का आजीवन शुल्क एक सौ रूपये मात्र है जो नाम मात्र का है।
अन्त में मैं एक मधुमेह रोगी के रूप में अने अनुभव के आधार पर इतना कहना चाहूँगा कि मधुमेह से डरने की आवश्यकता नहीं है, योग, व्यायाम, खान-पान, रहन-सहन एवं दवा के माध्यम से इससे मुकाबला करने की आवश्यकता है। नियमित जांच एवं समय-समय पर चिकित्सक के परामर्श का भी इस रोग को कन्ट्रोल करने में महत्वपूर्ण योगदान है।
विनय कुमार श्रीवास्तव
सीनियर सेक्शन इंजीनियर
एन.ई. रेलवे, गोरखपुर



गोरखपुर शहर में ‘डायबिटिज सेल्फ केयर क्लब’ का गठन अपने आप में एक अनूठा एवं सराहनीय कृति है। गोरखपुर शहर स्वास्थ्य क्षेत्र में चिकित्सकों एवं दवा निर्माता कम्पनियों के लिये अत्यन्त उपजाऊ एवं लाभप्रद क्षेत्रों में गिना जाता है।
उपरोक्त यथार्थ के विरूद्ध मधुमेहियों के निस्वार्थ भाव से सेवा, उनके ज्ञानवर्धन, आर्थिक सहायता एवं सजगता के लिये, क्लब के पदाधिकारी, कलल चैरसिया, प्रदीप त्रिपाठी, वेदानन्द बधाई के पात्र हैं। डॉ. आलोक कुमार गुप्ता जी जो इस क्लब के मेरूदण्ड हैं वास्तव में सफल मधुमेह चिकित्सक के अलावा एक सच्चे समाज सेवक हैं।
मुझे पिछले बीस सालों से मधुमेह रोग हैं। मैं शारीरिक श्रम, चिन्ता मुक्त जीवन, दवाओं के सेवन, नियमित जांच के सहारे आज तक स्वस्थ हूँ। मैं जब भी डॉ. गुप्ता के दवाखाना पर जाता था, वे मधुमेह के बारे में विस्तृत जानकारी देते थे। प्रति सप्ताह शनिवार के दिन दोपहर में विशेष रूप से बुलाते थे। उस दिन साहित्य, वीडियो, छायाचित्रों आदि के माध्यम से विशेष जानकारी देते थे।
मधुमेह ऐसी बीमारी है, जिसमें डाक्टर से अधिक मरीज को सर्तक एवं शिक्षित होने की आवश्यकता है। शरीर आप का है। मधुमेह की जटिलताएं, धीरे अनियमित होने से बढ़ती जाती है। इसका प्रभाव, हृदय, किडनी, आंख, पैर पर विशेष रूप से पड़ता है। आप को सजग रहना होगा। प्रति 6 माह पर हृदय, किडनी, आंख, पैर आदि की जांच अवश्य करा लेनी चाहिए। अपने डाक्टर के सम्पर्क में बराबर रहना चाहिए।
मधुमेह के बारे में अज्ञात होने के कारण लोगों को अपने पैर कटवाने पड़ते हैं। हृदयाघात हो जाता है। किडनी फेल हो जाती है। आंखों की दृष्टि चली जाती है लेकिन आप सजग हैं, मधुमेह नियंत्रित रखते हैं, डाक्टर के बराबर सम्पर्क में हैं, व्यायाम करते हैं तो आरम्भिक अवस्था में इनका निदान दवाओं आदि से शत-प्रतिशत संभव है। आप सामान्य जीवन लम्बे समय तक जी सकते हैं।
डायबिटिज सेल्फ केयर क्लब प्रत्येक माह के प्रथम रविवार को एक कार्यशाला का आयोजन नेपाल क्लब में आयोजित करता है। शहर एवं प्रान्त तथा इस क्षेत्र के विशेषज्ञों का व्याखान होता है। मुफ्त शुगर चेकिंग तथा अन्य शिक्षाप्रद कार्यक्रम होते हैं। निःशुल्क जांच आयोजित होते हैं। मात्र 100/- रूपये के आजीवन सदस्यता शुल्क है। शहर के विभिन्न पैथालोजी केन्द्रों पर संस्था के सदस्यों हेतु पच्चीस प्रतिशत की छूट दी जाती है। विभिन्ना कंपनियों द्वारा ग्लूकोमीटर आदि यन्त्रों पर विशेष छूट प्रदान की जाती है। प्रतिवर्ष नवम्बर माह में वा£षक उत्सव मनाया जाता है।
क्लब में, योग, मनोरंजन सामाजिक सौहार्द पर विशेष ध्यान दिया जाता है। क्लब के सदस्य बड़े बेसब्री से माह के प्रथम रविवार का इन्ताजार करते हैं। यह नहीं प्रतीत होता कि हम किसी बिमारी के लिए किसी अस्पताल या डाक्टर के पास जाते हैं। लगता है अपने मिगो परिवार में मिलते एवं आनन्द के लिए जा रहे हैं।
हमारा जीवन बहुमूल्य है। इससे भी अधिक हमारी आने वाली संतानें, हमारे बच्चे अमूल्य हैं। मधुमेह का ज्ञान हमें, हमारे बच्चों को, हमारे समाज को, हमारे देश के भविष्य को बचा रहा है। इसमें ‘डायबिटिज सेल्फ केयर क्लब’ गोरखपुर का भी आज एक छोटा पवित्र प्रयास है लेकिन हमें आशा है एक दिन यह पूरे प्रदेश एवं देश में अपना प्रमुख स्थान ग्रहण करेगा। हमें आशा है कि आप स्वयं उपरोक्त कथनों का परीक्षण स्वयं आकर करेंगे।
‘बागीश’

मधुमेह एवं वृक्क रोग, मूत्र रोग एवं जननेन्द्रिय रोग

मधुमेह एवं वृक्क रोग, मूत्र रोग एवं जननेन्द्रिय रोग

धुमेहः जब मानव शरीर में रक्त शर्करा नियमन की शक्ति न रहे उसे कहते हैं। अधिक रक्त शर्करा एवं नसों के प्रभावित होने से मूत्राशय मूत्रत्याग के बाद पूरी तरह से खाली नहीं होता है। परिणामतः बचे हुए मूत्र एवं मूत्र में शर्करा की मात्रा अधिक होने से मूत्राशय का इन्फेक्शन अधिक एवं बार-बार होता है। ऐसे रोगी द्वारा बार-बार मूत्र त्याग करना, मूत्र मार्ग में जलन एवं अपूर्ण मूत्र त्याग का अहसास होता है। रोग के अधिक बढ़ने पर मूत्र त्याग बिना संज्ञान के एवं स्वतः होने लगता है। ऐसा होने पर व्यक्ति यापन के स्तर एवं कार्य कुशलता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

अनियमित रक्त शर्करा जननेन्द्रियों के संक्रमण को आमंत्रित करती हैं मुख्यतः फंगस का संक्रामण। यह स्त्रियों को अधिक प्रभावित करता है। परिणामतः जननेन्द्रियों में जलन, खुजली एवं अनुचित स्राव होता है, जिससे जीवन यापन के स्तर एवं कार्यकुशलता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
मधुमेह कई वर्षों तक अनियत्रिंत रहने पर पुरूष जननेन्द्रियों पर नपुंसकता के रूप में विपरीत प्रभाव डालता है, जिससे वैवाहिक जीवन प्रभावित होता है। कुछ विपरीत प्रभाव नारी जननेंद्री पर भी पड़ता है जिस पर बहुधा ध्यान नहीं दिया जाता है।
मधुमेह, वृक्क अकार्यकुशलता का प्रमुख कारण है। दिन प्रतिदिन ऐसे रोगियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। रोग के बढ़ने पर ऐसे रोगियों को डायलिसिस (रक्त शोधन) अथवा/एवं वृक्क प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ती है, जो अत्यधिक मंहगें एवं आम व्यक्ति की पहुँच से बाहर है। अतः इसका बचाव ही मुख्य मुद्दा होना चाहिए।
मधुमेह, उच्चरक्त चाप, रक्त में वसा की अधिक मात्रा एवं तम्बाकू का सेवन आपस में मिलकर वृक्क को अल्पायु कर देते हैं। साथ ही साथ रोगी भी अल्पायु हो जाता है।
मधुमेह जनित वृक्क रोग, रोगी की कार्यकुशलता, रोजगार तथा जीवन यापन के स्तर पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। रो बा आर्थिक पहलू रोगी एवं परिवार की वृद्धि एवं सम्पन्नाता को विपरीत प्रकार से प्रभावित करता है।
लम्बे समय का अनियंत्रित मधुमेह वृक्क की सूक्ष्म रक्त कोशिकाओं को बंद करता है तथा वृक्क की सूक्ष्म संरचना (ग्लोमेरूलस) नामक सूक्ष्म कार्य इकाई पर मैट्रिक्स नाम प्रोटीन का जमाव करता है। परिमाणतः ग्लोमेरूलस अधिक रक्त दबाव पर कार्य करते हैं। यहीं से वृक्क अकार्यकुशलता का प्रारम्भ होता है:-
मधुमेह के ऐसे रोगी सतर्क रहें:
(क) आंख की रेटिना पर मधुमेह का प्रकोप हो (डायबेटिक रेटिनापैथी)
(ख) मूत्र में प्रोटीन का रिसाव
सूक्ष्म रिसाव 30-300 mg/day
वृहद रिसाव 300 mg प्रतिदिन से अधिक
(ग) रक्त चाप बढ़ने पर
(घ) पांच वर्ष से अधिक का मधुमेह होने पर
ध्यान रहे वृक्क कार्यकुशलता को जानने के लिये कराये जाने वाली आम रक्त जांच (urea/creatinine) के बढ़ने से पहले ही मधुमेह वृक्क को प्रभावित कर देता है।
बचावः
जो निम्न बिन्दुओं पर आधारित है।
(क) रक्त शर्करा का नियमन
(ख) रक्तचाप का नियमन
     <130 hg="" mm="" of="" p="">प्रोटीन रिसाव होने पर <100 hg="" mm="" of="" p="">(ग) जीवन शैली में बदलाव
(घ) तम्बाकू का परहेज
(ड.) औषधि विशेष का सेवन
    ACE Inhibitor
    A-II Receptor blocker
(च) प्रोटीन का सेवन कम करें (प्रोटीन का रिसाव होने पर)
     0.8 gm/kg/day
डा0 अरविन्द त्रिवेदी
सह आचार्य नेफ्रोलोजी
बी.आर.डी मेडिकल कालेज-गोरखपुर

मधुमेही और उसके परिवारजन

मधुमेही और उसके परिवारजन
मैं आपको डराना नहीं चाहता। मैं तो केवल अपने अनुभव आपके साथ बांटना चाहता हूँ। और उन पर से आपसे पूछना चाहता हूँ कि आप का कर्तव्य-मधुमेही के नाते या उसके परिवारजन के नाते क्या बनता है यदि आपने इस प्रकार कभी सोचा नही है तो अब सोचिए। हम आपकी मदद करना चाहते है। और अवश्य करेगें।

आपको पहले कुछ अनुभव सुनाये। लगभग बीस वर्ष पूर्व एक महाशय जिनकी उम्र लगभग 41 वर्ष थी मेरे पास मेडिकल परामर्श के लिये आये। वे बहुत डरे हुए से लगे। मैने उन्हे बिठाया और पूछा आप क्या सलाह चाहते है। आपको क्या तकलीफ है उन्होने कहा फिलहाल मुझे कोई तकलीफ नही है। मैने पूछा तो फिर आप इतना डर क्यो रहे है। आप डरिये नहीं जो भी बात हो मुझे बतायें, मैं जो भी मदद कर सकता हूँ जरूर करूगां। मेरे आश्वस्त करने पर उसने मुझे अपने परिवार की कहानी सुनाई।
उसने कहा-सर, मेरे दो भाई और थे। एक जो बड़े थे उनकी 46 वर्ष की उम्र थी लेकिन उनकी हार्ट अटैक से मौत हो गई । मेरे दूसरे भाई की उम्र उस समय 44 वर्ष की थी और 2 वर्ष बाद उनकी भी हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई। मेरी उम्र अभी 41 वर्ष है और आगे मेरे साथ भी ऐसा कुछ न हो जाये इसीलिये मैं अंदर ही अंदर बहुत डर रहा हूँ । मैंने उसे हिम्मत दिलाई और बाकी सदस्यों के स्वास्थ के बारे में पूछा और उसकी कुछ जाँचों के बारे में बताया। उसका परीक्षण किया । उसकी एक जांच में कोलेस्ट्राल की मात्रा लगभग 400 मि.ग्रा. प्रतिशत निकली। मैंने उसे आश्वस्त किया कि तुम्हारी हृदय की जाँच E.C.G. ब्लडशुगर ब्लड प्रेशर आदि सभी ठीक हैं केवल तुम्हारा वजन थोड़ा ज्यादा है और तुम्हारे रक्त में कोलेस्ट्रोल बढ़ा हुआ है। उन दिनों ‘लिपिड प्रोफाईल’ आसानी से नहीं होता था, अतः वह हम नहीं करवा पाये। हमने उसको भोजन के वसा संबंधी परिवर्तन करने को कहा और कोलेस्ट्रोल कम करने की दवाई दी और समय-समय पर मिलते रहने के लिये कहा। बाद में वह काफी आश्वस्त लगा और खुश दिखा। 3-4 वर्ष तक हमारा संपर्क बना रहा और वह ठीक हो गया।
अब हम आपको दूसरे मरीज जिसको हमने 2004 में देखा था। उसकी पारिवारिक कहानी बताते है। इस रोगी की उम्र भी 46 वर्ष थी। वह हमसे मधुमेह के लिये परामर्श लेने आया था। वह पहले से ही मधुमेह के लिये शुगर की जाँच करवा कर आया था। उससे जब हमने उसके परिवार का रोग सम्बन्धी इतिहास पूछा तो उसने मुझे सभी बातें बतायी।
मैंने उसे उचित उपचार मधुमेह एवं बी.पी. के लिए बतलाया। वह ले रहा है और स्वस्थ है। उपरोक्त 2 प्रकार के रोगियों के पारिवारिक इतिहास से हमें कई प्रकार की शिक्षा मिलती हैं। जो हम निम्नानुसार विश्लेषण कर सकते हैं-

  1. हर रोगी के लिये, खासकर के मधुमेही के लिये अपने परिवार का रोग संबंधी इतिहास उसकी बीमारी को समझने में मदद करता है। अतः पारिवारिक रोग संबंधी इतिहास जानना जरूरी है। मधुमेह के रोग का निदान करने में मदद मिलती है।
  2. दोनों मरीजों के पारिवारिक इतिहास से यह भी स्पष्ट होता है कि-कुछ बीमारियाँ जैसे- मधुमेह, उच्च रक्तचाप (Hypertension) मोटापा और हृदय रोग एक-दूसरे से संबंधित हैं और परिस्थिति अनुसार परिवार के सदस्यों में प्रकट होते हैं। प्रकट होने का अंश एवं अनुपात हर एक में अलग-अलग होता है। इनके आपसी संबंध को समझने से किसी रोगी के रोग की गम्भीरता का अंदाजा लगाकर उचित जाँच एक उपचार में मदद मिलती है।
  3. प्रथम रोगी के इतिहास में दो भाईयों को हृदय रोग हुआ तो तीसरे को अति वसा (High cholesterol) की बीमारी निकली इन दोनों परिस्थितियों को भी एक दूसरे से संबंधित माना जाता है और अतिवसा की स्थिति को हृदय रोग का उत्तेजक गुणक (Risk Factor) माना जाता है।
  4. रोग होने के 20 वर्ष पश्चात लगभग सभी टाइप-1 मधुमेह रोगियो में और 60% से अधिक टाइप-2 मधुमेह रोगियों में आँख के पर्दे (रैटिना) में खराबी आ जाती है।
  5. दूसरे रोगी के परिवार में जो उनके पाँचवे भाई हैं।, उन्हें भी मधुमेह नहीं हुआ है। यदि वह अपने मोटापे और हाई बी.पी. को नियंत्रित कर लें तो वह निश्चित ही मधुमेह एवं हृदय रोग से बच सकता है।
  6. दोनों रोगियो के परिवार के इतिहास बताते हैं कि मधुमेह, हृदय रोग एवं उच्च रक्तचाप न केवल एक दूसरे से सम्बन्धित है किन्तु काफी हद तक वंश परम्परा से भी सम्बन्धित है।
  7. प्रथम रोगी एवं द्वितीय रोगी की बीमारीयों का ठीक से निदान एवं उपचार से यह भी जाहिर होता है कि इन बीमारियों को आगे बढ़ने से एवं उनके दुष्परिणामो से बचा भी जा सकता है। अतः बीमारी मालूम होने पर लगन एवं मेहनत से इलाज करना चाहिए ।

आज कल जब किसी रोगी में मोटापा, उच्च रक्तचाप (हाई बी.पी.) मधुमेह एवं अतिवसा (खून में ज्यादा कोलेस्ट्राल) की स्थिति पाई जाती है तो इस परिस्थिति को, यानि इस समूह की बीमारियों को हम सिंड्राम-एक्स (Syndrome-X) का नाम देते है। ऐसा माना गया है कि इनका कारण भी एक हो सकता है, जिसे "इंसुलिन रेसिस्टेंस" कहते है। उपरोक्त बिमारियां अलग-अलग नाम से आगे -पीछे प्रकट होती है। अतः हमे यह समझना चाहिए कि यदि एक रूप जैसे-मधुमेह सामने आये तो हमे अन्य रूपों के बारे मे भी निदान कर के मरीज का व्यापक रूप से इलाज करना चाहिए । यह मरीज का भी कर्तव्य बनता है कि वह डाक्टर की बात समझे एवं माने। ज्यादातर मरीज एैसा नही करते है। उन्हे डाक्टर से सहयोग करना चाहिए।
अब हम अपने प्रथम एवं अन्तिम प्रश्न पर आते है। हमने पूछा था कि इन परिस्थितियों में मधुमेह रोगी की और परिवारजनों की क्या भूमिका बनती है।
हमारे अनुसार मधुमेह के रोगी को, बीमारी मालूम होने पर घर के अन्य सदस्यों को इसके बारे में आगाह करना चाहिए । जिससे अन्य सदस्य इससे बचने का प्रयास करे। हम आपको भरोसा दिलाते है कि अन्य सदस्य थोड़ी जीवन शैली में बदलाव लाकर मधुमेह से बच सकते है। फिर मधुमेही को घर के सदस्यों का सहारा लेकर अपनी बीमारी को सही ढंग से नियन्त्रित करना चाहिए। आम तौर पर होता यह है कि मधुमेही अकेले ही, बेमन से अपनी बीमारी से लड़ता है।, और ज्यादातर हारता है। मधुमेही चाहे तो घर के अन्य सदस्यों को मधुमेह से बचा सकता है।
मधुमेही को चाहिए कि वह मधुमेह से डरे नही, मधुमेह को छुपाये नहीं, और अपने परिवार का इतिहास ठीक से डाक्टर को बताये, शर्म या हीनता की भावना न रखें । जहां तक परिवार के सदस्यों की बात है वे भी इसी प्रकार व्यवहार करे। मधुमेही को सहयोग करे। समय समय पर मधुमेही के साथ डाक्टर के पास जायें और उसकी जरूरतों को जैसे उचित जांच एवं इलाज को समझे। वर्तमान में घर का कोई सदस्य मधुमेही की देख रेख में विशेष रूचि नही लेता है।
इस प्रकार सजग होकर मधुमेही और उसका परिवार दुविधा के अन्धकार से बचकर स्वस्थ परिवार के रूप में रह सकते है।
अब जबकि विश्व में यह लगभग माना जाने लगा है कि भारत में मधुमेह एक महामारी का रूप ले रही है और कुछ लोग भारत को मधुमेह की राजधानी कहने लगे है, तो हमे इस विषय पर जागरूकता से सोचने की जरूरत है। संयोग से सन् 2006 का 14 नवम्बर विश्व मधुमेह दिवस का विश्व स्वास्थ संघ का नारा ‘‘ मधुमेह की देखभाल सबके लिये’’ भी यही दर्शाता है। अतः मधुमेही उसका परिवार एवं प्रत्येक व्यक्ति इस चुनौति को स्वीकारें और इस दिशा में काम करें तभी हमारा भला होगा। और हम मधुमेह को नियन्त्रित कर पायेगें।
डॉ. एस.एस. येसीकर
पूर्व प्रोफेसर ऑफ मेडिसिन
एवं मधुमेह विशेषज्ञ-भोपाल

इन्सुलिन पंप

इन्सुलिन पंप
न्सुलिन पंप एक मोबाइल फ़ोन के आकार का यन्त्र होता है जिसे टाइप-1 एवं इन्सुलिन पर नियंत्रित टाइप 2 मधुमेह रोगियों में बेहतर रक्त शर्करा नियंत्रण के लिए प्रयोग में लाया जाता है. इन्सुलिन पंप के कार्यविधि को समझने के लिए एक स्वस्थ मनुष्य में शर्करा नियंत्रण किस प्रकार होता है इसको समझना आवश्यक है.

स्वस्थ शरीर में शर्करा नियमन :

एक स्वस्थ मनुष्य भोजन के दृष्टिकोण से सदैव दो अवस्था में रहता है :
अ)खाली पेट
ब) भोजनोपरान्त.

दोनों ही अवस्था में शरीर के विभिन्न गतिविधियों को चलाने के लिए उसे ऊर्जा कि आवश्यकता होती है. यह ऊर्जा उसे रक्त में उपस्थित ग्लूकोज(शर्करा) से प्राप्त होती है. रक्त ग्लूकोज को ऊर्जा में परिवर्तित करने में इन्सुलिन की महत्पूर्ण भूमिका होती है. जब हम खाली पेट होते हैं या सो रहे होते हैं तब भी शरीर में बहुत सी गतिविधियाँ नेपथ्य में चल रही होती हैं जैसे आँतों द्वारा पाचन क्रिया, ह्रदय द्वारा रक्त का संचार, फेफड़ों द्वारा सांस की क्रिया, गुर्दों द्वारा मूत्र बनाने की क्रिया इत्यादि. इसे हम शरीर की मूलभूत गतिविधि कहते हैं. इस मूलभूत गतिविधि के लिए भी ऊर्जा कि आवश्यकता होती है और इसके लिए इन्सुलिन की. जब हम खाली पेट होते हैं तब भी इस मूलभूत ऊर्जा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए शरीर में स्थित पैंक्रियास ग्रंथि द्वारा मूलभूत स्तर पर कुछ इन्सुलिन का स्राव होता रहता है जिसे हम basalbasalबेसल इन्सुलिन स्राव (basabasal insulin release) कहते हैं. basal

उपरोक्त चित्र में इसे सब से नीचे नीले रंग की पट्टी से दर्शाया गया है. जब जब हम कुछ खाते हैं तो भोजन के पश्चात carbohydratकार्बोहायड्रेट के पच कर ग्लूकोज में बदलने और आँतों द्वारा इसे अवशोषित कर रक्त में पहुचने के कारण रक्त में ग्लुकोज का स्तर बढ़ जाता है , इस बढे ग्लूकोज के निस्तारण के लिए पैंक्रियास द्वारा रक्त शर्करा के अनुरूप उचित मात्र में अधिक इन्सुलिन का स्राव किया जाता है जिसे बोलसस्राव (bolus release)  कहते हैं. जिसे उपरोक्त चित्र में lलाल रंग से तीन बार दर्शाया गया है. इस प्रकार आप देखते हैं कि बेसल और बोलस इन्सुलिन स्राव द्वारा सतत रक्त शर्करा का नियंत्रण एक स्वस्थ शरीर में पैंक्रियास द्वारा किया जाता है जिसे आप चित्र में सब से ऊपर दर्शाए गए ग्लूकोज के  ग्राफ द्वारा देख सकते हैं.
मधुमेह रोगी कि स्थिति :
यद्यपि मधुमेह रोग होने के बहुआयामी कारक हैं तदापि दो कारक प्रमुख हैं: 1) शरीर में इन्सुलिन के प्रति प्रतिरोध(insulin resistance in insulin receptors) और 2) पैंक्रियास ग्रंथि में बीटा कोशिकाओं की संख्या एवं कार्य क्षमता में कमी(Beta cell failure). एक स्वस्थ मनुष्य की तुलना में मधुमेह रोगी में रक्त शर्करा के अनुरूप उचित मात्र में इन्सुलिन स्रावित करने की क्षमता में कमी आ जाती है, खाली पेट और भोजनोपरांत दोनों ही अवस्था में. खाने की दवाओं के द्वारा इन दोनों ही कारकों यथा इन्सुलिन प्रतिरोध और बीटा कोशिकाओं की क्षमता में  कमी को पटरी पर लाने का प्रयास किया जाता है. टाइप 2 मधुमेह रोग के प्रारम्भिक काल में अधिकाँश रोगीयों में इस में सफलता भी मिलती है. किन्तु टाइप 1 मधुमेह रोगीओं एवं अधिकाँश टाइप 2 रोगियों में आगे चल कर इन्सुलिन देने की ज़रुरत पड़ती है.
बाह्य इन्सुलिन की बाधाएं:
जब हम बाहर से इन्सुलिन की पूर्ति करते हैं तो उसका सम्पूर्ण लाभ लेने के लिए यह अत्यंत आवश्यक होता है कि उसकी कार्यविधि शरीर द्वारा नैसर्गिग कार्यविधि से मेल खाए. इसके लिए शीघ्र कार्य करने वाले(rapid acting insulin) और लम्बी अवधि तक कार्य करने वाले(Long acting insulin) इन्सुलिन का अविष्कार किया गया है और निरंतर उसकी कार्य क्षमता में बेहतरी के लिए शोध जारी है. लम्बी अवधि वाले इन्सुलिन को बेसल इन्सुलिन भी कहते है और यह दिन में एक से दो बार दिया जाता है और इस से शरीर के मूलभूत(basal) इन्सुलिन की ज़रुरत को पूरा करने का प्रयास किया जाता है.Background or Basal Insulin Replacement Compared with Natural, Non-diabetic Insulin Secretion
उपरोक्त चित्र में इसे नीले बिन्दुदार क्षैतिज रेखा के द्वारा दर्शाया गया है.
शीघ्र कार्य करने वाले इन्सुलिन, जिसे रैपिड या बोलस इन्सुलिन भी कहते हैं को भोजन के साथ दिया जाता है. इस प्रकार नैसर्गिग रूप से शरीर द्वारा बेसल और बोलस स्राव की नक़ल करने का प्रयास किया जाता है. इस के लिए हमें दिन में 4 से 5 बार इन्सुलिन देना पड़ता है, जो अधिकाँश रोगियों के लिए व्यावहारिक नहीं होता. इस के लिए दोनों प्रकार के इन्सुलिन का मिश्रण भी बनाया जाता है जिसे दिन में दो बार लेना होता है, लेकिन कई बार इससे उचित नियंत्रण नहीं मिलता.

उपरोक्त चित्र में लाल रंग की रेखा द्वारा दिन में तीन बार रैपिड इन्सुलिन को दर्शाया गया है.

इन्सुलिन पंप:
उपरोक्त बातों को समझने के बाद आईये अब हम इन्सुलिन पंप क्या है और इसकी कार्यविधि क्या है इसको समझते हैं. इन्सुलिन पंप एक कंप्यूटराइज्ड यन्त्र है जिसका आकार मोबाइल फ़ोन के जैसा होता है और यह नैसर्गिक पैंक्रियास कि भांति कार्य करता है. इस यन्त्र में रैपिड इन्सुलिन एक रिफिल में भर कर डाल दिया जाता है. प्रोग्रामिंग के जरिये यह इन्सुलिन त्वचा के नीचे डिलेवर किया जाता है.

एक महीन से ट्यूब के माध्यम से इन्सुलिन की डिलीवरी की जाती है. ऊपर दिए गए चित्र में आप देख सकते हैं कि पेट के ऊपर एक स्टीकर लगा हुआ है, इस स्टीकर में एक बहुत ही बारीक ट्यूब लगा होता है जिसे एक यन्त्र के माध्यम से त्वचा के अन्दर डाल दिया जाता है और स्टीकर को पेट पर चिपका दिया जाता है. यह स्टीकर 4 दिनों तक कार्य करता है. पंप के रिफिल को एक ट्यूब के ज़रिये इस स्टीकर से जोड़ दिया जाता है, जिसे जब चाहें स्टीकर से अलग किया जा सकता है,जैसे नहाते समय, तैरते समय. पंप कनेक्ट करने के पश्चात इन्सुलिन की डिलीवरी दो चरणों में की जाती है. रोगी की 24 घंटों में बेसल इन्सुलिन की क्या ज़रुरत है इस का आकलन किया जाता है और प्रोग्रामिंग के माध्यम से उसे थोडे अंतराल पर निरंतर पंप किया जाता है ठीक वैसे ही जैसे पैंक्रियास द्वारा किया जाता है.इसे रोगी के आवश्यकतानुसार 24 घंटों में अलग अलग भागों में बांटा भी जा सकता है.

दिए गए चित्र में आप देख सकते हैं कि बेसल इन्सुलिन नीचे सलेटी रंग में दर्शाया गया है. अब आते हैं भोजनोपरांत इन्सुलिन की आवश्यकता की पूर्ति पर. रोगी जब भोजन करता है तब भोजन में लिए गए carbohydrate कार्बोहायड्रेट के अनुरूप वह इन्सुलिन की जितनी आवश्यकता होती है उसे पंप में प्रोग्राम कर के डिलीवर कर देता है. इस प्रकार वह चार दिनों तक बिना इंजेक्शन लगाये जब जितनी आवश्यकता हो उतना इन्सुलिन लेता रहता है. इस प्रकार भोजन,इन्सुलिन कि मात्रा,भोजन के समय, कितनी बार इन्सुलिन दिया जाए इन सब में एक लचीलापन (flexibility)आ जाता हैजो रक्त शर्करा नियमन में सहायक होता है. दिन में कई बार इन्सुलिन का इंजेक्शन लेने से मुक्ती मिल जाती है वह अलग. साथ ही इन्सुलिन की मात्रा में भी 20 से 30% तक की कमी आ जाती है. दिए गए चित्र में बोलस इन्सुलिन को लाल ग्राफ से दिखाया गया है.
चूंकि यह एक यन्त्र है अतः इस का सही उपयोग करने के लिए रोगी को प्रशिक्षित करना आवश्यक होता है और इसका उपयोग प्रारम्भ में किसी एक्सपर्ट की देख रेख में करना होता है. पंप के प्रोग्रामिंग सॉफ्टवेयर और फीचर के मुताबिक़ उसके कई मॉडल उपलब्ध हैं जिनका यहाँ विस्तृत वर्णन करना संभव नहीं है. किस रोगी को कौन पंप लेना है इसका चयन चिकित्सक और रोगी मिलकर तय करते हैं.इस प्रकार हम देखते हैं कि इन्सुलिन पंप कृत्रिम पैंक्रियास कि दिशा में वैज्ञानिको द्वारा बढाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है.

इन्सुलिन प्रयोग के लिए आवश्यक निर्देश

इन्सुलिन प्रयोग के लिए आवश्यक निर्देश
इन्सुलिन सुरक्षित रखने के लिए निर्देश
  1. जहाँ तक संभव हो, इन्सुलिन को रेफ्रिजरेटर के अन्दर निर्धारित तापमान 2° से 8° सेल्सियस (36° से 46° फॉरेनहाइट) पर रखना चाहिए।
  2. जमे (बर्फीले) हुए इन्सुलिन का प्रयोग बिल्कुल न करें, (ध्यान रखें इन्सुलिन को रेफ्रिजरेटर के कूलिंग सिस्टम के बहुत पास अथवा फ्रीजर बाक्स में कत्तई न रखें)
  3. यदि आप अपने इन्सुलिन को रेफ्रिजरेटर में नहीं रख सकते तो उसे ठण्डे व अंधेरे स्थान में रखें।
  4. जमे (बर्फीले) हुए इन्सुलिन का प्रयोग बिल्कुल न करें, (ध्यान रखें इन्सुलिन को रेफ्रिजरेटर के कूलिंग सिस्टम के बहुत पास अथवा फ्रीजर बाक्स में कत्तई न रखें)
  5. इन्सुलिन को अधिक गर्म स्थान पर न रखें जैसेः-
    (क) कार के ड्रायविंग सीट के पास की जगह
    (ख) धूपदार खिड़की के पास
    (ग) कुकिंग रेंज या गैस स्टोव के निकट
    (घ) बिजली के उपकरणों के ऊपर जैसे- टेपरिकार्डर, टी.वी. इत्यादि।
  6. हवाई जहाज में यात्रा करते समय सारे इन्सुलिन वॉयल अपने साथ के केबिन बैग में ही रखें, सूटकेसों या दूसरे सामानों के साथ नहीं ताकि वह आपके साथ रहें।
  7. यात्रा के समय बीमारी का खतरा बना रहता है जिसके कारण आपको अधिक इन्सुलिन की आवश्यकता पड़ सकती है।
* इन्सुलिन वॉयल जो इस्तेमाल में है उसे कमरे के तापमान (25° सेल्सियस) पर करीब एक माह तक रखा जा सकता है। सफेद पड़े, दाने जमे हुए या भूरे हो गये इन्सुलिन का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
इन्सुलिन मिलाने का तरीका
जल्दी असर करने वाली (पारदर्शी) इन्सुलिन तथा देर तक असर दिखाने वाली (धुंधली) इन्सुलिन को एक ही सिरिंज में कैसे मिलायें।
  1. खाली सिरिंज में निर्धारित धुंधली इन्सुलिन की मात्रा के बराबर हवा खीचें।
  2. हवा को धुंधली इन्सुलिन वाले वॉयल में भर दें परन्तु इन्सुलिन न खींचे।
  3. सूई को बाहर निकाले लें और वॉयल को एक तरफ रख दें।
  4. खाली सिरिंज में पारदर्शी इन्सुलिन की निर्धारित मात्रा के बराबर हवा खींचे तथा हवा को पारदर्शी इन्सुलिन के वॉयल में भर दें।
  5. वॉयल को उल्टा कर पारदर्शी इन्सुलिन की बतायी गयी मात्रा से थोड़ी अधिक मात्रा सिरिंज में खींच लें।
  6. अब वॉयल को आंख के स्तर पर रखें तथा मात्रा से अधिक खींची हुई इन्सुलिन को हवा के बुलबुलों के साथ वॉयल में वापस भर दें। इसके बाद सूई बाहर निकाल लें।
  7. अब धुंधली इन्सुलिन वाला वॉयल लें जिसमें हवा भरी गयी थी, सूई अन्दर डालकर बताई गयी निर्धारित मात्रा* सिरिंज में खींच लें।
  8. सूई को बाहर निकाल लें, अब यह मिश्रण इस्तेमाल के लिए तैयार है।
* यदि असावधानी के कारण सिरिंज में धुंधली इन्सुलिन की निर्धारित मात्रा से अधिक मात्रा निकल जाये तो गलती को सुधारने के लिए धुंधली इन्सुलिन की अधिक मात्रा को वॉयल में वापस न डालें, अब सिर्फ एक ही उपाय है, सिरिंज का खाली कर पूरी प्रक्रिया फिर से शुरू करें।
इन्सुलिन इंजेक्शन लगाने का तरीका
  1. सिरिंज में पर्याप्त इन्सुलिन खींचे, सिरिंज में भर आये हवा के बुलबुलों को हल्के से हिलाकर हटायें।
  2. आवश्यकता से अधिक इन्सुलिन की मात्रा को वॉयल में वापस भर दें तथा सूई को वॉयल से खींच लें।
  3. सूई लगाने वाली जगह की त्वचा अच्छी तरह से बटोर कर पकड़ लें तथा सूई को 45° के कोण से त्वचा के नीचे घुसायें।
  4. इन्सुलिन को धीरे-धीरे अन्दर जाने दें, फिर एक उंगली से इंजेक्शन स्थल को दबा कर सूई को बाहर निकालें।
  5. इंजेक्शन लगाने के स्थान को बदलते रहें, क्योंकि एक ही जगह इंजेक्शन लगाने से त्वचा के नीचे घाव पड़ सकते हैं।
* नष्ट किये जा सकने वाले डिस्पोजेबल सिरिंजों को अवश्य नष्ट कर दें ताकि वे दूसरों को नुकसान न पहुँचा सकें, शीशे व धातु के सिरिंज को इस्तेमाल से पहले ठीक से साफ कर लें, सिरिंज के अवयवों को 10 मिनट तक पानी में उबालें, सिरिंज उबालने का बर्तन किसी अन्य कार्य के लिये प्रयोग न करें, उबालने के तुरन्त बाद उसके अवयवों को उठा लें।

मधुमेह एवं चावल

मधुमेह एवं चावल
चा वल पूरे विश्व में खाया जाने वाला एक प्रमुख आनाज है. भारत में भी उत्तर-पश्चिम भारत को छोड़ कर बाकी सभी प्रदेशों में यह खाया जाने वाला प्रमुख आनाज है. मधुमेह होते ही मधुमेही को अधिकाँश चिकित्सकों और स्वजनों द्वारा एक गुरु मंत्र घुट्टी के रूप में दिया जाता है “ आलू, चावल, चीनी, और ज़मीन के नीचे पैदा होने वाली वस्तुओं से परहेज़ रखना है”.
हम यहाँ चावल से जुडे तथ्यों की चर्चा करेंगे. इस आनाज को ले कर जितनी भ्रांतियां हैं शायद ही किसी और आनाज को ले कर हो. चावल के कई प्रकार खाने के लिए प्रयोग में लाये जाते हैं और सब की पोषक गुणों में अंतर होता है. चावल के प्रकार से मेरा मतलब उस के विभिन्न प्रजातियो से न हो कर उस को तैयार करने की विधि से है. चवाल पकाने की विधि से भी उसके पोषकता में अंतर आ जाता है.

चावल के प्रकार

हम सभी जानते हैं की चावल के फसल को “धान” कहते हैं. धान जब खेतों से कट कर आता है तो उसे प्रोसेस कर के उस में से चावल प्राप्त किया जाता है. इस प्रोसेसिंग की वजह से हमे मुख्यतः तीन प्रकार के चावल प्राप्त होते हैं:-

ब्राउन राइस :

जब धान को कूट कर उसके छिलके को अलग कर दिया जाता है तो हमें ब्राउन राइस प्राप्त होता है. यह सुनहरे या भूरे रंग का होता है क्योंकि चावल के ऊपर फाइबर/रेशे की एक परत जिसे ब्रान भी कहते हैं चिपकी रहती है. इस वजह से ब्राउन राइस में रेशे की मात्र अधिक होती है और इसको खाने के बाद यह पचने में समय लेता है और रक्त में ग्लूकोस की मात्र तीव्रता से नहीं बढती. इस चावल में विटामिन बी की मात्र भी अधिक होती है. यह चावल पकने पर आपस में चिपकता नहीं है और थोडा सख्त होता है.

उसना चावल/भुजिया चावल/सेला चावल या पार-बॉयल्ड राइस :

इस विधि में धान को पहले पानी में भिगोतें हैं, और जब वह पानी सोख लेता है तो उस पर से भाप को गुजारते हैं. इस के बाद उस को सुखा कर उस की कुटाई के जाती है. इस प्रक्रिया की वजह से भूसी की परत चावल पर चिपक जाती है. धान के छिलके में एवं भूसी में उपस्थित विटामिन बी चावल के कण में अवशोषित कर लिया जाता है. चावल के कण में उपस्थित स्टार्च(कार्बोहायड्रेट) आंशिक रूप से पक भी जाता है जिसके कारण चावल के कण थोडे पारदर्शी हो जाते हैं. उसन देने के बाद कुटाई करने से चावल के कण टूटते भी नहीं हैं. ब्राउन राइस की तरह इसमें भी रेशे की मात्र अधिक होती है, पकने के बाद दाने आपस में चिपकते नहीं हैं और खाने के बाद इसको पचने में समय लगता है जिस वजह से रक्त में ग्लूकोस तेजी से नहीं बढ़ता. उसन देने की वजह से इस चावल की खुशबू बदल जाती है और यदि शुरू से इस को खाने की आदत न हो तो बहुत से लोगों को यह पसंद नहीं आता. यह प्रक्रिया पूरे भारत में सदियों से अपनाई जाती रही है और आज भी अपनाई जाती है.

सफ़ेद चावल/वाइट राइस/अरवा चावल या पॉलिश राइस :

यह सबसे अधिक खाया जाने वाला चावल है. धान के कुटाई के बाद प्राप्त चावल को पॉलिश कर उसके ऊपर की भूसी की परत को हटा दिया जाता है. इससे चावल का रंग सफ़ेद हो जाता है. पकने पर इसके कण मुलायम और चिपचिपे होते हैं. इसमें रेशे की मात्र कम होती है और विटामिन बी की मात्र भी कम होती है. यह खाने के बाद जल्दी पचता है और रक्त में ग्लूकोस का स्तर शीघ्रता से बढ़ता है.

नीचे दिए गए तुलनात्मक चार्ट से आप को इन तीनो प्रकार के चावलों में पाए जाने वाले विभिन्न पोषक तत्वों का आंकलन करने में सुविधा होगी.

Nutrition Chart

The nutritional values of long, medium, and short grain rice are essentially the same within each variety or classification (i.e., brown or white). Here is a comparison chart of brown rice, unenriched white rice, and parboiled rice:
Brown
ब्राउन
White (Unenriched)
सफ़ेद पॉलिश
Parboiled (Unenriched)
उसना/भुजिया
Nutrient
पोषक तत्व
Unit
यूनिट
¼ cup raw
(46.25 grams)
¼ cup raw
(46.25 grams)
¼ cup raw
(46.25 grams)
Proximates (Macronutrients)
Calories/कैलोरी
kcal
171
169
172
Protein/प्रोटीन
g
3.64
3.30
3.14
Total Fat/कुल वसा
g
1.35
0.31
0.26
Carbohydrate/कार्बोहायड्रेट
g
35.72
36.98
37.80
Fiber/रेशा
g
1.62
0.60
0.79
Minerals/खनिज
Calcium, Ca/कैल्शियम
mg
10.64
12.95
27.75
Iron, Fe/आयरन
mg
0.68
0.37
0.69
Magnesium, Mg/मैग्नीशियम
mg
66.14
11.56
14.34
Phosphorus, P/फॉस्फोरस
mg
154.01
53.19
62.90
Potassium, K/पोटासियम
mg
103.14
53.19
55.50
Sodium, Na/सोडियम
mg
3.24
2.31
2.31
Zinc, Zn/जिंक
mg
0.93
0.50
0.44
Copper, Cu
mg
0.13
0.10
0.09
Manganese, Mn
mg
1.73
0.50
0.39
Selenium, Se
mg
10.82
6.98
10.64
Vitamins
Vitamin C
mg
0.00
0.00
0.00
Thiamin
mg
0.19
0.03
0.05
Riboflavin
mg
0.04
0.02
0.03
Niacin
mg
2.35
0.74
1.68
Pantothenic Acid
mg
0.69
0.47
0.52
Vitamin B-6
mg
0.24
0.08
0.16
Folate
mcg
9.25
3.70
7.86
Vitamin B-12
mcg
0.00
0.00
0.00
Vitamin A, IU
IU
0.00
0.00
0.00
Vitamin A, RE
mcg
0.00
0.00
0.00
Vitamin E
IU
0.33
0.06
0.07
The information in this table was taken from the U.S. Department of Agriculture, Agricultural Research Service, 2002. USDA Nutrient Database for Standard Reference, Release 15 (August, 2002).
मधुमेही बंधुओं उपरोक्त चार्ट का अवलोकन करने पर आप पायेंगे की उर्जा देने की क्षमता,और कार्बोहायड्रेट की मात्रा तीनो प्रकार के चावल में लगभग समान है. अक्सर लोगों को भ्रान्ति होती है की उसना चावल में सुगर कम होता है. अखबारों में “सुगर फ्री” चावल के शीर्षक से भ्रान्ति फैलाने वाले खबर भी छप जाते हैं.

दरअसल अंतर पड़ता है धान की प्रोसेसिंग(प्रसंस्करण)से. जैसा की पहले बताया जा चुका है की ब्राउन राइस और उसना चावल में रेशे की एक परत होती है जिसके कारण उसके पाचन में वक़्त लगता है, और उसे खाने के बाद रक्त में ग्लूकोस का स्तर तेज़ी से नहीं बढ़ता.

चवाल को धोने और पकाने के तरीके से भी उसके पोषकता पर असर पड़ता है. वाइट राइस या अरवा चावल को बार बार पानी में धोने से पानी में घुलनशील विटामिन बी काम्प्लेक्स का नुक्सान होता है. पकाने के दो तरीके प्रयोग में लाये जाते है: पसावन और बैठावान. पसावन विधि में चावल को अधिक पानी में पकाया जाता है और बाद में अधिक पानी को पसा दिया जाता है या बहा दिया जाता है. अधिकतर मधुमेह रोगियों को इसी विधि से चावल पकाने की सलाह दी जाती है जिस से चावल में मौजूद कार्बोहायड्रेट(स्टार्च) पानी के साथ बह जाता है. यद्यपि की इस विधि से चावल को पकाने से कार्बोहायड्रेट की कमी हो जाने से इस चावल को खाने से रक्त ग्लूकोस उतना नहीं बढ़ता लेकिन साथ ही इस प्रकार चावल को पकाने से उसकी पोषकता काफी कम हो जाती है. पानी में घुलनशील विटामिन बी का लगभग पूरी तरह सफाया हो जाता है. बैठावन विधि में पानी की मात्रा इतनी रक्खी जाती है की पकते समय चावल उसे सोख ले और उसे बहाना न पडे.
अब लाख टके का सवाल है की मधुमेह रोगी चावल खाए या न खाए? खाए तो कौन सा खाए? पकाए तो कैसे पकाए? प्रिय मधुमेह बंधुओं मधुमेह में चावल खाने की मनाही नहीं है. ध्यान यह रखना है की गेंहू की तुलना में इसमें रेशे की मात्रा कम होती है. जहाँ चोकर युक्त आटे में रेशे की मात्रा 12.6% होती है वहीँ ब्राउन राइस में मात्र 3% और अरवा चावल में तो और भी कम. इसलिए अगर चोकर युक्त आटे के साथ चावल वह भी ब्राउन राइस या उसना/भुजिया का प्रयोग किया जाये तो वह शर्करा नियंत्रण के लिहाज से उचित रहता है. चावल खाते समय यह ध्यान रखना चाहिए की वह आवश्यक भोजन से ऊपर न हो जाये. पूर्वांचल के लोगों की एक विशेषता होती है की वह रोटी पेट भरने के लिए खाते हैं और चावल मन भरने के लिए. यदि आप एक छोटी कटोरी से एक कटोरी चावल(लगभग 25 ग्राम कच्चा) खाना चाहते हैं तो थाल से एक रोटी कम कर लें, जिससे आप के भोजन से मिलने वाली उर्जा की मात्र न बढने पाए. चावल को अधिक पानी में पका कर उस का पोषक तत्व नष्ट न करें और जहाँ तक हो ब्राउन राइस या उसना/भुजिया चावल का प्रयोग करें.